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लंदराज - पु० एक तरह की मोटी चादर ।
लंप - पु० [अं० 'लै५'] चिराग, दीपक । लंपट - वि० [सं०] कामी, विषयी । पु० कामी पुरुष । लंपटता - स्त्री० [सं०] कुकर्म; कामुकता ।
लंब - पु० [सं०] किसी सरल रेखाके आधारपर समकोण बनानेवाली रेखा ( पर पेंडीक्यूलर ); विषुव रेखाकी समानां तर एक रेखा (ज्यो०) । वि० लंबा । *स्त्री० दे० 'विलंब ' । - कर्ण - वि० जिसके कान बड़े हों । पु० बकरा; हाथी; गधा; खरगोश; बाज । -केश-वि० जिसके बाल लटकते हों । -ग्रीव-पु० ऊँट - जठर- वि० तोंदवाला | -तड़ंग - वि० [हिं०] ताड़सा लंबा | लंबन - पु० [सं०] झूलनेकी किया; अवलंब, आश्रय; कोई काम कुछ समय के लिए टल जाना, रुक जाना ( अबेथेंस ) । लंबमान - वि० [सं०] दूरतक गया या फैला हुआ । लंबर - पु० दे० 'नंबर' । - दार- पु० दे० 'नंबरदार' | लंबा - वि० जिसके दोनों सिरे एक दूसरेसे दूर हों, जिसका विस्तार चौड़ाईसे अधिक हो ( जैसे लंबा बाँस, रास्ता, सफर ); जो अधिक ऊँचा हो ( लंबा आदमी, पेड़ ); अधिक विस्तारवाला ( समय कालमानके लिए-जैसे गरमी के दिन और जाड़ेको रातें लंबी होती हैं); दीर्घ, परिमाण में अधिक (जैसे लंबा खर्च ) । -चौड़ा - वि० विस्तृत । - सफर - पु० दूरकी यात्रा; मृत्यु । मु० - करना - किसीको चलता या चित करना; दराज करना । - बनना, - होना - चल देना, भाग जाना। - (बी) चौड़ी हाँकना - डींग मारना । - तानकर सोना- बेफिक्र होकर सोना । - तानना-बेफिक्री से सो जाना; बेखबर होकर देर तक सोना । - साँस भरना या लेना-शोक-दुःखसे साँस लेना, आहें भरना ।
लंबाई - स्त्री० लंबा होनेका भाव; लंबानका परिमाण । लंबान - स्त्री० लंबाई | -चौड़ान - स्त्री० लंबाई-चौड़ाई । लंबायमान- वि० [सं०] बहुत लंबा; लेटा हुआ । लंबित - वि० [सं०] लटकता हुआ; अवलंबित; धँसा, डूबा हुआ; (पेंडिंग) ( वह कार्य, मामला आदि) जिसके संबंध में अभी कोई निर्णय या अंतिम निश्चय न हुआ हो, जो अनिश्चित ( या अनिश्चयकी ) अवस्था में हो । लंबू - वि० लंबी टाँगोंवाला (आदमी, - व्यंग्य में) । लंबोतरा - वि० कुछ-कुछ लंबा, लंबाई लिये हुए । लंबोदर - पु० [सं०] गणेश । वि० बड़ी तोंदवाला; पेटू । लंबोष्ट- पु० [सं०] ऊँट । वि० लंबे ओठवाला । ल - पु० [सं०] इंद्र; पृथ्वीबीज (तंत्र) । लउ * - स्त्री० लौ, लगन ।
लउआ - पु० लौआ ।
लडकी - स्त्री० लौकी ।
लउटी * - स्त्री० लकुटी ।
लकड़दादा - पु० परदादासे बड़ा दादा | लकड़बग्घा - पु० भेड़ियेकी जातिका एक जंगली जानवर | लकड़हारा - पु०जंगल आदिसे लकड़ियाँ तोड़कर बेचनेवाला । लकड़ा - पु० लकड़ीका बड़ा और मोटा कुंदा | लकड़ाना - अ० क्रि० सूखकर लकड़ीकी तरह सख्त हो जाना; बिना मांसका हो जाना, हाड़-छाड़ हो जाना,
