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पहुनाई-पाँव पहुनाई-स्त्री० पाहुना होनेका भाव; पाहुना बनकर कहीं पंचाल देशपर शासन करनेवाला । पु० पंचाल नामक जाना या आना; + अतिथि-सत्कार
देश; पंचाल देशका राजा; पंचाल देशके निवासी; बढ़ई, पहुप-पु० फूल, पुष्प ।
जुलाहा, नाई, धोबी और मोची-इन पाँचोंका समाहार । पहुम, पहमी-स्त्री० पृथ्वी ।
पांचालिका-स्त्री० [सं०] कपड़े आदिकी बनी हुई गुड़िया, पहला-स्त्री० कुई ।।
पुतली। पहेरी, पहेली-स्त्री० किसीकी बुद्धिकी परीक्षा लेनेके पांचाली-स्त्री० [सं०] पंचाल देशकी स्त्री या रानी; पांडवोंकामका एक प्रकारका प्रश्न, वाक्य या वर्णन जिसमें किसी की पत्नी द्रौपदी जो पंचाल देशको राजकुमारी थी; पुतली, वस्तुका भ्रामक या टेढ़ा-मेढ़ा लक्षण देकर उसे बूझने या गुड़िया; काव्यकी एक प्रसिद्ध रचनाशैली । अभीष्ट वस्तुका नाम बतानेको कहते है, बुझौवल; कोई पाँच*-स्त्री० किसी पक्षकी पाँचवीं तिथि, पंचमी।। ऐसी बात या ऐसा विषय जो जल्दी समझमें न आये पाँजना-म० क्रि० लोहे, पीतल आदिकी वस्तुओंको टाँका ऐसी समस्या जो जल्दो हल न की जा सके। मु०- देकर जोड़ना, झालना। बुझाना-अपनी बातको ऐसे शब्दोंमें कहना कि वह पाँजर-पु० शरीरका काँख और कमरके वीचका पसलियोंजल्दी सुननेवालेकी समझमें न आये।
वाला भाग, पंजर, पाव । पाँ, पाँइ-पु० पैर, पाँव ।
पाँजी*-स्त्री० नदीमें पानीकी इतनी कमी होना कि लोग पाँइता*-पु० चारपाईका पैर रखनेकी ओरका हिस्सा, उसे हलकर पार कर सकें। पायताना।
पाँझ-वि० हलकर पार करने योग्य ( नदी)। पाँउ*-पु० पैर, पाँव ।
पांडर-पु० [सं०] सफेद रंग; दोना; कुंदका फूल; गेरू । पाँक*-पु० पंक, कीचड़ ।
वि० सफेद रंगका। पांक्त-वि० [सं०] पंक्ति-संबंधी; पंक्तिका ।
पांडव-पु०[सं०] पांडुके पुत्र-युधिष्ठिर,भीम, अर्जुन आदि; पाँख-पु० पंख, पर, डैना ।
पंजाबका एक प्राचीन प्रदेश। -श्रेष्ठ-पु० युधिष्ठिर । पाँखड़ा -पु. एख, पर ।
पांडित्य-पु० [सं०] पंडिताई, विद्वत्ता। पाँखड़ी-स्त्री० दे० 'पँखड़ी'।
पांड-पु० [सं०] सफेद-पीला रंग; सफेद रंग; पीलिया . पाँखी*-स्त्री० दीपकपर जल मरनेवाली पाँखवाली कीड़ी, रोग; सफेद हाथी; पांडवोंके पिता; पांडुफल, परवल; फतिंगा, पक्षी, चिड़िया।
वि० पीलापन लिये हुए सफेद रंगका, सफेद-पीले रंगका; पाँखुरी-स्त्री० दे० 'पँखड़ी' ।
सफेद रंगका। -फल-पु. परवल । -मृत्(),पॉग-पु० गंगबरार, कछार ।
