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मोड़ी-मोर्चा मोड़ी-स्त्री० मराठी भाषाकी एक लिपि ।
नाक-अस्थिरचित्त व्यक्ति, जिससे जो बात चाहो मनवा मोतदिल-वि० [अ०] जिसमें एतदाल (समता) हो, न लो।-की मरियम-अति सुकुमार स्त्री। मु०-होनागरम न तर, समशीतोष्ण; औसत दरजेका ।
पिघलना, नरम होना; कठोर हृदयका दयासे द्रवित हो मोतबर-वि० [अ०] एतबार करने लायक, विश्वसनीय । जाना। मोतियदाम-पु० एक वर्णवृत्त ।
मोमिन-वि० [अ०] ईमानदार, सच्चा । पु० सच्चा मुसलमोतिया-पु० बेलेका एक भेद; एक तरहका सलमा। स्त्री० मान; मुसलमान जुलाहा; शीया । एक चिड़िया। वि० मोतीके जैसा; छोटे गोल दानोंवाला। मोमिया-स्त्री० [फा०] मसाला लगाकर रखी हुई सूखी -बिंद-पु० आँखों में पानी उतरनेका रोग जो प्रायः लाश; वह मसाला जिसे सड़नेसे बचाने के लिए लाशपर बुढ़ापे में होता है।
लगाते थे। मोती-पु० एक बहुमूल्य रत्न जो सीपीमेंसे निकलता है, मोमियाई-स्त्री० [फा०] एक तरहका शिलाजतु । मुक्ता। * स्त्री० बाली। -चूर-पु० छोटी बँदियोंका मोमी-वि० मोमका, मामका बना हुआ। -छाँट-स्त्री० लड्ड। -झिरा-पु० छोटे दानोंकी चेचक । -बेल*- एक तरहकी बहुत मुलायम छींट । -मोती-पु० एक स्त्री० मोतिया बेला । -भात*-पु० एक तरहका भात । तरहका नकली मोती। -(तियौँ)का झाला-कानमें पहननेका एक आभूषण । मोयन-पु० खस्तेपनके लिए गूंधते समय आटेमें घी देना । मु०-उगलना-मुँहसे सुंदर मधुर शब्दावली निकालना। -दार-वि० जिसमें मोयन दिया गया हो। -गरजना-मोतीमें बल पड़ जाना ।-ठंढा होना-मोती- मोरंग-पु० नेपालका पूर्वी भाग। का टूट जाना या बेआब हो जाना। -धूलमें कोलना-मोर-पु० एक बड़ा पक्षी जो अपनी सुंदरता और नृत्यके सुंदर, बहुमूल्य वस्तुकी बेकदरी करना। -पिरोना- लिए प्रसिद्ध है, मयूर । [स्त्री०-'मोरनी'।]-चंदा*-पु० मोतियोंकी लड़ी बनाना; बहुत सुंदर अक्षर लिखना; सुंदर, दे० 'मोरचंद्रिका' ।-चंद्रिका-स्त्री० मोरपंखके ऊपर बनी ललित शब्दावली लिखना, बोलना। -रोलना-मोती हुई चंद्राकार बूटियाँ । -चाल-पु० एक तरहकी कसरत । बटोरना; बिना मेहनतके धन कमाना। -(तियों)से -छल-पु० मोरकी पूँछके परोंका चँवर । -छली-पु० माँग भरना--माँगमें मोती पिरोना ।-से मुँह भरना- मोरछल हिलानेवाला । -छाँह-स्त्री० दे० 'मोरछल'। खुशखबरी या सुंदर बातसे रीझकर निहाल कर देना। -ध्वज-पु० एक राजा जो कृष्णके कहनेसे अपनी देह मोतीसिरी*-स्त्री० मोतियों की माला ।
आरेसे चिरवानेके लिए तैयार हो गया था। -पंखीमोथरा*-वि० भोथरा, कुंद ।
