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प्राक्तन-प्राण
५२४ गया अनुमान । -काल-पु. पहलेका समय, बीता। मूलाधारमें रहनेवाली वायु; वह जो प्राणों के समान प्रिय हुआ समय, प्राचीन काल । -कालिक,-कालीन-बि० हो; वैवस्वत मन्वंतरके सप्तर्षियोंमेंसे एक काव्यका आत्मापहलेका, पुराना, प्राचीन ।
रूप रस; एक गंधद्रव्य, गंधरस । -अधार*-पु. वह प्राक्तन-वि० [सं०] पहलेका, प्राचीन; पूर्व जन्मका । जिसपर जीवन अवलंबित हो, जीवनका सहारा पति, प्राखये-पु० [सं०] प्रचंडता, प्रखरता, तीक्ष्णता ।
खाविंद प्रेमी, प्रियतम । -कष्ट-पु० मरनेके समय होनेप्रागनुराग-पु० [सं०] पूर्वानुराग ।
वाला कष्ट । -कृच्छ-पु० प्राणका संकट, जान जोखिम । प्रागल्भ्य-पु० [सं०] प्रगल्भ होनेका भाव, प्रगल्भता; -घात-पु० मार डालना, मारण। -घातक-पु० मार साहस घमंड; दक्षता विकासावाग्मिता ठाट-बाट; दृढ़ता; डालनेवाला, प्राण हर लेनेवाला। -न-वि० जो प्राण प्रबलता; स्त्रीका भयसे रहित होना (सात्त्विक भाव)। हर ले, घातक । -च्छेद-पु० बध, हत्या। -जीवन प्रागुक्ति-स्त्री० [सं०] पूर्वकथन ।
-पु. विष्णु जो प्राणोंका स्थापन और पोषण करते हैं; प्रागैतिहासिक-वि० [सं०] इतिहासमें वर्णित कालके प्राणाधार । -त्याग-पु० मृत्यु; आत्महत्या। -दंडपूर्वका ।
पु० मौतकी सजा। -द-वि० जान डालनेवाला । प्राग्ज्योतिष-पु० [सं०] कामरूप देश। -पुर-पु० -दयित-पु० पति । वि० प्राणप्यारा।-दा-स्त्री० हड़, प्राग्ज्योतिष देशकी राजधानी जिसका आधुनिक नाम हरीतकी; एक प्रकारकी गुटिका (आवे०)।-दाता(त)गोहाटी है।
पु० किसीकी जान बचानेवाला। -दान-पु० प्राण देना; प्राग्देश-पु० [सं०] पूरबी देश ।
किसीकी प्राण-रक्षा करना। -धन-पु. वह जो प्राणके प्रारद्वार-पु० [सं०] पूरबका द्वार ।
समान प्यारा हो, अत्यंत प्रिय व्यक्ति ।-धार-वि०जिसमें प्राग्विभाजन-भुगतान-पु० (प्री-पाटींशन पेमेंट्स ) प्राण हो,जीवित । पु०प्राणी ।-धारण-जीवन पु० धारण भारतका विभाजन होनेके पहले किया गया ऋण आदिका करनेकी क्रिया, जीवन-शक्ति; जीवनका सहारा ।-धारीभुगतान।
(रिन्)-पु० प्राणी, जीव । -नाथ-पु० पति, स्वामी; प्राची-स्त्री० [सं०] पूर्व दिशा, पूरब । -पति-पु० इंद्र। प्रेमपात्र, प्रियतम, यम; एक महात्मा जिन्होंने 'परिणामी' प्राचीन-वि० [सं०] पूरबका, पूरबी; पहलेका, पुराना ।। संप्रदाय चलाया। -नाथी-पु० [हिं०] महात्मा प्राणप्राचीनता-स्त्री० [सं०] प्राचीन होनेका भाव, पुरानापन । नाथके संप्रदायका अनुयायी; प्राणनाथका चलाया हुआ प्राचीर-पु० [सं०] नगर, किले आदिके चारों ओर रक्षाके संप्रदाय । -नाश-पु० मृत्युः वध। -नाशक-वि० लिए बनायी गयी दीवार, परकोटा, चहारदीवारी । जान लेनेवाला प्राणहारक। -निग्रह-पु० प्राणायाम । प्राचुर्य-पु० [सं०] प्रचुर होनेका भाव, आधिक्य, बहु- -पण-पु० जानकी बाजी। -पति-पु० पति; प्रेमपात्र, तायत ।