मृत्तिका-स्त्री० सफेद या पीले रंगकी मिट्टी; खड़िया । पाँगानोन-पु० समुद्र के पानीसे तैयार किया जानेवाला -रोग-पु० पीलिया। -लिपि-स्त्री० दे० 'पांडु-लेख'; नमक, समुद्री नोन ।
पुस्तककी हस्तलिखित प्रति । -लेख, लेख्य-पु० पट्टी, पाँगुर* -वि० पंगु, लँगड़ा । पु० लँगड़ा मनुष्य ।
कागज आदिपर अंकित वह लेख या रेखाचित्र जिसे पुनः पांगुल्य-पु० [सं०] पंगुल होनेका भाव, लंगड़ापन । काट-छाँटकर ठीक किया जाय, मसविदा । -लेखक-पु० पाँच-विचारसे एक अधिक, दसका आधा। पु० पाँचकी (लेख आदिकी) पाण्डुलिपि तैयार करनेवाला। संख्या, ५, * पाँच व्यक्ति बहुतसे लोग, जनता; जाति-पांडुर-पु० [सं०] पीलापन लिये हुए सफेद रंग, सफेदबिरादरीके नेता या सरदार । मु०-पाँचौँ या पाँचौँ पीला रंग; सफेद रंग, पांडु रोग; सफेद कोढ़ । वि० उँगलियाँ घी में होना-खूब फायदा उठाना।-सवारोंमें | पीलापन लिये हुए सफेद रंगका; सफेद रंगका । नाम लिखाना-पात्रता न होते हुए भी अपनेको बड़ोंमें पाँड़े-पु० श्राह्मणोंकी एक उपाधि; * अध्यापक रसोइया । सम्मिलित करना।
पांड्य-पु० [सं०] पांडु देशका निवासी; पांडु देशका पांचजन्य-पु० [सं०] कृष्णका शंख, अग्नि ।
राजा; दक्षिणका एक प्राचीन प्रदेश; इस प्रदेशका निवासी पांचनद-वि० [सं०] पंचनद-संबंधी; पंजाबका, पंजाबी। या राजा।
पु० पंचनद अथवा पंजाबका राजा या वहाँका निवासी। पाँत-स्त्री० पंक्ति, कतार, पंगत; समूह । पांचभौतिक-वि० [सं०] पृथ्वी, जल, तेज आदि पाँच पाँति-स्त्री० कतार एक साथ खानेवालोंका समूह, तड़; भूतों या तत्त्वोंका बना हुआ।
स्वजनवर्ग। पांचयज्ञिक-वि० [सं०] पंचयज्ञ-संबंधी। पु० पाँच महा-पांथ-प० [सं०] पथिक, राही; प्रवासी । -निवास-पु०, यज्ञों में से कोई।
-शाला-स्त्री० धर्मशाला, सराय, चट्टी। पाँचर-पु० कोल्हूके मुँहपर, जहाँ जाठ लगता है, जड़ा पाय *-पु० पैर, चरण ।-चा-पु० दे० 'पायँचा' ।-ताजानेवाला लकड़ीका टुकड़ा।
पु० दे० 'पाता। क- वि० [सं०] पाँच वर्षका । [स्त्री०पांचवर्षिकी'] पाँव-पु० वह अंग जिसके बल प्राणी चलते हैं, पैर । पाँचवाँ-वि० गिनती या क्रममें पाँचके स्थानपर पड़नेवाला।
गिनता या क्रमम पाचक स्थानपर पड़नेवाला। -चप्पी-स्त्री० पैर दबानेकी क्रिया।-पाँव-अ० पैदल । पाँचा -पु० भूसा बटोरनेके कामका किसानोंका एक बेंटदार म०-अहाना-किसी बातमें बेकार दखल देना। -उखड़ आला जिसमें पाँच दाँते होते हैं।
या उठ जाना-लड़ाई में ठहर न सकना । -उठाकर पांचाल-वि० [सं०] पंचाल देश-संबंधी; पंचाल देशका चलना-तेज चलना ।-कट जाना-आने-जानेकी शक्ति
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