________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४९५
पंच-पेटा और दूरतक झुलानेके लिए उसपर और पहुँचाना; जोरसे झनवाला, जो जल्दी हल न हो सके, कठिन, टेढ़ा । झुलाना या झूलना।
पेचीला-वि० दे० 'पेचीदा'। पैच-पु० दे० 'पेच'।
पेट-पु० शरीरका वह प्रसिद्ध खोखला अंग जिसमें भोजनपठ-स्त्री० दे० 'पैंट'।
का पाक होता है, उदर पेटके भीतरकी वह थैली जिसमें पे दुकी -स्त्री० पंडुक, फाखता; सोनारोंकी कनी खायी हुई वस्तु जमा होती है, आमाशयः छातीके नीचेसे गुझिया नामक पकवान ।
लेकर कमरतक फैला हुआ अंग; गर्भ, हमल, मन, दिल; पे दा-पु. किसी गहरी वस्तुका निचला भाग जिसके बल- किसी खोखली वस्तुका भीतरका भाग; बंदूक या तोपमें
पर वह स्थित होती है। किसी गहरी वस्तुका तला । गोली या गोला भरनेकी जगह; जीवनयात्रा, जीविका पेदी-स्त्री० पेंदा'का अल्पा०'; किसी गहरी वस्तुका तला । एकमें जुड़े हुए चक्कीके पाटोका भीतरी भाग; सिलका
मु०(बिना)-का लोटा-वह मनुष्य जो किसो निश्चित ऊपरी भाग जिसपर रखकर कोई वस्तु पीसी जाती है। सिद्धांतका न हो; वह मनुष्य जो कभी इस पक्षमें मिल रोटीका वह भाग जिधरसे वह पहले सेंकी जाती है। जाय, कभी उस पक्षमें ।
--चोट्टी-स्त्री. वह स्त्री जो गर्भिणी होते हुए भी बाहरी पेंशन-स्त्री० [अं०] वह मासिक या वार्षिक वृत्ति जो लक्षणोंसे वैसी न जान पड़े। -पाँछना-पु० अंतिम किसी व्यक्ति या उसके उत्तराधिकारियोंको उसकी पूर्व- संतान । मु०-काटना-पैसा बचानेके लिए कम खाना, सेवाओं के पुरस्कारके रूपमें नियोक्ता या स्वामीकी ओरसे द्रव्य-संचय करनेके लिए खाने में कंजूसी करना। -का मिलती है। -याफ्ता-वि० जिसे पेंशन मिलती हो। गहरा-भेद प्रकट न करनेवाला। -का धंधा-वह पेशा पेंसिल-स्त्री० [अं॰] एक प्रकारकी लेखनी जो लकड़ी या जिससे गुजारा हो, जीविका । -का पानी न पचनाकिसी धातुके पोले लंबोतरे टुकड़े में विशेष प्रकारके मसाले
कोई बात कहे, पूछे बिना न रहा जाना। -का पानी की सलाई बैठाकर तैयार की जाती है।
न हिलना-थोड़ासा भी श्रम न पड़ना । -का हलकापेउश, पेउसी-पु० दे० 'पेउसी'।
जो गंभीर न हो, गंभीरतासे रहित । -का हाल-मनकी पेउसी-स्त्री. गाय या भैसका ब्यानेके दिनसे सात
बात, तहेदिलकी बात । -की आग-भूख । -की आग दिनोंतकका दूध; इस दूधमें पकाया हुआ सोंठ, शकर
बुझाना-कुछ खाकर या खिलाकर भूख शांत करना, आदिका पाक, इन्नर ।
भूख मिटाना। -की बात-मनकी बात; भेदकी बात, पेखक*-पु० प्रक्षक, देखनेवाला, दर्शक ।
रहस्यभरी बात । -की मार मारना-आहार न देना, पेखन*-पु. प्रेक्षण; तमाशा, दृश्य ।
भूखा रखना। -खलाना-पेट पचकाकर भूखा होनेका पेखना-सक्रि० देखना।
