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प्रकाशक-प्रक्षेप
-वियोग-पु. ऐसा वियोग जो सवपर प्रकट हो। की उत्पत्ति विकास आदिकी मीमांसा की जाय ।-सिद्ध-स्तंभ-पु० (लाइट हाउस) समुद्र में बनाया गया वह वि० सहज, स्वाभाविक । -सुभग-वि० स्वभावसे ही स्तंभ या मीनार जिसपर रातमें जहाजोंको चट्टानों या सुंदर, जिसमें सहज सौंदर्य हो । -स्थ-वि० जो अपने अन्य खतरोंसे बचानेके लिए तेज रोशनी की जाती है। स्वभाव या स्वरूपमें स्थित हो,क्षोभ,विकारसे रहित,स्वस्थ । रातमें विमानोंका पथ-प्रदर्शन करनेके लिए हवाई अड्डेपर प्रकृया-अ० [सं०] स्वभावसे, स्वभावतः । दायें-बायें घूमनेवाला आकाश-दीप; (ला०) मार्ग-प्रदर्शक । प्रकृष्ट-वि० [सं०] खींचा हुआ; बढ़ाया हुआ; प्रकर्षयुक्त, प्रकाशक-वि० [सं०] चमकीला प्रकाश करनेवाला; अभि- | उत्कृष्ट, उत्तम प्रधान, मुख्य । व्यक्त करनेवाला; प्रकट करनेवाला; प्रसिद्ध । पु० पुस्तक प्रकोप-पु० [सं०] अत्यधिक कोप; उत्तेजना विद्रोह;
आदिको छपवाकर प्रकट करनेवाला (पब्लिशर); सूर्य । आक्रमण; किसी बीमारीका जोर; शरीरकी धातुओंका प्रकाशन-पु० [सं०] आलोकित करना; प्रकट करना; ! बिगड़ जाना। छपवाकर प्रकट करना या जनताके सामने रखना (पब्लि- प्रकोपन-पु० [सं०] प्रकोपित करना । वि० प्रकुपित शिंग); वह पुस्तकादि जो छपवाकर प्रकाशित की गयी | करनेवाला। हो (पब्लिकेशन); सबको सूचित करना, विज्ञापन प्रकोष्ठ-पु० [सं०] बाँहका कलाईसे लेकर कुहनीतकका विष्णु । वि० प्रकाशित करनेवाला।
भाग, पहुँचा; महल या भवनके सदर फाटकके पासका प्रकाशमान-वि० [सं०] चमकता हुआ, द्योतमान प्रसिद्ध । कमरा; इमारतके भीतरका आँगन; इमारतोंसे घिरा हुआ प्रकाशवान(वत्)-वि० [सं०] प्रकाशयुक्त ।
सहन; (लॉबी) विधानसभा आदिके बाहरका कमरा, बराप्रकाशित वि० [सं०] प्रकाशयुक्त; प्रकट किया हुआ | मदा, प्रांगण या अन्य स्थान जहाँ वैठकर सदस्यगण निजी
आलोकित किया हुआ; छपवाकर प्रकट किया हुआ; तौरपर बातचीत करते और पत्रकारों आदिसे मिलते है, विज्ञापित ।
सभाकक्ष ।-वार्ता-स्त्री० (लॉबी टॉक) संसद् या विधानप्रकाश्य-वि० [सं०] प्रकाशित करने योग्य प्रकाशनके सभाके बाहर किसी स्थानपर की जानेवाली बातचीत । योग्यः प्रकट । पु० प्रकाश ।
प्रकोष्टक-पु० [सं०] प्रासादके मुख्य द्वारकेपासका कमरा । प्रकास*-पु० दे० 'प्रकाश' ।
प्रक्खर-वि० [सं०] अति तीक्ष्ण । पु० घोड़े या हाथीका प्रकासना*-अ० क्रि० प्रकाशित होना ।
कवच पाखर कुत्ता; खच्चर । प्रकीर्ण-वि० [सं०] फैलाया हुआ, बिखेरा हुआ; मिश्रित प्रक्रम-पु० [सं०] कदम क्रम, तरतीब, सिलसिला (स्टेज) अस्त-व्यस्त किया हुआ; फुटकल । पु० किसी पुस्तक या प्रगति या विकासके सिलसिले में (बीचमें) पड़नेवाला कोई ग्रंथका कोई परिच्छेद, प्रकरण; अनेक प्रकारकी वस्तुओंका स्थान या कालभाग; यात्रा आदिके क्रमकी विशेष स्थिति मिश्रण; बिखेरना; विस्तार; फुटकल वस्तुओंका संग्रह । या कुछ समयतक ठहरनेका स्थान, मंजिल; आरंभ -लेखा-पु० (मिसेलेनियस अकाउंट) फुटकर आय या | उपक्रम; अवसर, मौका। -भंग-पु० एक काव्यदोष, व्ययका हिसाव।
