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फटना-फदफदाना
५३२ करना।
करना पंख आदिको इस प्रकार हिलाना कि उससे 'फड़फटना-अ० क्रि० किसी प्रकारके दबाव या आघातसे किसी फड़' शब्द उत्पन्न हो, फटफटाना । अ० क्रि० 'फड़-फड़' वस्तुका दो या अधिक खंडों में विभक्त हो जाना या उसमें शब्द होना; छटपटाना; उत्सुक होना । दरार पड़ जाना, विदीर्ण होना; किसी पैनी या नुकीली | फड़वाना-स० क्रि० किसीको फाड़ने में प्रवृत्त करना, किसीचीजके संयोगसे किसी वस्तुमें दरार पड़ जाना या उसका से फाइनेका काम कराना। कोई भाग अलग हो जाना; आवरणके रूपमें फैले हुए फड़िया-पु० फुटकर माल बेचनेवाला बनिया; जुपके अनु. पदार्थका छिन्न-भिन्न हो जाना (जैसे-बादल फटना, अंध- | का मालिक, सभिक । कार फटना); पृथक हो जाना दूध आदिका इस प्रकार फड़ी-स्त्री० ईंट, पत्थर आदिका एक गज चौड़ा, एक गज विकृत होना कि उसका जलभाग सारभागसे अलग हो | ऊँचा और तीस गज लंबा ढेर । जाय; किसी वस्तुकी अधिकता होना (पड़नाके साथ); फ.डई, फ.डही -स्त्री० फरबी, लाई, छोटा फावड़ा। घोड़ेका सवारके आदेशके विरुद्ध चलना ।
फण-पु० [सं०] साँपका फन; नासापुट, नथना। -करफटफटाना-सक्रि० किसी वस्तुसे 'फट-फट' शब्द उत्पन्न पु० साँप । -धर-पु० साँप; शिव ।-धरधर-पु०शिव । करना; बकवास करना; दौड़-धूप करना । अ० क्रि० 'फट- -भृत्-पु० साँप; नौकी संख्या । -मंडल-पु० फट' शब्द होना।
साँपका फन जो फेंटी मारनेसे गोलाकार हो गया हो, फटहा-वि० फटा हुआ; अंड-बंड बकनेवाला।
कुंडलीकृत फण। -मणि-पु० सर्पके फनपर स्थित फटा-स्त्री० [सं०] साँपका फन । वि० [हिं०] जो फट मणि । गया हो, जिसमें फटाव या दरार हो गया-गुजरा। पु० फणवान (वत्)-पु० [सं०] सर्प । छेद । (फटी)आवाज़ -स्त्री०भर्रायी हुई आवाज ।(फटे)- फणा-स्त्री० [सं०] दे० 'फण' । -कर-पु० सर्प ।-धरहाल-वि० जिसके पास कुछ न हो।-हालौँ-अ० अर्कि
जिसक पास कुछ नहा। हाला-अ० आक- पु० साँप; शिव। चनताकी स्थिति में, मुफलिसीकी हालत में । मु०-(किसी- फणावान(वत्)-पु० [सं०] सर्प ।
से पाँव अडाना या देना-जान-बूझकर फणींद-५० [सं०] शेषनाग; वासुकि पतंजलि मुनि । किसीके झगड़े में पड़ना,किसीकी बला अपने सिर लेना। फणी(णिन)-पु० [सं०] सर्प; राहुः पतंजलि; राँगा या फटाका-पु० 'फट'की बुलंद आवाज | पटाखा । ___टीन । -पति-पु० बड़ा सर्प, शेष या वासुकि पतंजलि । फटाटोप-पु० [सं०] साँपका फन फैलाना, फनका फैलाव। | फणीश-पु० [सं०] दे० 'फणींद्र'। फटाटोपी(पिन)-पु० [सं०] साँप ।
फतवा-पु० [अ०] किसी कर्मके उचित या अनुचित होनेके फटाव-पु० फटनेकी क्रिया; फटनेसे पड़ी दरार; फटने संबंधमें मुफ्ती या मुला (धर्माचार्य) द्वारा शास्त्रके अनुसार जैसी पीड़ा।
दी गयी व्यवस्था। फटिक-पु० दे० 'स्फटिक' ।
फतह-स्त्री० [अ०] विजय, जीत; सफलता, कामयाबी । फट्ठा-पु० चीरे हुए बाँसका लंबा टुकड़ा।
-नसीब,-मंद,-याब-वि० जिसे विजय प्राप्त हुई हो, फट्टी-स्त्री० पतला फट्टा।
विजयी; सफल, कामयाब । -नामा-पु० जीतकी खुशीफड़-स्त्री० जुएका दाँव जुआड़ियोंके जुआ खेलनेका स्थान, | में की जानेवाली रचना। जुएका अड्डा; दुकानमें वह स्थान जहाँ बैठकर दुकानदार फतिंगा-पु० कोई परदार कीड़ा, विशेषकर वह जो दीपक माल बेचता है; पंख आदिके हिलनेसे उत्पन्न होनेवाला । या प्रकाशपर झुकता है, पतंग, परवाना। शब्द; * दल, पंक्ति । पु० गाड़ीका हरसा; वह गाड़ी तीला-पु० [अ०] दीपकी बत्ती; रुईकी मोटी बत्ती; जिसपर तोप चढ़ी रहती है, चरख । -फड़-स्त्री० दो वंदूक या तोपमें दी जानेवाली बत्ती, पलीता । या अधिक बार उत्पन्न 'फड़' शब्द, 'फड़' शब्दकी अनेक फतुही-स्त्री० दे० 'फ़तूही' । बार आवृत्ति । -बाज़-पु० जुआ खेलनेवाला, जुआड़ी। फतूर-पु० दे० 'फतूर'। -बाज़ी-स्त्री० फड़बाजका काम, जुआ खेलना। मु०- | फतूरिया-वि०, पु० दे० 'फ़तूरिया' । रखना,-लगाना-दाँव लगाना।
फतूह*-स्त्री० [अ० 'फुतूह'-फतहका बहु०] विजय, फड़क-स्त्री० फड़कनेकी क्रिया या भाव, स्पंदन, स्फुरण । जीत; लूटका माल । फड़कन-स्त्री० दे० 'फड़क'।
फतूही-स्त्री० [अ०] कमरतककी एक प्रकारकी बिना फड़कना-अ० कि० रुक-रुककर या अचानक चलायमान | आस्तीनकी कुरती जिसमें सामनेकी और बटन या धुंडी होना, थोड़ा-थोड़ा कंपित होना; शरीरके किसी अंग या | लगायी जाती है। भागका रुक-रुककर गतियुक्त होना या सिकुड़ना और | फते*-स्त्री० फतह, विजय । फैलना, स्फुरित होना हिलना-डुलना या गतियुक्त होना । | फतेह*-स्त्री.विजय, जीत । मु० फड़क उठना-प्रसन्न होना।
फदकना-अ० क्रि० 'फद-फद' शब्द करना; भात, रस फड़काना-स० क्रि० किसीको फड़कनेमें प्रवृत्त करना आदिका पकते समय 'फद-फद' शब्द करना; * दे० उत्सुकता उत्पन्न करना (ला०) ।
'फुदकना। फड़नवीस-पु० मराठोंके शासन-प्रबंधमें एक उच्च पद । फदफदाना-अ० क्रि० शरीर में अधिक फुसियाँ या गरमीफड़फड़ाना-सक्रि० किसी वस्तुसे 'फड़-फड़' शब्द उत्पन्न । के दाने निकल आना; वृक्ष या पीधेमें बहुतसी शाखाएँ
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