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पुनर् - पुरबिया
पु० ( री-इनैक्टमेंट) फिरसे कोई विधान, अधिनियम आदि बनाना, पुनरधिनियमन । - विभाजन - पु० जिसका एक बार विभाजन हो चुका हो, उसका फिरसे विभाजन करना । - विलोकन - पु० ( रिव्यू) दंडादेश आदिपर फिर से विचार करना; बीती हुई घटनाओं की संक्षिप्त आलोचना । - विवाह - पु० दूसरा ब्याह । पुनश्चर्वण - पु० [सं०] पागुर करना । पुनि* - अ० पुनः फिरसे । - पुनि - अ० बार-बार । पुनिम* - स्त्री० पूर्णिमा ।
पुनी * - वि० पुण्य करनेवाला, पुण्यात्मा । स्त्री० पूर्णिमा । अ० पुनः, फिर ।
पुनीत - वि० [सं०] पवित्र किया हुआ; शुद्ध, पाक । पुन* - पु० दे० 'पुण्य' ।
'पुनर्याय प्रार्थना' | - आहार- पु० दुबारा भोजन करना; दुबारा किया हुआ भोजन । - ईक्षण - पु० ( रिवीजन) संशोधन या भूलसुधार आदिकी दृष्टिसे मुकदमेकी फाइल, लेख, पुस्तक आदिकी सामग्री, आय-व्ययके आँकड़े आदि फिरसे देखना या पढ़ना। - ईक्षित- वि० (रिवाइज्ड) संशोधन या सुधारकी दृष्टिसे जो फिरसे देख लिया गया हो । - ईक्षित-पाठ - पु० (रिवाइज्ड वर्शन ) वह विवरण, वक्तव्य आदि जो फिरसे भली भाँति देख लिया, जाँच लिया गया हो। -उक्त-वि० दुबारा या बार-बार कहा हुआ । - उक्तवदाभास-पु० एक शब्दालंकार, जिसमें शब्द सुनने से पुनरुक्तिसी जान पड़े, पर वास्तव में पुनरुक्ति न हो। - उक्ति- स्त्री० किसी बातको दुहराना या एक ही बातको बार-बार कहना ( साहित्य में यह एक दोष माना जाता है) । - उज्जीवन पु० (रिवाइवल ) पुनः जीवन दान देना; फिरसे उन्नतिकी ओर ले जाना । - उत्थान - पु० पुनः उठना; पुनः उन्नति; (रिनेसाँ) कला और साहित्यका पुनर्जन्म या नये रूपसे होनेवाली उन्नति, नवोत्थान । - उत्पत्ति - स्त्री० फिर उत्पन्न होना । - उत्पादन- पु० पुनः उत्पादन करना; पुनः निर्माण करना । - उद्धार - पु० फिरसे ठीक करना, बचाना, मरम्मतः आदि करना। -गमन-पु० दुबारा जाना । - जन्म (न्) - पु० मरनेके बाद फिरसे उत्पन्न होना, दुबारा शरीर धारण करना । - जन्मा ( न्मन् ) - पु० ब्राह्मण । - जात - वि० फिर जनमा हुआ। -नवास्त्री० शाककी जातिका एक बरसाती पौधा, गदहपूरना । - नियुक्ति - स्त्री० ( री-इंस्टेटमेंट) किसी पद या कामपर फिरसे नियुक्त कर दिया जाना। - न्यायप्रार्थना - स्त्री० (अपील) पुनर्विचार के लिए कोई मामला उच्चतर न्यायालय में रखना, अपील । - न्यायप्रार्थी - पु० (एपेलेंट) वह जो अपना व्यवहार (मामला) पुनर्विचार के लिए किसी ऊँचे न्यायालय में रखे । भव-पु० फिरसे शरीर धारण करना, दुबारा उत्पन्न होना; नाखून; एक तरहकी पुन नवा । वि० जो फिरसे उत्पन्न हुआ हो। -भाव - पु० दूसरा जन्म । - भू-स्त्री० वह स्त्री जो पहले पतिके मरनेपर किसी दूसरे पुरुषसे ब्याही गयी हो । भोगपु० पूर्वकर्मके फलके रूपमें सुख या दुःखका पुनः भोग । - मुद्रित - वि० ( री-प्रिंटेड ) जो फिरसे छापा गया हो । -मूल्यन - पु० ( री-वैल्यूएशन) फिरसे मूल्य आँकना या लगाना; मुद्रा आदिका