दे० 'भग्नप्रक्रम'। -विरुद्ध-वि० जो आरंभ करते ही प्रकीर्णक-पु० [सं०] चवर घोड़ेके सिरपर लगायी जाने | रोका गया हो। वाली कलगी, घोड़ा; फुटकल वस्तुओंका संग्रह; वह परि- प्रक्रमण-पु० [सं०] आरंभ करना; कदम बढ़ाना; अधिक च्छेद या प्रकरण जिसमें फुटकल बातें दी गयी हों; प्रकरण, भ्रमण । अध्याय । वि० छितराया, फैलाया हुआ; फुटकल । प्रक्रांत-वि० [सं०] आरंभ किया हुआ, आरब्ध; जिसका प्रकीर्तन-पु० [सं०] प्रशंसा, यशका गान; घोषणा। प्रसंग छिड़ा हो या चल रहा हो, प्रकरणप्राप्त । प्रकीर्ति-स्त्री० [सं०] ख्याति, यश; घोषणा।
प्रक्रिया-स्त्री० [मं०] प्रकरण; क्रिया, अमल; किसी चीजके प्रकपित-वि० [सं०] विशेष रूपसे कुपित, अति ऋद्ध। । बनने, निकलने आदिकी रीति या विधि (प्रोसेस);संस्कारः प्रकृत-वि० [सं०] जिसका प्रसंग छिड़ा हो, प्रकरणप्राप्त उच्च पद; ग्रंथका अध्याय; पुस्तकका आरंभिक अध्याय पूरा किया हुआ; नियुक्त इच्छित; शुद्ध; असल; वास्तविक, । विशेषाधिकार तरकीब, विधि; शब्द या प्रयोगका साधन; सच्चा; अविकृत; महत्त्वका ।
राजाओंका छत्र आदि धारण करना। प्रकृतार्थ-पु० [सं०] यथार्थ अभिप्राय । वि० असल । प्रक्षालन-पु० [सं०] पानीसे साफ करना, धोना; साफ प्रकृति-स्त्री० [सं०] स्वभाव,मिजाज; वह मूल तत्व जिसका करना; वह पानी जिससे कोई वस्तु धोयी जाय । -गृह परिणाम जगत् है, जगत्का उपादान कारणरूप मूल तत्त्व । -पु. (लैवेटरी) हाथ मुंह आदि धोनेका प्रकोष्ठ; दे० . (सांख्य ); माया; परमात्मा; पंच महाभूत; स्वामी, 'शौचालय' भी। अमात्य, सुहृद आदि राज्यांग; प्रजा; सदा बना रहने- प्रक्षालित-वि० [सं०] धोया हुआ; साफ किया हुआ; वाला मूल गुण या धर्म; योनिमलिंग; स्त्री; माता; एक छंद; जिसका प्रायश्चित्त किया गया हो। वह मूल शब्द जिसमें प्रत्यय लगाये जाते हैं; आकार- प्रक्षिप्त-वि० [सं०] फेंका हुआ, डाला हुआ; क्षेपकके रूपमें प्रकार; गुणक (गणित); चराचर संसार ।-ज-वि०सहज, निविष्ट किया हुआ, पीछेसे जोड़ा या मिलाया हुआ। स्वाभाविक । -मंडल-पु० स्वामी, अमात्य, सुहृद, कोष, प्रक्षेप-पु० [सं०] फेंकना, डालना; ऊपरसे मिलाना; राष्ट्र, दुर्ग और दल-ये सात राज्यांग; प्रजावर्ग ।-शास्त्र- ऊपरसे मिलायी जानेवाली वस्तु; पुस्तक या ग्रंथमें वह पु० प्रकृति-संबंधी शास्त्र, वह शास्त्र जिसमें चराचर जगत्- मलसे भिन्न अंश जो बादमें जोड़ा या मिलाया गया हो,
३२-क
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