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पीतम-पुंडरीक
१८४ पीतम-पु० प्रियतम, कांत ।
पीरोजा-पु० दे० 'फीरोजा'। पीतल-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध उपधातु जो मुख्यतः ताँबे | पील-पु. कीड़ा; पीलूका पेड़ [फा०] हाथी; शतरंजका और जस्तेके योगसे तैयार की जाती है।
एक मोहरा जो तिरछे चलता और तिरछे ही मारता पीतांबर-पु० [सं०] पीला वस्त्र विशेष प्रकारको रेशमी है (ऊँट)। -ख़ाना-पु० हस्तिशाला। -पाँव-पु० धोती जिसे हिंदू पूजा-पाठ तथा संस्कार आदिके समय [हिं॰] एक प्रसिद्ध रोग जिससे प्रायः पाँवका घुटनेसे धारण करते हैं; कृष्ण; विष्णु । वि० पीले वस्त्रवाला। नीचेकी ओरका भाग सूज जाता है (अधिक सूजनेपर पाँव पीतातंक-पु० [सं०] (येलो पेरिल ) यह भय कि चीन, हाथीके पाँवकी तरह मोटा हो जाता है)।-पा-पु० दे० जापान आदि देशोंकी पीली जातियाँ अपनी शक्ति बढ़ा- 'पीलपाँव' । -पाया-पु० थूनी, टेक । -पाल-पु. कर कहीं सारे संसारपर छा न जाय ।
महावत, हाथीवान । -बान-पु० हाथी हाँकनेवाला, पीताब्धि-पु० [सं०] अगस्त्य मुनि (जिन्होंने समुद्र-सोख महावत, हाथीवान |-वान-पु० [हिं०] दे० 'पीलबान'। लिया था)।
पीलसोज*-पु० दीवट । पीताभ-वि० [सं०] पीले रंगका ।
पीला-वि० हल्दीके रंगका, जर्द तेज या आभासे रहित, पीतिमा(मन्)-स्त्री० [सं०] पीलापन ।
निष्प्रभ, फीका । मु०-पड़ना-तेज या आभासे रहित पीती*-स्त्री० दे० 'प्रीति'।
होना । (पीली) फटना-पौ फटना। पीन-वि० [सं०] स्थूल, मोटा; परिपुष्ट; भारी; भरापूरा। पीलिमा*-स्त्री० पीलापन । पीनक-स्त्री० पिनकनेकी क्रिया, अफीमके नशेसे ऊँघना। पीलिया-पु० पांडु रोग। पीनता-स्त्री० [सं०] स्थूलता, मोटाई; परिपुष्टता; भारीपन। पीलु-पु० [सं०] एक वृक्ष, पीलू; हाथी; ताड़के वृक्षोंका पीनस-स्त्री० फ़ीनस, पालकी । पु० [सं०] नाकका जुकाम समूह; फूल; बाण । जिसमें गंधग्रहणकी शक्ति नष्ट हो जाती है।
पीलू-पु० एक वृक्ष या उसका फल; एक राग दे० 'पिल्लू'। पीना-स० कि० किसी द्रव पदार्थको घुट-घुट करके पेटमें पीव-* पु० प्रियतम । । स्त्री० दे० 'पीब' । पहुँचाना, पान करना; किसी बातको सह लेना; (क्रोधको) पीवना*-स० क्रि० दे० 'पीना'। भीतर ही भीतर दबा देना, प्रकट न होने देना; शराब पीवर-वि० [सं०] स्थूल, मोटा; भरा-पूरा । पीना गौरसे सुनना, ध्यानसे सुनना; हुक्के, सिगरेट पीसना-सक्रि० रगड़कर या दबाव पहुँचाकर किसी कड़ी आदिका धुआँ खींचना; सोखना, जज्ब करना ।
