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प्रेष्य- फंद
प्रेष्य- वि० [सं०] दे० 'प्रेषितव्य' । पु० नौकर चाकर, टहलू ; दूत; सेवा । - वस्तु-आलेखन- पु० (बुकिंग ) (रेलके मालगोदाम आदिसे) भेजे जानेवाले मालका विवरण आदि रजिस्टर में चढ़ाना और उसकी रसीद काटना | प्रेस - पु० [अ०] वह कल जिससे कोई चीज दबायी या पेरी जाय; छापनेकी कल; वह स्थान या कार्यालय जहाँ छपाईका काम होता हो, छापाखाना। - ऐक्ट- पु० प्रेससंबंधी कानून, वह कानून जिसके द्वारा छापेखानेवालोंके अधिकारों आदिका नियंत्रण किया जाता है। -गैलरी - स्त्री० असेंबली आदि में अखवारोंके रिपोर्टरोंके बैठनेकी जगह । - रिपोर्टर- पु० वह व्यक्ति जो पत्रके लिए समाचार एकत्र करता है । मु० (किसी चीजका ) - में होना-छपनेकी स्थिति में होना ।
प्रोक्त-वि० [सं०] कहा हुआ, उक्त, कथित । प्रोक्ति - स्त्री० [सं०] दूसरेकी उक्ति जो कही उद्धृत की जाय (कोटेशन) ।
प्रोग्राम - पु० [अ०] किसी व्यक्ति या आयोजनका कार्यक्रम; वह पत्र या कागज जिसपर कोई कार्यक्रम लिखा हो । प्रोत - वि० [सं०] सिला हुआ, गूंथा हुआ; पिरोया हुआ । प्रोफुल्ल - वि० [सं०] अच्छी तरह खिला हुआ, पूर्ण रूप से विकसित । प्रोत्साहक-पु० [सं०] उत्साह बढ़ानेवाला, पीठ ठोंकने
वाला ।
प्रोत्साहन - पु० [सं०] उत्साह या हिम्मत बढ़ाना | प्रोत्साहित - वि० [सं०] जिसका उत्साह बढ़ाया गया हो, जिसको बढ़ावा दिया गया हो ।
प्रोद्धरण - पु० [सं०] (साइटेशन) किसी लेख, पुस्तक आदिसे कोई अंश पढ़कर सुनाना या उद्धृत करना; इस तरह लिया हुआ अंश ।
प्रोद्भूत होना - अ० क्रि० ( टु एक ) ( पूँजी पर ब्याज आदि) निकलना, किसीके स्वाभाविक परिणाम या परि लाभ आदिके रूप में सामने आना, दिखाई देना । प्रोनोद-पु० [अ०] वह रुक्का जो कर्ज लेनेवाला शर्तोंके साथ रसीद के तौर पर लिखता है, हैंडनोट । प्रोफ़ेसर - पु० [अ०] किसी विश्वविद्यालय या बड़े विद्यालयका अध्यापक; वह जो सिखलाने या द्रव्योपार्जनके लिए कला-संबंधी विशिष्ट कार्य करे । प्रोषित - वि० [सं०] जो परदेश गया हो, प्रवासी । - पतिका, प्रेयसी, भर्तृका - स्त्री० वह स्त्री जिसका पति परदेश गया हो । मोहित* - पु० दे० 'पुरोहित' ।
फ - देवनागरी वर्णमालाका बाईसवाँ व्यंजन वर्णं । फंक * - स्त्री० फाँक, चीरा हुआ टुकड़ा । फॅकनी - स्त्री० दे० 'फंकी' ।
फंका - पु० उतना दाना या चूर्ण जितना एक बार फाँका या खाया जाय; * फाँक, टुकड़ा। मु० - करना - नष्ट | करना । - मारना - फॉकना ।
