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वरन-वर्ण
विवाहके समय बरको दिया जानेवाला धन, दहेज । वरुणात्मजा-स्त्री० [सं०] वारुणी, शराब । -दान-पु० देवता गुरुजनका प्रसन्न होना; किसीको इष्ट वरुणालय-पु० [सं०] समुद्र। वस्तु देना; किसीकी कृपासे प्राप्त वस्तु ।-दानी (निन्)- वरुणाचास-पु० [सं०] समुद्र । वि० वर देनेवाला; वरप्राप्त (वीर)। -दायक-वि० वर वरूथ-पु० [सं०] बख्तर, सन्नाहा बचाव; रथपरका घेरा; देनेवाला । -पक्ष-पु० बराती। -यात्रा-स्त्री० च्याहके ढाल; सेना समूह। -प-पु० दलनायक; सेनापति । समय वरका बाजे-गाजे के साथ कन्याके घर जाना; बरात । वरूथिनी-स्त्री० [सं०] सेना।। वरक-पु० [अ०] कटा हुआ कागज, पुस्तकका पन्ना; सोने, वरेण्य-वि० [सं०] मुख्य पूजनीया सर्वोत्कृष्ट । चाँदीका पत्तर; फूलकी पँखड़ी।-साज़-पु० चाँदी सोने- वरोरु, वरोरू-वि० स्त्री० [सं०] उत्तम जाँघोंवाली; सुंदरी । का पत्तर बनानेवाला । मु०-उलटना-पुस्तकको उलट- वर्ग-पु० [सं०] स्वजातीय या समान-धर्मियोंका समूह; पलटकर देखना, पुस्तकपर सरसरी निगाह डालना; भारी दल; एक स्थानसे उच्चरित होनेवाले वर्षों का समूह; ग्रंथका परिवर्तन, क्रांति होना ।-स्याह करना-बहुत लिखना। विभाग, अध्याय; समान अंकोंका घात; ( स्क्वेयर ) वह वरज़िश-स्त्री० [फा०] अभ्यास, शारीरिक श्रम कसरत । समानांतर चतुर्भुज जिसकी चारों भुजाएँ बराबर और सब वरण-पु० [सं०] चुनना याचना करना; घेरना; ढकना; कोण समकोण हो । -पद-पु० वर्गमूल, वह संख्या रक्षण पतिका चुनाव; * रंग। -स्वातंत्र्य-पु० (फ्रीडम जिसके घात, गुणनसे वर्गका अंक प्राप्त हो । -पहेलीऑफ चॉइस) वरण करने, चुननेकी स्वतंत्रता ।
स्त्री० [हिं०] (क्रॉसवर्ड पजल) वह पहेली जिसमें दिये हुए वरणी-स्त्री० किसी धार्मिक कार्यके लिए वस्त्र, पात्रादि द्वारा संकेतोंके अनुसार खड़े और पड़े स्तंभोंके रिक्त खानोंमें, पुरोहितादिका सम्मान ।
जिनकी संख्या दोनों ओरसे (लंबाईके बल चाहे चौड़ाईवरणीय-वि० [सं०] चुनने योग्य; ग्रहण करने योग्य; के बल) बराबर होती है, उपयुक्त अक्षर बैठाकर शब्द प्रार्थना करने योग्य (वरके लिए)।
बनाने पड़ते है तथा जहाँ एकसे अधिक शब्द बननेकी वरदी-स्त्री० [अं॰] किसी विभागके कर्मचारियोंके लिए गुंजाइश हो वहाँ स्वविवेकसे सोंचित शब्दका चुनाव निर्धारित विशेष पहनावा।
करना पड़ता है। -फल-पु० समान राशियोंका गुणनवरना-* स० क्रि० चुनना, वरण करना;पतिरूपमें स्वीकार फल । -मूल-पु. वह संख्या जिससे वर्गीक बनता है ।
करना । पु० ऊँट । अ० [फा०] नहीं तो, फिर । वर्गलाना-सक्रि० उकसाना; बहकाना; किसीको उकवान-अ० वरम्, बल्कि, ऐसा नहीं (क०)।
साकर कोई काम कराना। वरम-पु० कवच, [अ०] शोथ, सूजन ।