वस्तुको चूरेके रूपमें बदलना, चूर्ण करना; किसी वस्तुको पीप-स्त्री० घाव या फोड़ेका मवाद ।
जल या किसी अन्य तरल द्रव्यके योगसे रगड़कर बारीक पीपरी-पु० दे० 'पीपल'। -पर्न*-पु० पीपलका पत्ता | बनाना; किसी सरस वस्तुको रगड़कर या दबाव पहुँचाकर एक गहना।
बारीक बनाना; कुचल देना; तंग करना; दबाकर चिपटा पीपरामूल,पीपलामूल-पु०एक प्रसिद्ध ओषधि,पिप्पलीमूल । कर देना; घोर परिश्रम करना; (दाँत) कटकटाना। पु० पीपल-पु० बरगदकी जातिका एक पेड़ जिसे हिंदू पवित्र वह वस्तु जो किसीको पीसनेके लिए दी जाय । मानते है, अश्वत्थ । स्त्री० एक प्रसिद्ध लता।
पीहर-पु० मायका। पीपा-पु० काठ या लोहेका ढोलके आकारका बना एक पुंख-पु० [सं०] बाणका पिछला भाग जिसपर कभी-कभी बड़ा पात्र जिसमें तेल आदि द्रव पदार्थ रखे या बंद करके पर लगाये जाते थे; बाज पक्षी । बाहर भेजे जाते हैं।
पुखित-वि० [सं०] पंखयुक्त (बाण) । पीब-स्त्री० दे० 'पीप'।
पुंगफल-पु० सुपारी। पीय*-पु. स्वामी, पति ।
पुंगव-पु० [सं०] साँड़ बैल; (समासांतमें) किसी वर्ग या पीयरी-वि० पीला।
समुदायका श्रेष्ठ व्यक्ति (नरपुंगव)। पीया-पु० पति, स्वामी।
पुंगीफल-पु०सुपारी। पीयूख-पु० दे० 'पीयूष' ।
पुंछल्ला-पु० दे० 'पुंछाला' । पीयूष-पु० [सं०] अमृत; दूध; गायका ब्यानेके बाद पहला | पुंछार*-पु० मोर ।
या सात दिनतकका दूध । -भानु-पु० चंद्रमा। छाला-पु० पुछल्ला, पूँछकी तरह लगी रहनेवाली वस्तु पीर-स्त्री० पीड़ा, व्यथा, दुःख, दर्द, प्रसवपीड़ा (ठेठ); पिछलगा। [फा०] बूढ़ा आदमी, बुजुर्ग; महात्मा, सिद्ध धर्मगुरु । पुंज-पु० [सं०] समूह राशि, ढेर, अटाला । वि० वृद्ध, बूढ़ा; चालाक, धूर्त । -जादा-पु० पीर या पुंजि-स्त्री० [सं०] धर्मगुरुका पुत्र ।
पुंजित-वि० [सं०] राशीकृत, ढेर लगाया हुआ। पीरना*-स० क्रि० पेरना-'तेली ह तन कोल्हू करिहौं पुंजी*-स्त्री० दे० 'पूँजी'। पाप-पुन्नि दोउ पीरौं'-कबीर ।
पुंजोत्पादन-पु० [सं०] (मास प्रॉडक्शन) कारखाने पीरा-स्त्री० दे० 'पीड़ा'। वि० दे० 'पीला'।
आदिमें किसी वस्तुका बड़ी संख्यामें या बड़े पैमानेपर पीरानी-स्त्री० [फा०] पीरकी पत्नी ।
किया गया उत्पादन, समूहोत्पादन । पीरी-स्त्री० [फा०] बुढ़ापा; चेला पूँड्नेका व्यवसाय; पुंडरीक-पु०[सं०] श्वेत कमल; कमल; श्वेत छत्र; अग्निचालाकी, धूर्तता; इजारा, अधिकार हुकूमत । | कोणका दिग्गज; बाध; अग्नि; तिलक; एक कोषकार ।
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