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पुटियाना - पुनर
पुटियाना ** - स० क्रि० फुसलाना, समझा-बुझाकर राजी करना या अपने पक्षमें लाना ।
पुटी - स्त्री० [सं०] छोटा दोना; कौपीन; गड्ढा; पुड़िया । पुटीन - पु० किवाड़ों, खिड़कियों आदिमें शीशे जड़ने और लकड़ीकी चीजोंके छेद आदि भरने के कामका तीसी के तेल और खरिया मिट्टी से तैयार किया जानेवाला एक प्रकारका
मसाला ।
पुट्ठा-पु० चूतड़का ऊपरी मांसल भाग; चौपायोंका, विशेषकर घोड़ोंका चूतड़; किताबकी जिल्दका उस ओरका भाग जिधर सिलाई की गयी रहती है । पुठवार* - अ० पृष्ठभाग में, पीछे ।
पुठवाल - पु० भले-बुरे काममें साथ देनेवाला, पृष्ठपाल । पुड़ा - पु० बड़ी पुड़िया; ढोल मढ़नेका चमड़ा | पुड़िया - स्त्री० वह कागज या पत्ता जिसमें कोई दवा या अन्य वस्तु लपेटकर रखी गयी हो; पुड़िये में लपेटी हुई एक खुराक दवा; खान, घर (जैसे- आफतकी पुड़िया) । पुड़ी - स्त्री० ढोल मदनेका चमड़ा; पूरी, सुहारी; * पुड़िया ।
पुण्य - वि० [सं०] पवित्र, शुद्ध; शुभ, भला; प्रिय; सुंदर । पु० शुभ अष्टवाला कृत्य, शुभ फल देनेवाला कार्य; सुकृत । - कर्ता (र्तृ ) - पु० पुण्य करनेवाला । -कालपु० ऐसा समय जिसमें स्नान, दान आदि करनेसे पुण्य हो । - कृत् - वि० पुण्य करनेवाला । - कृत्य-पु० ऐसा कार्य जिसे करनेसे पुण्य हो । - क्षेत्र - पु० तीर्थ; आर्यावर्त । - दर्शन - वि० जिसका दर्शन शुभ फल देनेवाला हो; सुंदर । पु० पवित्र स्थानोंका दर्शन । - पुरुष - पु० धर्मात्मा मनुष्य । - भूमि - स्त्री० आर्यावर्त । - शील- वि० पुण्य करना जिसका स्वभाव हो, धर्मपरायण । - श्लोक - वि० उत्तम यशवाला, जिसका चरित्र पावन हो । पु० विष्णु; युधिष्ठिर; नल । -स्थान- पु० तीर्थस्थान | पुण्याई - स्त्री० पुण्यका प्रताप । पुण्यात्मा (त्मन्) - वि० [सं०] पुण्य करना जिसका स्वभाव हो, पुण्यशील, धर्मात्मा ।
पुण्योदय - पु० [सं०] शुभ अष्टका उदय होना, सौभाग्यका उदय ।
पुतना - अ० क्रि० पोता जाना, चुपड़ा जाना । पुतरा* - पु० दे० 'पुतला' ।
पुतरि, पुतरिका * - स्त्री० दे० 'पुत्तलिका' | पुतरिया * - स्त्री० दे० 'पुतली' ।
पुतरी* - स्त्री० दे० 'पुतली' । पुतला - पु० लकड़ी, धातु, कपड़े आदिकी बनी हुई पुरुषकी प्रतिमा जो विशेषकर खिलौने के काम आती है; किसी व्यक्तिकी सरपत आटे आदिकी बनायी हुई वह प्रतिमा जो उसके शव के अभाव में अंत्येष्टि करनेके लिए या उसका मरण मनानेके लिए जलायी जाय । मु० (किसी का) - बाँधना- किसीका अपयश फैलाना, किसीकी बदनामी करना ।
पुतली - स्त्री० लकड़ी, धातु, कपड़े आदिकी बनी हुई स्त्रीकी प्रतिमा जो विशेषकर खिलौने के काम आती है, गुड़िया; आँख के बीच का वह काला भाग जिसके मध्य में रूप ग्रहण
