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पुष्करिणी-पूछना विष्णु।
पुष्पाकर, पुष्पागम-पु० [सं०] वसंत ऋतु । पुष्करिणी-स्त्री० [सं०] हथिनी एक प्रकारका जलाशय; | पुष्पाजीव, पुष्पाजीवी(विन)-पु० [सं०] माली ।
कमलोंका समूह; कमलका पौधा; कमलयुक्त जलाशय । पुष्पापीड-पु० [सं०] सिर पर धारण की जानेवाली फूलकी पुष्कल-वि० [सं०] श्रेष्ठ; अति शोभन; पूर्ण, भरपूर |
र; | माला आदि । प्रचुर, बहुत; पर्याप्त ।
पुष्पायुध-पु० [सं०] कामदेव । पुष्ट-वि० [सं०] जिसका पोषण किया गया हो, पोषित; पुष्पाराम-पु० [सं०] फुलवारी । मोटा-ताजा, तगड़ा; पोढ़ा, पक्का; पूर्ण।
पुष्पासव-पु० [सं०] मधु; फूलोंसे बनी हुई शराब । पुष्टई-स्त्री० बलवर्द्धक औषध, ताकत बढ़ानेवाली दवा । पुष्पित-वि० [सं०] खिला हुआ, विकसित; जिसमें फूल पुष्टता-स्त्री० [सं०] पुष्ट होनेका भाव;बलिष्ठता, तगड़ापन । लगे हों। पुष्टि-स्त्री० [सं०] पोषण; वृद्धि तगड़ापन; अभ्युदयः पुष्पोद्यान-पु० [सं०] फुलवारी । सहारा समर्थन हढीकरण । -कर,-कारक-वि० पोषण पुष्पोपजीवी(विन्)-पु० [सं०] माली। करनेवाला, पुष्ट बनानेवाला, बलवर्द्धक । -मार्ग-पु० पुष्य-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध नक्षत्र, पूसका महीना; कलि. वल्लभाचार्य द्वारा प्रवर्तित एक वैष्णव संप्रदाय, वल्लभ- काल; फूल (वेद)। -मित्र-पु० शुंगवंशका पहला राजा संप्रदाय ।
जो अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथको मारकर ई० पू० १८५ में पुष्टीकरण-पु० [सं०] किसी कथन या कृत्यको ठीक मान- मगधके सिंहासनपर आरूढ हुआ था। कर उसका समर्थन करना; (रैटिफिकेशन); दे० 'अनु- पुष्यार्क-पु० [सं०] एक योग जो सूर्य के पुष्य नक्षत्र में होनेसमर्थन।
पर होता है (ज्यो०)। पुष्प-पु० [सं०] फूल, कुसुम; स्त्रीका रज; कुबेरका पुष्पक पुसाना*-अ० क्रि० पूरा पड़ना; उचित जान पड़ना। विमान, आँखका एक रोग; विकसित होना, खिलना । पुस्तक-स्त्री० [सं०] हाथकी लिखी या छपी हुई पोथी, ग्रंथ, -काल-पु. वसंत ऋतु: स्त्रियोंका ऋतुकाल | -कीट- किताब । -मुद्रा-स्त्री० हाथकी एक मुद्रा (तंत्र)। पु० फूलका कीड़ा; भ्रमर, भौंरा ।-केतन-पु० कामदेव। | पुस्तकाकार-वि० [सं०] जो आकारमें पुस्तकके समान -केतु-पु० कामदेवः पुष्पांजन। -चय,-चयन-पु० या पुस्तकके रूपमें हो, पुस्तकके आकारका । फूल लोदना । -चाप,-धनु,-धन्वा(न्वन्)-पु० पुस्तकागार, पुस्तकालय-पु० [सं०] वह स्थान जहाँ कामदेव । -जीवी (विन)-पु० माली । -दंत-पु० विभिन्न विषयोंकी पुस्तकें संगृहीत हों, (लाइब्ररी)। शिवका एक अनुचर; विष्णुका एक अनुचर; एक गंधर्व