________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पशुता-पसारना
४६४ लज्जारहित आचार; मैथुन । -चिकित्सालय-पु० बंबई के पासकी एक पर्वतमाला । (वेटेरिनरी हॉस्पिटल) वह स्थान जहाँ घोड़े, गाय, बैल पश्चिमोत्तर-वि० [सं०] जो पश्चिम और उत्तर में स्थित आदि घरेलू पशुओंकी चिकित्साका प्रबंध हो। -जीवी- हो, उत्तरी-पश्चिमी । पु० वायुकोण । (विन्)-वि० पशुका मांस खाकर जीनेवाला ।-धन-पश्तो-स्त्री० एक प्राचीन आर्यभाषा जो भारतकी पश्चिमो. पु० (लिवस्टॉक) मनुष्य-परिवारके साथ रहने और उसके । त्तर सीमासे लेकर अफगानिस्तानतक बोली जाती है। काम आनेवाले पशु-गाय, बैल, घोड़े, भेड़ आदि । | पश्म-पु० [फा०] दे० 'पशम' । -नाथ-पु० शिव । -निरोधगृह-पु०,-निरोधिका- पश्मीना-पु० [फा०] दे० 'पशमीना' । स्त्री० (कैटिल पाउंड) इधर-उधर विचरते हुए किसी तरह- | पश्यंती-स्त्री० [सं०] वेश्या; वह शब्द जो मूलाधार में की क्षति करनेवाले पशुओंको रोक रखनेकी जगह, आवारा उत्पन्न होनेवाले सूक्ष्म शब्दकी उत्पत्तिके अनंतर वायुके पशुओंको निर्धारित शुल्क देकर छुड़ा ले जानेतक रोक संयोगसे नाभिदेशमें उत्पन्न होता है, परा वाक्को उत्पन्न रखनेका बाड़ा या धर। -प,-पाल,-पालक-पु० करनेवाली वायुके मूलाधारसे हटकर नाभिदेशमें पहुँचनेपशु पालनेवाला, वह जो जीविकाके लिए भेड़-बकरी | पर उत्पन्न होनेवाला शब्द-विशेष । आदि पाले। -पक्षिकानन-पु० (जू) वह वन या पश्यतोहर-पु० [सं०] वह जो देखते-देखते कोई चीज कानन जहाँ विभिन्न प्रकारके पशु तथा पक्षी प्रदर्शन चुरा ले (जैसे-सुनार)। आदिके लिए रखे जाते हैं, चिड़ियाघर, जंतुशाला। पषाण, पषान*-पु० पाषाण, पत्थर । -पति-पु० पशु पालनेका व्यवसाय करनेवाला; शिव । पषारना, पषालना-स० क्रि० पखारना, धोना । -पलवल-पु० केवटी मोथा । -पालन-पु० जीविकाके पसंग*-पु० दे० 'पासँग'। " निमित्त भेड़-बकरी आदि पालनेका काम । -पाश-पु० पसँगा-पु० दे० 'पासँग' । वि० बहुत थोड़ा। मु०बलि-पशुको बाँधनेकी रस्सी; पशुरूपी जीवोंका बंधन भी न होना-अति तुच्छ होना। (पाशुपत दर्शन)। -प्रक्षेत्र-पु० (लिवस्टॉक फार्म) गाय, पसंघा-पु० दे० 'पासँग' । भेड़, सूअर आदि पशुओंको रखने, पालनेका स्थान । | पसंती*-स्त्री० दे० 'पश्यंती' । -मैथुन-पु० पशुओंका संभोग; मनुष्यका बकरी आदि | पसंद-स्त्री० [फा०] रुचि, स्वीकृति, कबूलियत; तरजीह । पशुके साथ संभोग। -यज्ञ-याग-पु० वह यश जिसमें | वि० रुचिके अनुकूल; जो मनको जॅचे, मनोनीत । किसी पशुकी बलि दी जाय । -राज-पु० सिंह। पसंदीदा-वि० [फा०] पसंद किया हुआ; जो पसंद हो । पशुता-स्त्री०,पशुव-पु०[सं०] पशुका भाव, जानवरपन। पस-अ० [फा०] बाद; बादमें, पीछे आखिरकार, अंतमें; पश्चात्-अ० [सं०] पीछेसे, बादमें, पीछे, अनंतर; अंतमें। इसलिए, अतः; नि:संदेह, बेशक । -(सो)पेश-पु. पश्चिम दिशासे पश्चिम दिशाकी ओर। -कृत-वि० जो आगा-पीछा; बहाना, टालमटूल ।। पीछे छोड़ दिया गया हो, मात किया हुआ।-ताप-पु० पसनी-स्त्री० अन्नप्राशन, चटावन । कोई अनुचित कार्य करके बाद में उसके लिए दुःखी होना, | पसम*-पु० दे० 'पशम' । पछतावा, अनुशय ।
पसमीना*-पु० दे० 'पशमीना'। पश्चादक्त-वि० [सं०] (लैटर) जो बादमें कहा गया हो, पसर-पु० आधी अंजलि । * स्त्री० प्रसार, फैलाव; आक्रवाक्यादिमें जिसका प्रयोग किसी अन्य ( तद्वत् ) शब्दके | मण-'पहली पसर रनेही टूट्यो -छत्र० । बादमें किया गया हो।
पसरना-अ० क्रि० और अधिक दरीमें व्याप्त होना, फैलना पश्चाद्वाहबद्ध-वि० [सं०] जिसकी मुश्के पीछे की ओर!
आगे बढ़ना; बढ़ना; हाथ-पाँव फैलाकर सोना । बाँध दी गयी हों।
पसरहट्टा-पु० दे० 'सरहट्टा'। पश्चाद्भाग-पु० [सं०] पीछेका हिस्सा; पश्चिमी भाग। पसराना-स० कि० फैलवाना, किसीको पसारनेके काममें पश्चाद्वर्ती(तिन्)-वि० [सं०] पीछे रहनेवाला; अनु
प्रवृत्त करना। सरण करनेवाला।
पसरौहाँ*-वि० फैलनेवाला, जो फैले । पश्चाद्ध, पश्चाधं-पु० [सं०] पीछेवाला आधा भाग; अप- पसली-स्त्री० पाँजरकी हडियों में से कोई एक, पाइर्वास्थि । रार्द्ध, शेषाद्ध पश्चिमी भाग ।
मु०-फड़कना या फड़क उठना-मनमें उत्साह पैदा पश्चिम-वि० [सं०] सबसे पीछेका; अंतिमः पच्छिमका। होना, जीमें उमंग होना। (पसलियाँ) ढीली करना पु० उदय होते हुए सूर्यकी ओर मुँह करके खड़े होनेसे
| या तोड़ना-बेतरह पीटना । पीठके पीछे पड़नेवाली दिशा। -क्रिया-स्त्री. अंत्येष्टि
पसा -पु० अंजली। क्रिया। -वाहिनी-वि० स्त्री० पच्छिम दिशाकी ओर
पसाउ*-पु० प्रसाद, कृपा । बहनेवाली।
पसाना-सक्रि० पके हुए चावलमेंसे माँड़ निकालना, पश्चिमाचल-पु० [सं०] वह पर्वत जिसके पीछे सूर्य छिपता भातको माँड़से रहित करना; जलयुक्त पदार्थ से जलके है, अस्ताचल ।
अंशको बहा देना । * अ० क्रि० प्रसन्न होना। पश्चिमाद्ध, पश्चिमाध-पु० [सं०] पीछेवाला आधा भाग पसार-पु० पसरनेकी क्रिया या भाव, फैलाव, विस्तार अपराध ।
* मायाजाल, प्रपंच। पश्चिमी-वि० पश्चिम दिशाका, पछाँही। -घाट-पु० पसारना-स० क्रि० फैलाना, छितराना; आगेकी ओर
For Private and Personal Use Only