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पेटागि- पेशाब
ओर लटका रहता है, ढील; पशुओंकी अँतड़ी । पेटागि* - स्त्री० पेटकी आग, भूख । पेटार* - पु० दे० 'पिटारा' ।
पेटारा* - पु० दे० 'पिटारा' | पेटारी* - स्त्री० दे० 'पिटारी' |
पेटार्थी, पेटा - वि० जो सदा खानेकी फिक्रमें रहे । पेटिका - स्त्री० [सं०] छोटा पिटारा, पिटारी । पेटी - स्त्री० तोंदकी झोल; वह तत्समा जिससे पतलून, पैंट आदि पहनने पर कमरको कसते हैं, बेल्ट; चपरास; नाइयोंका लोहखर; वह तागा जो बुलबुलको उँगलीपर बैठानेके लिए उसकी कमर से बाँधते हैं; [सं० ] छोटा
पिटारा, पिटारी; लघु मंजूषा, छोटा संदूक । पेटीकोट - पु० [अ०] घाँघरेकी तरहका एक हलका पहनावा जिसे स्त्रियाँ साड़ीके नीचे और लड़कियाँ कुर्ती, फ्राक के साथ पहनती हैं, साया ।
पेटू - वि० जिसे सदा खानेकी चिंता लगी रहे; बहुत अधिक खानेवाला, दीर्घाहारी ।
पेट्रोल - पु० [अ०] एक प्रकारका खनिज तेल जिससे उत्पन्न शक्तिसे मोटर गाड़ियाँ, बसें आदि चलती हैं । पेठा - पु० सफेद कुम्हड़ा या उससे बनी मिठाई । पेड़-पु० वृक्ष, दरख्त | पेड़ा - पु० चकईके आकारकी एक मिठाई जो खाँड़ मिले हुए खोयेसे तैयार की जाती है; गुँधे हुए आटेकी लोई । पेड़ी - स्त्री० ऊपर-ऊपर काट लिये गये वृक्ष या पौधे के तनेका जड़ सहित बचा हुआ भाग; पेड़ या पौधेका तना'बिरिछ उचारि पेड़िसों लेहीं' - रामा०; ऊखका वह खेत जो ऊखके कट जाने के बाद रबीकी फसलके लिए जोता जाय पानकी पुरानी बेल; पुरानी बेलसे उतारा हुआ पान; फलवाले वृक्षों पर लगाया जानेवाला कर । पेडू - पु० शरीरका नाभि और उपस्थके बीचका भाग । पेन्हाना - स० क्रि० दे० 'पहनाना' । अ० क्रि० गाय-भैंस आदिके थनमें दूध उतर आना ।
पेम* - पु० दे० 'प्रेम' ।
पेमचा * - पु० एक तरहका रेशमी कपड़ा ।
पेय - वि० [सं०] पीने योग्य; जो पिया जाय । पु० पीने योग्य या पिया जानेवाला पदार्थ; जल; दूध; शरबत | पेयूष - पु० [सं०] अमृत; ताजा घी; गायका ब्यानेके दिन से सात दिनोंतकका दूध ।
पेरना - स० क्रि० किसी घूमनेवाले पदार्थं या यंत्र के द्वारा किसी वस्तुपर ऐसा दबाव पहुँचाना कि उसका रस या स्नेह निचुड़ जाय; बहुत अधिक केश पहुँचाना, सताना; किसी कामको बहुत दिनोंतक लगाये रहना, किसी काम के करने में बहुत ढिलाई करना; * प्रेरित करना । पेरोल - पु० दे० 'पैरौल' ।
पेलना - स० क्रि० दबाकर भीतर पहुँचाना, जोर से भीतर घुसेड़ना; प्रेरित करना; फेंकना; उल्लंघन करना, टालना - 'आयउ तात वचन मम पेली' - रामा०; ढकेलना, ठेलना; बलप्रयोग करना; आक्रमण करनेके लिए प्रेरित करना; आगे बढ़ाना ।
पेलव - वि० [सं०] कोमल; कृश, क्षीण; विरल ।
