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झाँसा।
बहनोई-बहिर्यात्रा
५६० बहनोई-पु० बहिनका पति, भगिनीपति ।
फूल; एक रागिनी । -गुर्जरी-स्त्री० एक रागिनी। - बहनौता-पु० बहिनका बेटा, भांजा ।
नशाख-पु० एक राग । (बहारे)दानिश-स्त्री० फारसीबहनीरा-पु० बहिनकी ससुराल ।
का एक प्रसिद्ध कहानी-संग्रह । -हुस्न-स्त्री० रूपकी बहम-पु० दे० 'वहम'।
छटा, यौवनश्री । मु०-पर आना,-पर होना-जवानीबहर*-अ० बाहर-'गावत बधाई सूर भीतर बहरके'- सू०। पर आना, खिलना, पूर्ण विकास होना । स्त्री०, पु० दे० 'बहू'।
बहारना -स० क्रि० झाड़ना, झाडू. लगाना। बहरा-वि. जिसे सुनाई न दे, श्रवणशक्तिहीन; ऊँचा बहारी, यहारू-स्त्री० बढ़नी, झाडू. । सुननेवाला; अनसुनी करनेवाला, ध्यान न देनेवाला बहाल-अ० [फा०] असली हालतपर, पूर्ववत् । वि० ज्यों(-बन जाना) । मु०-पत्थर-बहुत ज्यादा बहरा। का त्यों प्रसन्न, खुश तंदुरुस्त कायम । बहराना-स० क्रि० दे० 'बहलाना'; * बाहर करना । * बहाली-स्त्री० पुननियुक्ति; भुलावा देनेवाली बात,
अ० क्रि० बाहर होना; बह जाना; उड़ जाना। बहरियाज-वि० दे० 'बाहरी' । पु० मंदिरका सेवक जो बहाव-पु० बहनेका भाव या क्रिया, प्रवाह, धारा । बाहर रहे (वल्लभसंप्रदाय)।
बहिः(हिस्)-अ० [सं०] बाहर, भीतरका उलटा बाहर बहरियाना -स० क्रि० बाहर करना; अलग करना । अ० से, अलग। -शाला-स्त्री० बाहरका कमरा । -शीतवि० बाहर या बाहरकी और जाना; अलग हो जाना। वि० जो वाहर टंढा हो। -सद्-वि० बाहर बैठनेवाला। बहरी-स्त्री० बाजसे मिलती-जुलती एक शिकारी चिड़िया। -स्थ-वि० बाहरका । -स्पर्शी-वि० (सूपरफीशियल) वि० बही, दरियाई, समुद्री।
भीतरतक न जानेवाला, ऊपरी, दिखाऊ । बहल-स्त्री० छतरीदार बैलगाड़ी, बहली।
बहिक्रम*-पु० उम्र, अवस्था । बहलना-अ० क्रि० मनका दुःख, क्लेश देनेवाली बातसे बहित्र-पु० दे० 'वहित्र' । हटकर प्रसन्नताजनक व्यापारमें लगना, मनोरंजन होना। | बहिन-स्त्री० पिताकी पुत्री, भगिनी । बहलाना-स० कि० मनको दुःख, केश देनेवाली बातसे | बहिनापा-पु० दे० 'बहनापा' । हटाकर प्रसन्नताजनक विषय, व्यापारमें लगाना, दिल | बहियाँ*-स्त्री० बाँह । खुश करना, मनोरंजन करना; भुलावा देना, बहकाना । बहिया-स्त्री० बाढ़, प्लावन । बहलाव-पु० मनका बहलना, किसी प्रसन्नताजनक विषय, बहिरंग-वि० [सं०] बाहरी, अंतरंगका उलटा, बाहरवाला । व्यापार में लग जाना।
पु० बाहरी भाग, अंग । बहली-स्त्री० दे० 'बहल' ।
बहिर, बहिरा*-वि० बहरा, बधिर । बहल्ला*-पु० आनंद ।
बहिरत* --वि० बाहर। बहल्ली-स्त्री० कुश्तीका एक पेंच ।
बहिरर्थ-पु० [सं०] बाह्य उद्देश्य । बहस-स्त्री० [अ०] सवाल-जवाब; वाद-विवाद, खंडन- | बहिराना-स० वि० बाहर निकालना। अ० क्रि० बाहर मंडन, हुज्जत, झगड़, मुकदभेमें पक्षविशेषके वकीलका | होना; बहरा होना। अपने पक्षको युक्ति-प्रमाणके साथ प्रस्तुत करना; मतलब, | बहिर्गत-वि० [सं०] बाहर गया हुआ; जो बाहर हो; लगाव (मुझे दूसरेसे कोई बहस नहीं); * होड़। -मुबा- अलग; (आउट) (गेंद-बल्ला आदिके खेल में वह खेलाड़ी) हिसा-पु० बाद-विवाद, शास्त्रार्थ ।
जो गेंदके आघातसे यष्टियोंके ऊपरकी गुल्लीके गिर जाने, बहसना*-अ० क्रि० बहस करना; होड़ लगाना। पदबाधा या गेंदके लोक लिये जाने आदिके कारण बल्लेबहादर*-वि० दे०'बहादुर' । पु० सैनिक, सिपाही-'आये | बाजी करते रहनेके अधिकारसे वंचित हो गया हो; जो बीर बादर बहादर मदनके'-भृ० ।
घरमें या कार्यालय आदिमें न हो, बाहर गया हो; जो बहादुर-वि० [फा०] शूर-वीर; साहसी, निडर ।
पदासीन या अधिकारारूढ़ न रह गया हो; जो प्रकट या बहादराना-अ० [फा०] वीरतापूर्वक, वीरोचित प्रकारसे ।। प्रकाशित हो गया हो। वि० वीरोचित, वीरतासूचक ।
बहिर्गमन-पु० [सं०] बाहर जाना।-द्वार-पु० (एग्ज़िट) बहादुरी-स्त्री० [फा०] वीरता, भरदानगी।
(किसी सिनेमा, नाट्यशाला आदिके) प्रकोष्ठ या भवनसे बहाना-स० क्रि० बहनेका कारण, कर्ता होना, जल या| बाहर निकल नेका रास्ता । दूसरे प्रकार के द्रव पदार्थको किसी दिशामें प्रवाहित करना; बहिर्गामी(मिन)-वि० [सं०] बाहर जानेवाला । वहनेके लिए धारामें डालना; बूंदों या धाराके रूपमें बहिर-पु० [सं०] बाहरी दरवाजा, तोरण । गिराना, ढालना (आँसू बहाना); सस्ता बेचना; उड़ाना; | बहिनिःसारण-पु० [सं०] बाहर निकालना। बरबाद करना । पु० [फा०] किसी कामके करने या न | बहिर्भूत-वि० [सं०] जो बाहर हो या हो गया हो, बहिकरनेका झूठा, बनावटी हेतु, मिस, हीला निमित्त, व्याज। गत । (बहाने)बाज़ी-स्त्री० बहाने बनाना।
बहिर्मनस्क-वि० [सं०] जिसका मन किसी और जगह हो। बहाने-अ०.""के बहानेसे;""के हेतु, निमित्त बनाकर। बहिर्मुख-वि० [सं०] जिसका मन बाहरी विषयों में उलझा, बहार-स्त्री० [फा०] वसंत ऋतु; खिलती हुई जवानी; आसक्त हो, विमुख । पु० देवता । विकास; शोभा आनंद, लुत्फ, मजा, तमाशा; नारंगीका बहिर्यात्रा-स्त्री०, बहिर्यान-पु० मिं०] बाहर जाना,
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