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प्रौढ - वि० [सं०] जिसकी पूरी वृद्धि हो चुकी हो, जो पूरा बढ़ चुका हो, प्रवृद्ध; जिसकी उम्र अधिक हो चली हो, तीस और पचास के बीच की अवस्थावाला, पुष्ट, परिपक्व; जिसमें पूर्णता आ गयी हो (जैसे प्रौढ़ विद्वान् ); निपुण, दक्ष; जिसे किसी बातका पूरा अनुभव हो, अनुभवी, परितबुद्धि; गाढ़ा, घना; प्रगल्भ; उग्र ।
प्रौढता - स्त्री०, प्रौढत्व - पु० [सं०] प्रौढ़ होने का भाव । प्रौढा - वि० स्त्री० [सं०] 'प्रौढ' का स्त्रीलिंग । स्त्री० वह स्त्री जिसकी उम्र अधिक हो चली हो, तीससे लेकर पचास या पचपनके बीच की अवस्थावाली स्त्री; सब प्रकारकी रतिमें निपुण तथा कम लज्जा और प्रचुर कामवासनावाली अधिक अवस्थाको नायिका (सा० ) । - अधीरास्त्री० वह प्रौढा नायिका जो अपने नायकमें परस्त्री-संभोगके चिह्न देखकर अधीर हो उठे। - धीरा- स्त्री० नायिकाका एक भेद । - धीराधीरा - स्त्री० नायिकाका एक भेद | प्रौढोक्ति - स्त्री० [सं०] प्रबल उक्ति; एक काव्यालंकार | प्रौद्योगिक शिक्षा-स्त्री० [सं०] ( टेक्नीकल एजुकेशन ) किसी विशेष कला या व्यवसाय संबंधी शिक्षा । लवंग - पु० [सं०] वानर; हिरन; पाकड़का पेड़ । लवंगम - पु० [सं०] मेढकः वानर | गेंद्र - पु० [सं०] हनूमान् ।
लवन - पु० [सं०] तैरनेकी क्रिया, तैरना; उछलना, कूदना; उड़ना; महाप्लावन; दाल, उतार ।
प्लावन - पु० [सं०] जल आदिका उमड़कर बहना; गोता लगाना; प्रलयकालीन भारी बाढ़; बाढ़, सैलाब । लावनिक - वि० [सं०] ( डाइलूवियल) महाप्लावन या प्रलय से संबंध रखनेवाला ।
प्लावित - वि० [सं०] जिसपर पानी चढ़ आया हो, जो जलमें डूब गया हो; जल आदि से व्याप्त । पु० बाढ़ | प्लीहा - स्त्री० [सं०] तिल्ली, बरवट | प्लीहोदर - वि० [सं०] तिल्ली रोग ।
प्लुत - वि० [सं०] जल आदिसे व्याप्त, तराबोर | पु० तीन मात्राओंवाला स्वर या वर्ण ।
प्लेग - पु० [अ०] कोई भयानक संक्रामक रोग; एक भयानक संक्रामक रोग जिसमें गिलटी निकलती है और बहुत तेज बुखार आता है, ताऊन ।
लैटफार्म - पु० [अ०] कोई चौकोर और चौरस चबूतरा, विशेषतः वह जिसपरसे भाषण या उपदेश किया जाय, मंत्र; रेलवे स्टेशनोंपरका वह लंबा-ऊँचा चबूतरा जिसके सामने ट्रेन लगती है और जिसपर से होकर लोग उसपर सवार होते या उससे उतरते हैं ।
फंकी - स्त्री० फाँकी जानेवाली दवा; रेचन चूर्ण; + छोटी फाँक ।
फंग* - पु० फँदा, बंधन - 'मति कोई प्रीतिके फंग परै' -सू०; अधीनता; प्रेम, अनुराग ।
फंद* - पु० फंदा, फाँस, बंधन; मायाजाल; छल, कपट; दुःख । - वार- वि० फंदा लगानेवाला, फँसानेवाला ।
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