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लंदराज - लक्षण
बिलकुल दुबला हो जाना ।
लकड़ी - स्त्री० पेड़का कोई भी सूखा हुआ भाग, शाखा, टहनी आदि; मेज, कुर्सी आदि बनाने या जलानेके लिए काटकर सुखाया हुआ पेड़; ईंधन; लाठी, बैसाखी ; गतका; पटा, बिनवट । सु० - चलना - लाठी चलना, मार-पीट होना । - देना - मुरदा जलाना। -सा-बहुत दुबला । - होना -दुबला और कमजोर होना ।
लकदक - पु० [फा०] चटियल मैदान, बीरान बंजर, वह मैदान जहाँ पेड़-पौधे और घास न हो ।
लक़ब - पु० [अ०] गुण, योग्यता या पद सूचक नाम, पदवी । लक़लक़ - पु० [अ०] लंबी टाँग और गर्दनका एक जल-पक्षी, सारस । वि० लंबी टाँगोंवाला, दुबला-पतला (आदमी) । लकवा - पु० [अ०] एक बीमारी जिसमें मुँह टेढ़ा हो जाता है और अन्य अंगपर भी इसका असर होता है; एक नाडी-संबंधी रोग जिसके कारण प्रभावित अंग निश्चेतन और शक्तिहीन हो जाता है, पक्षाघात, फालिज । मु०मारना - लकवा रोग से ग्रस्त होना । लकसी स्त्री० एक प्रकारकी लग्गी ।
लकीर-स्त्री० कागज, स्लेट आदिपर खींचा हुआ लंबा निशान, रेखा; जमीनपर उँगली आदिसे बनायी हुई लंबी रेखा; साँपकी गतिका चिह्न; धारी; छकड़ों और गाड़ियों के पहियों का निशान; कतार, क्रम; पंक्ति | मु० - का फकीर - पुरानी रीतियों पर आँख मूँदकर चलनेवाला । - पर चलना - पुराने तरीके पर चलना । -पीटना - पुरानी प्रथाओं पर चलना; पछताना | लकुच - पु० [सं०] बड़हर; * दे० 'लकुट' | लकुट - पु० एक पेड़; [सं०] छड़ी; लाठी | लकुटिया, लकुटी* - स्त्री० छड़ी ।
लकुरी* - स्त्री० लकुटी, लकड़ी । लक्कड़ - पु० दे० 'लकड़ा' ।
लक्का - पु० [फा० 'लका'] चील; गिद्ध; एक कबूतर जिसकी पूँछ पंखे की तरह और ऊपर उठी होती है तथा गर्दन पीछेको झुकी होती है। - कबूतर - पु० नाचकी एक मुद्रा जिसमें नर्तक कमर के बल बगलसे झुककर सिरको जमीन के समीपतक ले जाता है; दे० 'लक्का' । लक्खी - पु० घोड़ोंका एक भेद; लखपती । वि० लाखके रंगका ।
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लक्तक- पु० [सं०] अलक्तक, महावर; लत्ता, चिथड़ा । लक्ष - वि० [सं०] सौ हजार । पु० सौ हजारकी संख्या, १०००००; निशान, चिह्न; पैर; मोती; बहाना; अस्त्रका संहार- विशेष; दे० 'लक्ष्य' । -पति-५० लखपती । - वेधी ( धिन्) - वि० निशानेका वेध करनेवाला । लक्षण - पु० [सं०] विशेषता-सूचक शब्द; शरीरस्थ रोगसूचक चिह्न; शुभाशुभकी सूचना देनेवाले अंगस्थित चिह्न (सामुद्रिक); शरीर पर स्थित विशेष प्रकारका काला दाग, लच्छन; निर्धारित दर; लक्ष्य, उद्देश्य; प्रस्तुत विषय; नाम; दर्शन; परिभाषा; चाल-ढाल; दे० 'लक्ष्मण'; सारस पक्षी । वि० बतलानेवाला, सूचक । - कर्म (नू ) - पु० गुणों का वर्णन; परिभाषा । ज्ञ-वि० शरीरपरके चिह्नोंको जाननेवाला । भ्रष्ट-वि० अच्छे चिह्नोंसे वंचित,