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पुरुषायुष-पुष्कराक्ष पुरुषायुष-पु० [सं०] मनुष्यकी आयु । -पुरुषायुषजीवी पुलकावलि-स्त्री० [सं०] प्रेम या हर्षजन्य रोमांच ।
(विन्)-वि० जो मनुष्यकी पूरी आयुभर जीये। पुलकित-वि० [सं०] जिसे रोमांच हुआ हो; हृष्ट, प्रसन्न । पुरुषारथ*-पु० दे० 'पुरुषार्थ' ।
पुलटिस-स्त्री० हलवेकी तरह पकायी हुई अलसी आदि पुरुषार्थ-पु० [सं०] मनुष्यके जीवनका प्रधान उद्देश्य, जो घावपर उसे पकाने, फोड़नेके लिए बाँधते हैं। वह वस्तु या प्रयोजन जिसकी प्राप्ति या सिद्धिके लिए पुलपुला-वि०पिलपिला, जो भीतरसे नरम और ढीला हो। मनुष्यको उद्योग करना चाहिये (पुरुषार्थ चार माने गये पुलपुलाना-स० क्रि० किसी पुलपुली चीजको दबाना; हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष); उद्योग, उद्यम । दबाकर चूसना। पुरुषंग-पु० [सं०] राजा; श्रेष्ठ पुरुष ।
पुलस्त*-पु० दे० 'पुलस्ति'। पुरुषोत्तम-पु० [सं०] श्रेष्ठ पुरुष, विष्णुः कृष्ण; नारायण; पुलस्ति, पुलस्त्य-पु० [सं०] एक प्राचीन ऋषि जो ब्रह्माजगन्नाथ ।-क्षेत्र-पु० जगन्नाथपुरी।-मास-पु. अधिक के मानस पुत्रोंमेंसे थे और सप्तर्षियों तथा प्रजापतियोंमें मास, मलमास।
गिने जाते हैं (ये रावणके पितामह थे); शिव । पुरूरवा( वस्)-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध सोमवंशी राजा पुलहना*-अ० कि० दे० 'पलुहना' । जिसका विवाह उर्वशीसे हुआ था (पर अंतमें दोनों बिछुड़ पुलाक-पु० [सं०] कदन्न पैया; भातभातका माँड़। गये); एक विश्वेदेव ।
पुलाव-पु० मांस और चावल एकमें पकाकर तैयार किया पुरैन, पुरैनि-स्त्री० दे० 'पुरइन' ।
जानेवाला विशेष प्रकारका व्यंजन । पुरोगंता(त), पुरोगामी (मिन्)-वि० [सं०]दे० 'पुरोग'। पुलिंदा-पु० लपेटे हुए कागजका बंडल । पुरोग-वि० [सं०] आगे-आगे चलनेवाला, अगुआ प्रधान। पुलिन-पु० [सं०] नदीका किनारा रेतीला किनारा । पुरोगत-वि० [सं०] जो सामने हो; जो पहले गया हो। पुलिनवती-स्त्री० [सं०] नदी। पुरोजन्मा(न्मन्)-वि० [सं०] जिसका जन्म पहले पुलिस, पुलीस-स्त्री० [अं०] जनताके जान-माल और हुआ हो।
शांतिकी रक्षाका प्रबंध करनेवाला सरकारी महकमा; इस पुरोडाश(श)-पु० [सं०] जौ, चावल आदिके आटेकी महकमेके कर्मचारी । -मैन-पु. पुलिस विभागका कर्मटिकिया जिसे कपालमें रखकर अग्निमें हवन करते हैं। चारी। हविः हुतशेषः पुरोडाश या हवि देते समय पढ़ा जाने- पुलिहोरा*-पु० एक पकवान ।। वाला मंत्र; सोमरस ।