वि० मोरके पंखके रंगका । स्त्री०वह नाव जो मोरके पंखमोथा-पु. नागरमोथा।
के आकारकी हो; एक तरहका पंखा जो खोलनेसे मंडलामोद-पु० [सं०] हर्ष, आहाद; सुगंध ।
कार हो जाता है ।-पखा*-पु० मोरका पंख, मोरपंखमोदक-पु० [सं०] लड्ड; मिठाई; एक वर्णसंकर जाति । की कलगी। -मुकुट-पु० मोरपंखका मुकुट जिसे बाल-कार-पु० हलवाई।
लीलाके समय कृष्ण धारण किया करते थे। मोदन-पु० [सं०] हर्प; आनंद देना; सुगंध बिखेरना। मोरचा-पु० [फा०] किलेके रक्षार्थ उसके चारों ओर खोदी मोदना*-अ.क्रि० आनंदित होना, प्रसन्न होना; सुगंध हुई खाई; युद्धके सुभीतेके लिए खोदी हुई खाई आदि; फैलाना-'फूल फूलतरु फूल बढ़ावत । मोदत महामोद मोरचेपर या उसके भीतर रहनेवाली सेना।-बंदी-स्त्री० उपजावत'-राम० । स० क्रि० प्रसन्न करना।
खाई, धुस आदिसे शत्रुसेनाकी मारसे बचते हुए लड़नेका मोदित-वि० [सं०] मुदित, हर्षयुक्त ।
प्रबंध करना। मु०-बाँधना-मोरचाबंदी करना । मोदी-पु० दाल, चावल आदि बेचनेवाला, परचूनिया। -मारना,-लेना-मोरचा जीतना। मोधू-वि० भोंदू, मूढ़ ।
मोरचा-पु० [फा०] नमी पहुँचनेसे लोहे पर जमनेवाली मोन*-पु० दे० 'मोना'।
पीलापन लिये हुए लाल तह जो उसको धीरे-धीरे खा मोना-* सु० वि० भिगोना । पु० झाबा, पिटारा।। डालती है,जंग; आईनेपर जमा हुआ मेल । मु०-खानामोनिया-स्त्री० छोटा मोना।
जंग लगना; काम न लेनेसे गुण-शक्तिका घटना, छीजना। मोनो-टाइप-मशीन-स्त्री० [अं०] कंपोज करनेवाली वह मोरन*-स्त्री० सिखरन । मशीन जिसमें एक-एक अक्षर ढलता और कंपोज होता मोरना*-स० क्रि० दे० 'मोड़ना'; दहीसे मक्खन चलता है।
निकालना। मोपला-पु० भलाब रमें बसनेवाली एक मुसलमान जाति। मोरनी-स्त्री० मादा मोर; नथमें लटकानेका टिकरा । मोम-पु० हलके पीले रंगका पिघलनेवाला पदार्थ जिससे | मोरवा-पु० एक वृक्ष, मुष्क; * मोर, मयूर ।
शहदकी मक्खियाँ अपना छत्ता बनाती है; जमाया हुआ मोराना*-स० कि० फिराना; पत्थर के कोल्हू में ईखकी मिट्टीका तेल । -गर्द-पु० मोमकी चीजें बनानेवाला। अँगारियाँ डालना। -जामा-पु० मोमका रोगन चढ़ाया हुआ कपड़ा जिसपर मोरी-स्त्री० नाली; गंदे पानीकी नाली; * बागडोरपानी फिसल जाता है। -दिल-वि० नरम दिलवाला, | 'आयो चोर तुएँग मुसि लै गयोमोरी राखत मुगध फिरै'दयाचित्त । -बत्ती-स्त्री० भोटे धागेपर मोम चढ़ाकर कबीर: मोरनी। बनायी हुई बत्ती जिसे रोशनीके लिए जलाते हैं। -की मोर्चा-पु० दे० 'मोरचा'।
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