फिरसे मूल्य निश्चित करना, ठहराना। -युक्त कोण-पु० ( रीफ्लेक्स एंगिल) वह कोण जो दो समकोणों से बड़ा, किंतु चार समकोणोंसे छोटा हो । - वसु - पु० सत्ताईस नक्षत्रों में से सातवाँ नक्षत्र; विष्णु | - वार- अ० दुबारा । -वास - पु० ( रीहैबिलिटेशन) जिनका घर-बार नष्ट हो गया हो या जो उद्वासित हो गये हों उन्हें फिरसे बसाना। -विचारन्यायाधिकरण - पु० ( अपेलैट ट्रिब्यूनल ) मामलों, मुकदमोंपर पुनः विचार करनेवाली अदालत | -विचारन्यायालय - पु० ( कोर्ट ऑफ अपील ) छोटी या मातहत अदालतों में निर्णीत मामलोंपर पुनः विंचार करनेवाला न्यायालय । -विचार प्रार्थी - पु० (एपेलेंट) दे० : 'पुनन्ययप्राथी' । - विधायन -
३१ - क
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पुनाग - पु० [सं०] एक बड़ा सदाबहार पेड़; श्रेष्ठ पुरुष । पुन्य* - पु० दे० 'पुण्य' । - ताई* - स्त्री० दे० 'पुण्य' । पुरंदर - पु० [सं०] इंद्र; शिव, विष्णु; अग्नि । पुरंधि, पुरंध्री-स्त्री० [सं०] पतिपुत्रवती स्त्री; ( सम्मानित ) स्त्री । पुरःस्थापन - पु०, पुरः स्थापना - स्त्री० [सं०] (इंट्रोडक्शन) पुरःस्थापित करनेकी क्रिया ।
पुरःस्थापित करना - स० क्रि० (टू इंट्रोड्यूस ) ( सभा आदिमें ) औपचारिक रूपसे रखना या सामने लाना । पुर- पु० [सं०] बाजार; खाई; नगर; कोट, किला; गृह; शरीर अंतःपुर; भंडारघर; राशि, ढेर; त्रिपुरासुर । वि०भरा हुआ, पूर्ण । -जन- पु० पुरवासी लोग । - त्राण - पु० प्राचीर, शहरपनाह । -द्वार - पु० नगरका प्रवेशद्वार । -नारीस्त्री० वेश्या । - पाल, - पालक-पु० नगरपाल; आत्मा । - भिद् - पु० शिव । - मथन, - मथिता (तृ) - पु० शिव । - रोध- पु० नगरका घेरा डालना । - लोक - पु० पुरजन । -वधू - स्त्री० दे० 'पुरनारी' । - वासी (सिन्) - पु० नगर में रहनेवाला, पौर, नागरिक। -शासन - पु० शिव, विष्णु । - हा ( हन्) - पु० विष्णु शिव । पुर+पु० मोट, चरसा । - वट-पु० मोट, चरसा ।-हापु० वह व्यक्ति जो मोट चलते समय उसका पानी ढालने या छीननेके लिए कुएँपर नियुक्त रहता है। पुर- वि० [फा०] भरा हुआ, पूर्ण । -अमन - वि० शांतिमय। - खुमार - वि० नशेसे भरा हुआ। जोर- वि० जोरदार ; ओजःपूर्ण । -जोश- वि० जोशसे भरा हुआ । पुरइन* - स्त्री० कमलका पत्ता; कमल; जरायु, अपरा । पुरइया * - पु० तकुआ; ताना । पुरखा-पु० बापसे ऊपर की किसी पीढ़ी में उत्पन्न कोई पुरुष, पूर्वपुरुष (जैसे- दादा परदादा ); बड़ा-बूढ़ा (व्यंग्य) । पुरचक- स्त्री० पुचकार; बढ़ावा, उभाड़नेकी क्रिया । पुरज़ा - पु० [फा०] कागजका टुकड़ा; खंड, टुकड़ा; अवयव, अंग; चिड़ियाका बारीक पर; रुक्का । मु० ( पुरज़े) पुरजे उड़ना या होना-टुकड़े-टुकड़े होना । - पुरज़े उड़ाना या करना - टुकड़े-टुकड़े करना । पुरट - पु० [सं०] स्वर्ण, सोना । पुरतः - अ० [सं०] समक्ष, आगे ।
पुरवला; पुरबिला, पुरबुला* - वि० पहलेका; पूर्वजन्मका । पुरबिया - वि० पूरबका । पु० पूरबी देशका निवासी ।
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