वाँक-पु० [सं०] वह अंक जो किसी संख्याका वर्ग हो। वरही* -पु. मोर ।
वर्गीकरण-पु० [सं०] वर्गके अनुसार वस्तुओंका विभाग वरांग-पु० [सं०] मस्तक भग, योनि मुख्य भाग। करना। वरांगना-स्त्री० [सं०] सुंदर स्त्री।
वर्गीय-वि० [सं०] वर्ग-विशेषसे संबद्ध । पु० एक ही वर्गवराक-पु०[सं०] शिव युद्ध । वि० दीन दयनीय; भाग्य- | का सदस्य, अक्षर आदि । हीन; दुःखी; हीन, बुरा।
वर्चस्व-पु० तेज, प्रभाव; श्रेष्ठता (असाधु) । वराट-पु० [सं०] कौड़ी; रस्सी।
वर्चस्वान्(स्वत्)-वि० [सं०] शक्तिशाली; तेजोमय । वराटक-पु० [सं०] कोड़ी रस्सी; कमलगट्टा ।
वर्चस्वी(स्विन्)-बि० [सं०] तेजस्वी; उत्साही । वराटिका-स्त्री० [सं०] कौड़ी; नागकेसर तुच्छ वस्तु । वर्जक-वि० [सं०] छोड़नेवाला; निषेध करनेवाला । वरानना-स्त्री० [सं०] सुमुखी, सुंदर स्त्री।
वर्जन-पु० [सं०] निषेध; छोड़ना, त्याग; हिंसा, बध । वरान्न-पु० [सं०] उत्तम अन्न ।
वर्जना*-स० क्रि० निषेध करना, रोकना। वरार्थी(र्थिन)-वि० [सं०] वर चाहनेवाला।
वर्जित-वि० [सं०] त्यक्त, छोड़ा हुआ; अग्राह्यः निषिद्ध । वरासत-स्त्री० [अ०] वारिस होना; उत्तराधिकार मृत वर्य-वि० [सं०] वर्जनीय; निषिद्ध ।
संपत्ति, तरका, रिवथ। -की सनद- वर्ण-पु० [सं०] रंग; रँगने, लिखनेके काम आनेबाला वारिस होनेका प्रमाण-पत्र । -नामा-पु० उत्तराधिकार- रंग; जाति; भेद; अक्षर; शब्द; स्वर; ख्याति, यश; पत्र।
अच्छा गुण प्रशंसा: बाह्य रूप; पोशाक; एककी संख्या वरासतन-अ० [अ०] उत्तराधिकाररूपमें ।
सोना; धार्मिक कृत्य; अंगरागलेपन केसर । -क्रम-पु० वरासन-पु० [सं०] दूल्हेके बैठनेका पीढ़ा; उत्तम आसन । रंगोंका क्रम । -खंडमेरु-पु० छंदःशास्त्रकी एक क्रिया वराह-पु० [सं०] सूअर; भेड़ा; साँड़।
जिसके अनुसार बिना मेरुके निश्चित वर्गों के वृत्तों आदिवरिष्ठ-वि० [सं०] पूजनीय; सबसे अच्छा; बहुत भारी । की संख्या मालूम हो जाती है। -गत--वि०रँगा हुआ, वरीयता-स्त्री० (प्रेफरेंस) किसी वस्तुको दी गयी तरजीह, वणित; बीजगणित-संबंधी ।-च्छटा-स्त्री० (स्पेक्ट्रम) दे० अधिमान्यता।
'वर्णपट' ।-नाश-पात-पु० किसी अक्षरका शब्दमेंसे वरीयान् (यस्)-वि० [सं०] बड़ा, श्रेष्ठ; अधिक मान्य । लुप्त हो जाना।-पट-पु० (स्पेक्ट्रम) किसी छिद्र या दरारवरुण-पु० [सं०] एक आदित्य; एक देवता जो जलके से आनेवाले प्रकाशके त्रिपार्वकाच(प्रिज्म )पर पड़नेसे अधिपति और पश्चिमके दिक्पाल कहे गये हैं; जल, समुद्र दिखाई देनेवाले सात रंगोंकी पट्टी, वर्णच्छटा (ये रंग वे ही एक ग्रह (नेपच्यून)।
होते हैं जो इंद्रधनुष्के होते हैं)। -पताका-स्त्री० छंद--
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