संकेत करना; अत्यधिक दीनता प्रकट करना ।-गदरानापेच-पु० [फा०] लपेट, चकरा शंशट, झमेला; मरोड़, गर्भका लक्षण प्रकट होना। -गिरना-गर्भपात होना । कुश्तीका दाँव पेटका दर्द एक प्रकारकी कील जिसमें | -गिराना-गर्भपात कराना । -चलना-दस्त जारी चूड़ियाँ बनी रहती है, स्क्र; मुश्किल, कठिनाई; धोखा; होना । -छंटना-पेटका मल-रहित होना । -छटनाफरेब, चाल; पगड़ीकी लपेट-'रहे पेच कर में पड़े परे पेचमें दस्त होना। -जलना -भरपेट भोजन न मिलना । स्याम'-वि०; एक आभूषण जो पगड़ीपर आगेकी ओर -दिखाना-पेट दिखाकर भूखे होनेका संकेत करना। बाँधा जाता है, सिरपेच; एक प्रकारका आभूषण जो कानों. -देना-किसीको अपनी गुप्त बात बताना, किसीसे भेदकी पर धारण किया जाता है; कल, मशीन; मशीनका कोई बात कहना। -पानी होना-पतले दस्त आना। पुरजा; किसी यंत्रका वह अंग या पुरजा जिसे घुमाने, -पालना-किसी प्रकार निर्वाह करना, उदर-पूर्तिमात्र दबाने आदिसे उसमें हरकत पैदा होती है; लड़ाई जाने- करते हुए निर्वाह करना। -पीठ एक हो जाना-बहुत वाली पतंगोंकी डोरोंका एक दूसरेसे उलझना; युक्ति, दुर्बल हो जाना। -पीठसे लगना-दे० 'पेट पीठ एक उपाय । -कश-पु० बढ़इयों, लोहारोंका वह आला हो जाना। -फूलना-किसी बातको कहने, जानने जिससे वे पेचोंको घुमा-धुमाकर जड़ते या निकालते हैं; आदिके लिए बेचैन हो उठना; गर्भ रहना। -मारकर वह चक्करदार आला जिससे बोतलका काग निकाला मरना-आत्महत्या करना।-में घुसना-भेद जाननेजाता है। -दार-वि० लपेटवाला; चकरदार; जिसमें के लिए घनिष्ठ मित्र बनना। -मे चूहे कूदना या कोई यंत्र लगा हो; जिसमें कोई उलझन या झमेला हो, दौड़ना-जोरकी भूख लगना, भूखसे व्याकुल होना । उलझनवाला । -व ताब, (पेचो)ताब-पु. बेचैनी; -मे डालना-खा जाना, हड़प जाना। -मेंदादी कुढ़न; फिका अंदेशा; गुस्सा; गम; कहर और गजब । होना-छोटी उम्रमें ही बहुत अधिक बुद्धिमान होना । -वान-पु. फरशीमें लगायी जानेवाली बड़ी सटका ! -रहना-गर्भ रहना।। बड़ा हुका।
पेटल-वि० बड़े पेटवाला, तोंदल। पेचक-स्त्री० [फा०] बटे हुए तागेकी गोली, रील । पेटा-पु० किसी गहरी वस्तुका तलभाग; किसी वस्तुका पेचिश-स्त्री० [फा०] आमाशयमें मरोड़की बीमारी जिसमें | भीतरी भाग, गर्भ घेरा, चक्कर; नदीके भीतरकी जमीन आँव गिरता है।
जिसपरसे पानी बहता है; उतनी धरती जितनीसे होकर पेचीदगी-स्त्री० [फा०] पेचीदा होने का भाव ।
नदी बहती है; बहीका ब्योरे या तफसीलका खाना; उड़ते पेचीदा-वि० [फा०] पेच या लपेटवाला; चकरदार; उल- हुए कनकौएकी डोरका वह भाग जो ढीला पड़कर नीचेकी
For Private and Personal Use Only