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करनेवाली इंद्रिय होती है; कपड़ा बुननेका यंत्र । - घर - पु० कपड़ेकी मिल । मु० - फिर जाना-आँखें पथरा जाना; घमंड होना ।
पुताई - स्त्री० पोतनेकी क्रिया या भाव, लेप; दीवार आदिपर मिट्टी, गोवर, चूने आदिका लेप करना; इस कामकी
उजरत ।
पुतारा - पु० किसी वस्तुपर पानी, रंग आदिसे तर कपड़ा फेरनेका काम; पानी, रंग आदिसे तर कपड़ा जो किसी वस्तुपर फेरा जाय ।
पुत्त* - पु० दे० 'पुत्र' ।
पुत्तरी* - स्त्री० दे० 'पुत्री'; दे० 'पुत्तली' | पुत्तलिका, पुत्तली- स्त्री० [सं०] पुतली ।
पुत्र - पु० [सं०] बेटा; प्यारा बच्चा। -लाभ - पु० पुत्रकी प्राप्ति, पुत्र उत्पन्न होना । - वधू - स्त्री० पुत्रकी पत्नी, पतोहू ।
पुत्रवती - वि० स्त्री० [सं०] पुत्रवाली (स्त्री) । पुत्रार्थी ( र्थिन् ) - वि० [सं०] पुत्र चाहनेवाला, पुत्रप्राप्तिकी इच्छा रखनेवाला ।
पुत्रिका - स्त्री० [सं०] बेटी; पुतली, गुड़िया, पुत्रहीन व्यक्ति वह कन्या जिसे उसने पुत्ररूप मान लिया हो; आँखकी पुतली ।
पुत्रिणी- वि० स्त्री० [सं०] पुत्रवाली । पुत्री - स्त्री० [सं०] कन्या, बेटी; दुर्गा ।
पुत्रेष्टि, पुत्रेष्टिका - स्त्री० [सं०] पुत्रलाभकी इच्छा से किया जानेवाला यज्ञविशेष ।
पुत्रैषणा - स्त्री० [सं०] पुत्रप्राप्तिकी कामना । पुदीना - पु० एक प्रसिद्ध छोटा पौधा जिसकी पत्तियाँ अच्छी गंधवाली होती हैं और चटनी आदि में पीसकर खायी जाती हैं ।
पुनः ( नर ) - अ० [सं०] फिर दुबारा - पुनः - अ० बारबार । - प्राप्ति - स्त्री० कोई वस्तु फिरसे प्राप्त होना । - संस्कार - पु० द्विजातिका वह उपनयन संस्कार जो गोमांसभक्षण, सुरापन आदिके प्रायश्चित्तके रूपमें दुबारा हो । -स्थापन - पु० फिरसे स्थापित करना । पुनरबस, पुनरबसु * - पु० दे० 'पुनर्वसु ' । पुनर - अ० [सं०] एक बार और, फिर, दुबारा । - अपिअ० फिर भी; बार-बार । -अधिनियमन - पु० दे० 'पुनर्विधायन' (री-इनेक्टमेंट) । - अस्वीकरण - पु० (री-आर्भमेंट) पुनः अस्त्र-संभार बढ़ाना, सेनाको नये-नये आधुनिक शस्त्रास्त्रों से सज्जित करना; किसी देशकी अस्त्रविद्दीन की गयी सेनाओंको पुनः अस्त्रादिसे युक्त करना । - आगतवि० फिरसे आया हुआ, लौटा हुआ । -आगम, - आगमन - पु० फिरसे आना, लौटना । -आनयन - पु० लौटा लाना, पुनः ले आना । - आवर्त - पु० लौटना; फिरसे जन्म ग्रहण करना। -आवर्तक- वि० पुनःपुनः आनेवाला (ज्वर) । - आवर्ती ( तिनू ) - वि० फिरसे या बार-बार जन्म ग्रहण करनेवाला । - आवृत्तवि० दोहराया हुआ; संसार में फिर से आया हुआ; लौटा हुआ । - भावृत्ति - स्त्री० दोहराना फिरसे आना या कोई बात फिर से करना। -आवेदन- पु० (अपील) दे०
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