प्रियतम वैद्य आत्मा। -प्यारा-पु० [हिं०] वह जो प्राचेतस-पु० [सं०] वाल्मीकि मुनि प्रचेताका पुत्र; मनु । प्राणों के समान प्रिय हो, अत्यंत प्रिय व्यक्ति पति; प्रियप्राच्छित*-पु० दे० 'प्रायश्चित्त'।
तम ।-प्रतिष्ठा-स्त्री. देवप्रतिमाका एक प्रकारका संस्कार प्राच्य-वि० [सं०] पूरबका, पूरबी; पहलेका, पुराना; जिसमें मंत्रों द्वारा देवताका प्रतिमामें आवाहन करते हैं,
सामनेका, अगला । -भाषा-स्त्री० पूरबी भाषा । मंत्रों द्वारा किसी देवताका उसकी प्रतिमामें निवास प्राजापत्य-वि० [सं०] प्रजापतिसे उत्पन्न प्रजापति संबंधी। कराना ।-प्रद-वि० प्राण देनेवाला, प्राणदायका प्राणोंपु० आठ प्रकारके विवाहोंमेंसे एक जिसमें कन्याका पिता की रक्षा करनेवाला; बलकारक। -प्रिय-पु० प्रियतम, वर और कन्यासे गार्हस्थ्य धर्मका पालन करनेकी प्रतिज्ञा पति । वि० जो प्राणोंके सभान प्रिय हो। -बाधा-स्त्री० करानेके अनंतर दोनोंकी पूजा करके कन्यादान करता है। [हिं०] दे० 'प्राणकृच्छ्र' । -भक्ष-वि० जो केवल प्राज्ञ-वि० [सं०] बुद्धिमान् ; चतुर, दक्ष । पु० चतुर
हवा पीकर रहता हो। -भय-पु० जान जानेका मनुष्यः एक तरहका तोता; कल्किदेवके बड़े भाई (पु०); खतरा। -भृत्-वि० प्राणवान् , जीवित । पु० प्राणी; जीवात्मा (वे०)।-मन्य,-मानी(निन)-वि० अपनेको विष्णु। -यम-पु० प्राणायाम । -यात्रा-स्त्री० बहुत बुद्धिमान् माननेवाला ('प्राशम्मन्य'भी)।
प्राणकी श्वास-प्रश्वास-क्रिया; भोजन आदि जिनसे उक्त प्राज्ञा-स्त्री० [सं०] बुद्धि; बुद्धिमती स्त्री।
क्रियाका निर्वाह होता है। जीवन-निर्वाह । -रंध्र-पु० प्राज्ञी-स्त्री० [सं०] विदुषी; विद्वान्की स्त्री; सूर्यकी एक मुँह नाक । -रोध-पु० प्राणायाम, जानका खतरा एक पत्नी।
नरक । -वल्लभ-वि० 'प्राणप्रिय' । [स्त्री०-'वल्लभा'।] प्राज्य-वि० [सं०] जिसमें खूब धी पड़ा हो; प्रचुर, प्रभूत -वायु-स्त्री० प्राणरूपी वायु, प्राणा-विनाश,-विप्लव विशाल; ऊँचा; दीप।।
-पु० मृत्यु, मौत ।-वियोग-पु० मृत्यु ।-वृत्ति-स्त्री. प्राडविवाक, प्राविवेक-पु० [सं०] न्याय करने के लिए प्राणका श्वास-प्रश्वास आदि व्यापार-व्यय-पु० प्राणत्याग, राजाकी ओरसे नियुक्त विचारक, न्यायाधीश ।
जीवनोत्सर्ग । -शरीर-पु० परमेश्वर (जिसका प्राणाप्राण-पु० [सं०] वायुः शरीरके भीतरकी जीवनाधाररूपी त्मक रूपमें ध्यान किया जाता है)। -शोषण-पु० वायु (इसके पाँच भेद माने गये हैं-प्राण, अपान, व्यान, बाण । -संकट,-संदेह,-संशय-पु० ऐसा संकट जो उदान और समान), श्वास, साँस; बल; जीव; जीवन, जानपर आ जाय, जान जानेका भय, जानजोखों । जान; घ्राण; ज्ञानेंद्रिय पाचन; कालका मानरूप श्वास -सम(न्)-पु० शरीर । -सम-पु० पति प्रियतम ।
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