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वाजपेयी-वानप्रस्त वाजपेयी(यिन)-पु० [सं०] वह व्यक्ति जिसने वाजपेय। वात्सल्य रसको दसवाँ रस मानते हैं)। यज्ञ किया हो ब्राह्मणोंकी एक उपाधि ।
वाद-पु० [सं०] बातचीत; किसी तत्त्व, सिद्धांत आदिपर वाजिब-वि० [अ०] जरूरी उचित; करणीय ।
विचार-विमर्शके लिए होनेवाली बातचीत; तक बहस वाजिबी-वि० [अ०] उचित; आवश्यक ।
विवरण, व्याख्या सिद्धांत; किसी शास्त्रके विशेषशों द्वारा वाजी (जिन्)-पु० [सं०] घोड़ा; अडूसा।
निश्चित मूलभूत तत्त्वों या सिद्धान्तोंका समाहार, ध्वनि; वाजीकरण-पु० [सं०] औषध द्वारा शक्तिवर्द्धन या | ध्वनि करना; अफवाह; उत्तरदावा। -अस्त-वि० कामोद्दीपन।
अनिश्चित, अनिणीत, विवादास्पद । -पत्र-पु० (प्लेंट) वाट-पु० [सं०] बाड़ा, घेरा; सड़क, मार्ग।
वादी द्वारा किसीके विरुद्ध न्यायालयमें उपस्थित किया वाटिका-स्त्री० [सं०] बगीचा; उद्यान ।
गया लिखित आरोप। -पद-पु० ( इशू) न्यायालयके वाडब, पाडव-वि० [सं०] घोड़ी-रबंधी। पु० समुद्रके | सामने रखा गया वह विषय जो उभय पक्षोंके
अंदरकी आग ब्राह्मण, घोड़ा या घोड़ियोंका समूह । बीचके झगड़ेका मूल कारण हो। -प्रतिवाद-पु० वाडवाग्नि-स्त्री० [सं०] समुद्र के अंदरकी आग ।
बहस, उत्तर-प्रत्युत्तरशास्त्रीय तत्त्वविचारमें होनेवाला वाडवानल-पु० [सं०] दे० 'वाडवाग्नि' ।
कथोपकथन । -मूल-पु० (कॉज ऑफ ऐक्शन) वाण-पु० [सं०] दे० 'बाण' ।
कोई व्यवहार या मुकदमा न्यायालयमें उपस्थित किये वाणिज्य-पु० [सं०] व्यापार; (कॉमर्स) बड़े पैमानेपर जानेका कारण वह झगड़ा जिसके कारण न्यायालयमें किया जानेवाला व्यापार जिसमें बैंकोंका कारबार, कंप- मामला चलाया जाय । -युद्ध-पु० झगड़ा; बहस । नियोंके हिस्सोंकी खरीद-बिक्री, बीमा-संबंधी उद्योग आदि -विषाद-पु. झगड़ा; बहस । -विषय-पु० (मैटर भी सम्मिलित हैं। -दूत-पु० किसी देशका वह प्रति- फॉर डिसकशन, सबजेक्ट मैटर ) वह विषय जिसके संबंधनिधि जो अन्य देशमें स्वदेशके व्यापारिक हितोंकी रक्षाके | में विवाद या चर्चा की जाय, विचारणीय विषय । - लिए नियुक्त हो।
व्यय-पु. (कारटम ) वाद या मुकदमेका व्यय जो वाणिज्यालय-पु० [सं०] (एंपोरियम) वाणिज्यका मुख्य न्यायालय द्वारा जीतनेवाले पक्षको दिलाया जाय । - स्थान, बाजार; बड़ी दुकान ।
समाप्ति-स्त्री० (अबेटभेंट ऑफ सूट ) मामले या मुकवाणी-स्त्री० [सं०] सरस्वती; सार्थक शब्द, वचन बोली। दमेका खारिज कर दिया जाना । -हेतु-पु० (इशू) वात-पु० [सं०] वायुः पवनदेवः शरीरसे निकली हुई | झगड़ेका विषय जो न्यायालयके सामने उपस्थित हो और हवा; शरीरस्थ वायुके प्रकोपसे होनेवाले रोग, गठिया जिसके तंबंधमें न्यायाधीशको निर्णय करना हो; दे० आदि । -चक्र-पु० ज्योतिषमें एक योग ( इसमें वायुकी 'वादमूल'। दिशासे फलाफलका विचार किया जाता है); बवंडर । वादक-पु० [सं०] शास्त्रार्थ करनेवाला; बजानेवाला। -ज-वि० वायुसे उत्पन्न । -ज्वर-पु० वात कुपित