पुलोमा(मन)-पु० [सं०] एक दैत्य जो इंद्रकी पत्नी पुरोद्यान-पु० [सं०] नगरके अंदरका उद्यान, (पाक)। शचीका पिता था; एक राक्षस । (पुलोम)जा-स्त्री० पुरोधा(धस्), पुरोधानीय-पु० [सं०] पुरोहित। शची। -जित्,-द्विट (प),-भि-पु० इंद्र। - पुरोहित-पु० [सं०] धार्मिक कृत्य करानेवाला ।-तंत्र-पु० पुत्री-स्त्री० शची। (हायरैरकी) (रोमन कैथालिकोंमें) पुरोहितोंकी शासन- पुश्त-स्त्री० [फा०] पीठ; पीढ़ी; सहारा; मददगार रक्षक । व्यवस्था कैथालिक पादरियोंके क्रमानुगत अधिकारियोंका -दर-पुश्त,-ब-पुश्त-अ० कई पीढ़ियोंसे; पीढ़ी दर वर्ग।
पीढ़ी। -नामा-पु० वह कागज जिसपर किसी वंश या पुरोहिताई-स्त्री० पुरोहितका भावः पुरोहितका पेशा। कुलके लोगों के नाम यथाक्रम लिखे हों, कुरसीनामा । पुरोहितानी-स्त्री० पुरोहितकी पत्नी ।
-वानी-स्त्री० [हिं०] वह लकड़ी जो किवाड़ या तख्तेके पुरोहिती-स्त्री० पुरोहिताई ।
पीछे उसकी मजबूतीके लिए लगायी जाती है । पुरी*-पु० पुरवट ।
पुश्ता-पु० [फा०] किसी दीवारकी मजबूतीके लिए उससे पुर्तगाल-पुथ्यूरोपके दक्षिण-पश्चिममें स्थित एक छोटा देश।
सटाकर बनवाया जानेवाला मिट्टी, ईट, पत्थर आदिका पुर्तगाली-वि०पुर्तगाल-संबंधी; पुर्तगालका । पु० पुर्तगालमें | धुस्सा बाँध पानीकी रोकके लिए बँधवाया जानेवाला बाँध
रहनेवाला, पुर्तगाल-निवासी । स्त्री० पुर्तगालकी भाषा। । किताबकी जिन्दका पीछेकी ओरका चमड़ा या कपड़ा, पुर्तगीज़-पु० [अं०] पुर्तगाल-निवासी । स्त्री० पुर्तगालकी पुढा, एक ताल । -बंदी-स्त्री० पुश्ता बाँधनेका काम । भाषा।
पुश्तापुश्त-अ० [फा०] कई पीढ़ियोंसे । पुर्बला-वि० दे० 'पुरबला'।
पुश्तैनी-वि० [फा०] जो कई पीढ़ियोंसे चला आता हो; पुल-पु० [फा०] नदी, सोता, खाई आदि पार करनेका | जो कई पीढ़ियोंतक चला जाय । वह साधन जो नाव पाटकर अथवा खंभोंपर पटरियाँ पुष्कर-पु० [सं०] जलाशय, सरोवर; जल; आकाश; आदि बिछाकर या पक्की जोड़ाई करके बनाया जाता | हाथीकी सँड़का अग्रभाग; कमल; तलवारकी धार; बाण; है, सेतु । मु० (किसी बातका)-बाँधना-भरमार | एक तीर्थ जो अजमेरके पास है; जंबू आदि द्वीपोंमेंसे एक करना, झड़ी लगाना।
(पु०); नलके छोटे भाई जिन्होंने नलको जुएमें हराकर पुलक-पु० [सं०] हर्ष-भय आदिके कारण रोंगटे खड़े होना, उनका राज-पाट ले लिया था; पिंजड़ा; सूर्य । -तीर्थलोमहर्षण, रोमांच, त्वक्-स्फुरण ।
पु० पुष्कर नामक तीर्थ। -बीज-पु. कमलका बीज । पुलकना*-अ० कि० पुलकित होना; हर्षविह्वल होना।
-मुख-पु० Vड़के मुँहपरका छेद । वि० सूंडके मुख जैसे पुलकाई*-स्त्री० पुलकित होनेका भाव, पुलक । मुखवाला (पात्र)। -मूल-पु. कमलकी जड़। पुलकालि*-स्त्री० दे० 'पुलकावलि'।
पुष्कराक्ष-वि० [सं०] कमलके समान नेत्रोंवाला। पु०
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