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पैमाना-पौंछना
४९८ क्रिया।
पैला*-वि० परला (पहला); दूसरा । पैमाना-पु० [फा०] वह साधन जिसमे कोई वस्तु मापी पैवंद-पु० [फा०] कपड़े आदिका वह टुकड़ा जिसे टाँककर जाय, मानदंड।
अंगरखे आदिका छेद बंद किया जाता है, चकती; किसी पैमाल-वि० दे० 'पामाल' ।
पेड़को फलके आकारको बढ़ाने या उसके स्वादमें विशेषता पैयाँ*-स्त्री० पैर, पाँव ।
लानेके लिए उसकी टहनीमें दूसरे सजातीय पेड़की टहनी पेया-पु० सारहीन अन्न, अनाजका वह दाना जिसमें बीज- काटकर बाँध देनेकी क्रिया; सगा-संबंधी, स्वजन ।-कारभाग न हो; अकिंचन मनुष्य * पहिया।
पु० पैवंद लगानेवाला । -कारी-स्त्री० पैवंद लगानेकी पैर-पु० शरीरका वह प्रसिद्ध अंग जिसके बलपर जंगम क्रिया। प्राणी स्थित होते और चलते हैं, चरण; पैरका निशान । पैवंदी-वि० [फा०] पैवंद लगाकर तैयार किया हुआ, -गाड़ी-स्त्री० पैरसे चलायी जानेवाली गाड़ी (साइकिल | कलमी; दोगला । धु० शफतालू । आदि)।मु०-उखड़ जाना-टिक न सकना, पराजित | पैवस्त-वि० [फा०] पूरी तरह व्याप्त, भिदा हुआ या जज्ब । होना। -उठाना-रवाना होना; तेजीसे चलना। -का पैशाच-वि० [सं०] पिशाच-संबंधी; पिशाचका; पिशाचनाखन न देखना-सूरत न देखना ।-छना-पाँव पड़ना कृत; पिशाचोचित । पु० एक प्रकारका हीन विवाह जिसमें दीनता प्रकट करना ।-जमना-स्थिर होना, दृढ़ होना। किसी सोयी हुई या प्रमत्त कन्याका कौमार हरण करने-डालना-दखल देना।-तोड़कर बैठना-कहीं जाना- वाला उसके पतित्वका अधिकारी हो जाता है (स्मृति) । आना बंद करना। -तोड़ना-चलते-चलते थक जाना; पैशाचिक-वि० [सं०] पिशाच-संबंधी; पिशाचका; करता.. दौड़-धूप करना । -धरना,-रखना-कदम रखना, | पूर्ण, घोर (ला०)। चलना । (धरतीपर)-न रखना-इतराना ।-निका- | पैशाची-स्त्री० [सं०] प्राकृत भाषाका एक भेद । लना-पीछा छुड़ाना ।-पकड़ना-पैर छना; कहीं जानेसे , पैशुन्य-पु० [सं०] पिशुनता, चुगलखोरी; दुष्टता। रोकना ।-पसारना,-फैलाना-आरामसे लेटना; आडं- पैष्ट-वि० [सं०] आटेका बनाया हुआ, आटेसे तेयार बर फैलाना ।-फंसाना-अपने आपको संकट में डालना। किया हुआ। -बढ़ाना-चलना; सीमोलंघन करना। -भर जामा- पैष्टिक-वि० [सं०] आटेका बना हुआ । पु० एक प्रकारकी थक जाना। -भारी होना-गर्भ रहना ।-से पैर बाँध- सुरा।। कर रखना-साथ रखना, कहीं जाने न देना । पैरौं | पैसना-अ० क्रि० घुसना, प्रविष्ट होना । चलना-पैदल चलना।
पैसरा*-पु० झमेला, झंझट । पैरना-अ० क्रि० तैरना।
पैसा-पु० ताँबेका वह सिक्का जो आनेके चौथे और रुपयेके पैरवी-स्त्री० [फा०] पीछे-पीछे जाना, अनुगमन; मुकदमे- चौसठवें भागके बराबर होता है; द्रव्य, धन । ( की देखरेख कोशिश; खुशामद (हिं०)। -कार-पु० वाला-वि० धनी, मालवर, सर्राफ । पैरवी करनेवाला।
पैसा-पु० प्रवेश, पैठ; घुसने-पैठनेका मार्ग । पैरा-पु० रखे हुए चरण, कदम आगमन; पैर में पहननेका पैसेंजर-पु० [अं०] यात्री। -गाड़ी-स्त्री० [हिं०] सवारी एक प्रकारका कड़ा; लकड़ी आदिका बना हुआ आरोहण- ढोनेवाली रेलगाड़ी। मार्ग ।
पैहम-स्त्री० [फा०] निरंतर, लगातार । पैराई-स्त्री० पैरनेकी क्रिया या भाव; तैरनेका हुनर पौं-स्त्री० भोंपा भोंपेकी आवाज; अपानवायु निकलनेका तैरनेकी उजरत।
शब्द । पैराउ*-पु० दे० 'पैराव'।
पौंकना -अ० क्रि० पतला पाखाना फिरना; बहुत अधिक पैराक-पु० तैरनेवाला, तैराक ।
डरना । पु० चौपायोंकी दस्तोंकी बीमारी । पैराना-स० कि० किसीको तैरने में प्रवृत्त करना, तैराना। पौंगरा*-पु० बालक, बच्चा (कबीर)। पैराव-पु० नदी आदिमें वह स्थान जो केवल तैरकर पार | पौंगली-स्त्री० बाँस, नरकट आदिकी चोंगी। किया जा सके।
पौंगा-पु० बाँसकी नली; टिन आदिका चोंगा। वि. पैरी-स्त्री० काँसे आदिका पैरका एक चौड़ा गहना जिसे खोखला; अश, मूर्ख। -पंथी-स्त्री० मूर्खतापूर्ण कार्य, निम्न जातिकी स्त्रियाँ पहनती हैं। दाँनेके लिए फैलाये हुए ढोंग । वि० मूर्खतापूर्ण, ढोंगी। अनाजके पौधे दाँनेकी क्रिया; * सीढ़ी; पीढ़ी, पुश्त । पौगी-स्त्री० छोटी नली; जुलाहोंका एक नरसलका आला पैरेखना*-स० क्रि० दे० 'परेखना।
जिसपर सूत लपेटकर वे ताना, भरना करते हैं; बाँसकी पैरोकार-पु० दे० 'पैरवीकार'।
छोटी नली जो बेनेकी डाँडीमें उस ओर पहनायी रहती है पैरोल-पु० [अं॰] वर्जित कार्य न करने, नियत समयपर जिधरसे पकड़कर उसे डुलाते हैं। बाँस आदि पोली और फिर हाजिर होने आदिकी प्रतिज्ञा जिसके आधारपर राज- गांठदार वस्तुओंका दो गाँठोंके वीचका भाग; * तुमड़ी। मंदी दंडकी अवधि पूरी होनेके पहिले भी विशेष कारणवश पौंछ*--स्त्री० दे० 'पूँछ' ।। कुछ समयके लिए मुक्त कर दिया जाता है।
पौंछन-स्त्री. किसी लगी, सटी हुई वस्तुका पोंछनेसे पैलगी -स्त्री० पालागन, चरणस्पर्शके साथ किया हुआ | निकला हुआ भाग। प्रणाम; प्रणाम ।
पौंछना-सक्रि० किसी वस्तुपर हाथ, कपड़ा आदि फेरकर
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