-दल,-वृंद-पु० (आरकेस्ट्रा) नाट्यशालामें विशेष होनेसे उत्पन्न होनेवाला एक ज्वर ।-प्रकोप-पु० वायुकी
स्थानपर समवेत होकर बाजा बजानेवालोंका दल या समूह । अधिकता ।-व्याधि-स्त्री० गठिया । सख-पु० अग्नि।।
वादन-पु० [सं०] बाजा बजाना । वातात्मज-पु० [सं०] हनूमान् ; भीम ।
वादा-पु० [अ० 'वायदा'] वचन, प्रतिज्ञा, करार; कर्ज वातापि-पु० [सं०] एक राक्षस (कहते हैं यह भेड़ बन
अदा करनेका वक्त । -खिलाफ-वि. वचन भंग करनेजाता था और उसका भाई आतापि इसे मारकर ऋषियों
वाला, जो वादोंको पूरा न करे। -खिलाफ़ी-स्त्री० को खिला देता था और फिर नाम लेकर पुकारता तो यह
वचन-भंग । -शिकन-वि० वादोंको तोड़नेवाला। पेट फाड़कर निकल आता। ऐसे ही एक अवसरपर अगस्त्य
|वादानुवाद-पु० [सं०] शास्त्रार्थ, तर्क-वितर्क । इसे पचा गये ।)-द्विट (प),-सूदन,-हा (हन्)- वाटिन-पु० [सं०] बाजा; संगीत । -लगुड-पु० नगाड़ा पु० अगस्त्य ।
आदि बजानेकी लकड़ी। वातायन-पु० [सं०] झरोखा, खिड़की।
वादी(दिन)-पु० [सं०] बोलनेवाला, वक्ता; पूर्ववक्ता, वातारि-पु० [सं०] एरंड; शतमूली; शेफालिका, सूरन । | अदालतमें कोई अभियोग, मुकदमा चलानेवाला, मुदई; वातावरण-पु० [सं०] पृथ्वीके चतुर्दिक स्थित वायुः परि- गायक; बाजा बजानेवाला; रागका मुख्य स्वर । स्थिति, जीवनको प्रभावित करनेवाली परिस्थिति ।
वाद्य-पु० [सं०] बाजा, बाजेका स्वर बजाना; कथन, वातावर्त-पु० [सं०] बवंडर ।
भाषण । वि. जो कहा या बजाया जानेको हो।-संगीत वाताश, वाताशी (शिन्)-पु० [सं०] साँप ।
-पु० (इंस्ट्र मेंटल म्यूजिक) वाद्य-पत्रों द्वारा उत्पन्न की वातास*-स्त्री० बयार, हवा ।
गयी मधुर ध्वनि । -स्थान-पु. (आरकेस्ट्रा) नाट्यवातुल-वि० [सं०] वातग्रस्त, गठिया रोगसे पीड़ित वायु
शाला या वाद्यभवनका वह स्थान जहाँ सामूहिक रूपसे प्रकोपसे जिसकी बुद्धि ठिकाने न हो; पागल ।
बाजा बजानेवाले बैठते हैं। वात्या-स्त्री० [सं०] बवंडर; अंधड़ । -चक्र-पु० बवंडर।वाद्यमान-वि० [सं०] जो बजने या बोलने में प्रवृत्त किया वात्सरिक-वि० [सं०] वार्षिक । पु० ज्योतिषी ।
जाय । पु० वाघ संगीत ।। वात्सल्य-पु० [सं०] प्रेम, स्नेहा संतानके प्रति माता
, स्नहीं सतानक प्रात माता | वानप्रस्थ-पु० [सं०] आर्योंके चार जीवन-विभागों, आश्रपिताका स्नेह । -रस-पु० एक भाव (कुछ आचार्य मोमेंसे तीसरा, इस आश्रममें प्रविष्ट व्यक्ति, उदासी
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