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पेलवाना - स० क्रि० किसीको पेलनेमें प्रवृत्त करना । पेला- पु० पेलनेकी क्रिया या भाव; * बहाना बताना, दुराव- छिपाव; नकल; चढ़ाई; झगड़ा; अपराध, कसूर । पेलू - ५० पेलनेवाला | पेवँ*-पु० प्रेम ।
पेवस, पेवसी - स्त्री० दे० 'पेउसी' ।
पेश - अ० [फा०] सामने, आगे, समक्ष पहले, कब्ल । - कश - स्त्री० नज़र, भेंट । - कार - पु० पेश करनेवाला; आगे रखनेवाला; अदालतका वह कर्मचारी जो हाकिमके सामने मुकदमेकी मिसिल पेश करता है, मिसिलख्वाह; किसी दफ्तर या दरबारका वह कर्मचारी जो हाकिम या मालिक के सामने कागजात पेश करके उनपर उसका आदेश लिखवाता है । -कारी - स्त्री० पेशकारका काम या पद । - खेमा - ५० वह खेमा जो अगली मंजिल पर पहले ही भेज दिया जाता है; सेनाका वह भाग जो आगे-आगे चलता है, सेनाका अगला भाग, हरावल । -गाह-पु०, स्त्री० इजलास; दरबार, सदरमजलिस ।-गी - स्त्री० किसी वस्तुके मूल्य या किसी कार्यके पारिश्रमिकका वह अंश जो करनेवालेको उसके पूरा होनेके पहले ही दे दिया जाता है; किसी के वेतन या पुरस्कारका वह भाग जो उसे नियत तिथिके पहले ही दे दिया जाता है, अगौड़ी, अग्रिम । - गोई-स्त्री० दे० 'पेशीनगोई' । - तर - अ० पहले, पूर्व । - दस्ती - स्त्री० वह काररवाई जिससे कोई झगड़ा शुरू हो, पहल | - दामन - पु० खिदमतगार, नौकर । - बंदी - स्त्री० बचावकी युक्ति जो पहलेसे की जाय; दूरदर्शिता, दूरदेशी । - राज - पु० [हिं०] वह मजदूर जो पत्थर ढो ढोकर मेमारके पास लाता है; दीवार आदिकी चुनाई करनेवाला कारीगर, राज । - व पस, (पेशी) पस - पु० आगा-पीछा । मु०-आना - सलूक करना, बर्ताव करना । -करना- आगे रखना, सामने रखना; हाजिर करना । - चलना या जाना-दे० ' वश चलना' । (किसी से ) - पाना - मात करना, जीतना, विजय पाना । पेशल - वि० [सं०] कोमल, ऋजु; क्षीण; सुंदर; दक्ष । पेशवा - पु० [फा०] नेता, सरदार, मुखिया; मराठोंके प्रधान मंत्रियोंकी उपाधि ।
पेशवाई - स्त्री० पेशवाका काम या पद; [फा०] अगवानी । पेशवाज़ - स्त्री० [फा०] वेश्याओं, नर्तकियोंका घाघरा जिसपर प्रायः जरीका काम रहता है ।
पेशा- पु० [फा०] वह व्यवसाय या धंधा जिससे किसीकी जीविका चलती हो, पेटका धंधा । वर- ५० कोई पेशा करनेवाला | मु० - कमाना या करना - वेश्याका काम करना, वेश्या बनकर जीविका चलाना । पेशानी - स्त्री० [फा०] ललाट, माथा; किस्मत, भाग्य; कागज के ऊपरका खाली हिस्सा । - का ख़त - भाग्यरेखा । मु०- पर बल आना या पड़ना - क्रोधसे ललाटपर के चमड़ेका ऊपर की ओर खिंच जाना, त्योरी चढ़ना । पेशाब- पु० [फा०] मूत्र, भूत । खाना - पु० पेशाब करनेके लिए बनायी हुई जगह । मु०-करना - कुछ भी न गुनना, अत्यंत हेय समझना; लानत भेजना । (किसीके) - का चिराग़ जलना - बहुत प्रतापी होना ।
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