पुस्तकाध्यक्ष-पु० [सं०] (लाइब्रोरियन) दे०'ग्रंथागारिक' । जिसने महिम्नस्तोत्र रचा है; एक विद्याधर; एक नाग । पुस्तकास्तरण-पु० [सं०] किताब था पोथीका बेठन । -दाम(न)-पु० फूलोंकी माला; एक छंद । -द्रुम-पु० पुस्तकी-स्त्री० [सं०] छोटा ग्रंथ ।। पुष्पप्रधान पौधा, वह पौधा जो केवल फूलके लिए हो। पुस्त-ढाक-पु० (बुकपोस्ट) छपी हुई पुस्तकें, संवादपत्र या -ध्वज-पु० कामदेव । -निर्यास-पु० फूलका रस, उसमें छपनेके लिए भेजे जानेवाले लेख, समाचार आदि मकरंद ।-पुर-पु० पटनेका एक प्राचीन नाम । -बलि डाक-विभाग द्वारा निर्धारित विशेष रियायती दरसे भेज. -स्त्री०फूलोंकी भेंट या चढ़ावा-बाण,-वाण,-विशिख नेकी रीति । -पु० कामदेव । -रज (स)-स्त्री० पराग। -रथ- | पुस्तिका-स्त्री० [सं०] छोटी पुस्तक । पु० यात्रा, हवाखोरीके काम आनेवाला रथ ।-रस-पु० पुहकर, पुहकर*-पु० दे० 'पुष्कर' । फूलका रस, मकरंद । -राग,-राज-पु० पुखराज। | पुहना*-अ० क्रि० पोहा जाना, Dथा जाना । -रेणु-स्त्री० पराग ।-वर्ग-पु० कचनार,सेमल, अगस्त्य पुहमी*-स्त्री० पृथ्वी।। आदिके फूलोंका एक विशिष्ट समाहार (आवे०)।-वर्षण पुहाना-स० कि० गुथवाना, पिरोनेका काम कराना। -पु० पुष्पवृष्टि। -वाटिका-वाटी-स्त्री० फुलवारी। पुहुप*-पु० फूल, पुष्प । -राग-पु० पुष्पराग, पुखराज । -वृष्टि-स्त्री० फूलोंकी वर्षा । -शय्या-स्त्री० फूलोंका | -रेनु-स्त्री० पुष्परेणु, पराग। बिछौना। -शर-शरासन-पु. कामदेव ।-समय- पुहमी*-स्त्री० भूमि, पृथ्वी । -पति-पु० राजा। पु० वसंत ऋतु । -सायक-पु. कामदेव । -सार,- पुहुधी*-स्त्री० भूमि, पृथ्वी । स्नेह,-स्वेद-पु. मकरंद या मधु । -हास-पु० | पूँगी -स्त्री० एक तरह की बाँसुरी। फूलोंका खिलना विष्णु । -हीन-वि० फूलोंसे रहित, पूछ-स्त्री० पशु-पक्षी आदिके शरीरका वह रीढ़से लगा (वह पौधा या पेड़) जिसमें फूल न लगें। पु० गूलरका अंग जो प्रायः गुदाके ऊपर-ऊपर दूरतक लंबा चला जाता पेड़ । -हीना-स्त्री० गतार्तवा स्त्री।
है। किसी पदार्थका पिछला भाग, सदा पीछे लगा रहनेपुष्पक-पु० [सं०] फूल; पीपल; कुबेरका विमान; मिट्टी- वाला, पुछल्ला; पूँछकी तरह जुड़ी हुई वस्तु । मु. का चूल्हा या अँगीठी; लोहेका कटोरा, रसौत; दाँतका (किसीकी)-पकड़कर चलना-आँख मूंदकर किसीका मैल; एक तरहका साँप, एक पर्वत ।
अनुगमन करना; किसीकी सहायतासे कोई काम करना। पुष्पवती-स्त्री० [सं०] रजस्वला स्त्री मस्त (उठी हुई) गाय । पूछा-स्त्री० दे० 'पूछ' । -ताछ,-पाछ-स्त्री० दे० पुष्पांजलि-स्त्री० [सं०] अंजलीभर फूल; अंजली में रखे हुए 'पूछताछ' ।
| छना-स० क्रि० दे० 'पूछना'।
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