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पिछला-पित्त
४८० पिछला-वि० पीछेकी ओर पड़नेवाला, जो पीछेकी ओर पितामह-पु० [सं०] दादा; ब्रह्मा, पितर । हो, 'अगला'का उलटा; जो क्रममें किसीके पीछे पड़े पितामही-स्त्री० [सं०] दादी । या हो; जिसके आगे और कोई हो; जो अंतमें हो या | पितिया -पु० चाचा। -ससुरी-पु० चचिया ससुर । पड़े बादका, परवतीं बीता हुआ, व्यतीत; पुराना; जो -सासा-स्त्री० चचिया सास । किसी वस्तुके अंतिम भागसे संबद्ध हो; अंतिम भागका; पितियानी -स्त्री० चाची।। ठीक पीछेका।
पितु*-पु० पिता । -मातु*-पु० पिता और माता । पिछाड़ी-स्त्री० पृष्ठभाग, पीछेका भाग; घोड़ेके पिछले पैरों- पितृ-पु० [सं०] दे० 'पिता'; मरे हुए पुरखे प्रेतत्वसे मुक्त को खू टेसे बाँधनेकी रस्सी ।
पूर्वज । -ऋण-पु० एक प्रकारका शास्त्रोक्त ऋण जिससे पिछानां-स्त्री० दे० 'पहचान' ।
मनुष्य पुत्र उत्पन्न करनेपर मुक्त होता है।-कर्म(न),पिछानना*-सक्रि० दे० 'पहचानना' ।
कार्य, कृत्य-पु० श्राद्ध, तर्पण आदि जो पितरोंके निमित्त पिछारी+-स्त्री० दे० 'पिछाड़ी' ।
किये जाते हैं । -कल्प-पु० श्राद्धादिक कृत्य । वि० जो पिछेलना-स० कि० (धक्का देकर) पीछे कर देना। पिताके समान हो, पितृतुल्य । -कुल-पु० पिताके वंशपिछीह *-अ० पीछेकी ओर; पीछेकी ओरसे ।
के लोग । -क्रिया-स्त्री० दे० 'पितृकर्म'। -गृह-पु० पिछौरा*-पु० दुपट्टा, उत्तरीय ।
मायका, नेहर; श्मशान । -घात-पु० पिताकी हत्या पिछौरी*-स्त्री० स्त्रियोंकी ओढ़नी; ऊपरसे ओढ़ा जानेवाला करना 1-घातिक,-घाती (तिन)-पु० पिताका वध कोई वस्त्र, ओढ़नी।
करनेवाला। -तंत्र-पु० ( पैट्रिआर्की) समाजकी वह पिटत-स्त्री० पीटनेकी क्रिया, मार, पिटाई ।
प्राचीन व्यवस्था जिसमें घरका कोई बड़ा-बूढ़ा आदमी या पिटक-पु० [सं०] पिटारा; फुड़िया, वस्त्र, आभूषण आदि गृह-स्वामी ही समस्त परिवारका प्रबंधक होता था और रखनेकी पिटारी, झाँपी; विशेष प्रकारकी रचनाओंका उसीके अनुशासनमें वंश या परिवारकी विभिन्न शाखाओं, संग्रह (सुत्तपिटक, विनयपिटक)।
उपशाखाओंके सदस्योंको रहना पड़ता था । -तर्पण-पु० पिटका-स्त्री० [सं०] फुड़िया पिटारी।
पितरोंके निमित्त किया जानेवाला तर्पण; अँगूठे और पिटना-अ० क्रि० पीटा जाना;मार खाना; बजाया जाना तर्जनीके बीचका स्थान जिसके द्वारा तर्पण समर्पित करने बजना । पु. पीटनेका औजार, थापी ।
का विधान है। तिल; श्राद्धके समय दान की जानेवाली पिटवाना-स० क्रि० किसीके पीटे जानेका कारण होना; वस्तुएँ । -तिथि-स्त्री० अमावस्या। -दाय,-द्रव्यकिसीको पीटने में प्रवृत्त करना ।
पु० पितासे प्राप्त संपत्ति, मौरूसी जायदाद । -नाथ,पिटाई-स्त्री० पीटनेकी क्रिया; पीटनेकी उजरत ।
पति-पु० यमराज। -पक्ष-पु० आश्विनका कृष्ण पक्ष पिटारा-पु० बाँस, बेंत आदिकी तीलियोंसे बना हुआ | जिसमें पितृकृत्य करना प्रशस्त माना गया है; पिताका डिब्बेकी शकलका पात्र ।
कुल, पितृकुल; पितृकुलका मनुष्यः पिता, पितामह और पिटारी-स्त्री० छोटा पिटारा; पानदान । -का ख़र्च- प्रपितामह । -प्राप्त-वि०पितासे मिला हुआ।-बंधुस्त्रियोंका पानदानका खर्च, जेबखर्च; किसी स्त्रीकी व्यभि- पु० वह जिससे पिताके संबंधसे रिश्ता हो (जैसे पिताके चारकी कमाई।
मामाका पुत्र)। -भक्त-पु० पिताका भक्त, पिताकी पिट्टस-स्त्री० शोक-विह्वल होकर छाती पीटना ।
यथोचित सेवा करनेवाला । -भक्ति-स्त्री० पिताके प्रति पिट्ट-वि० जिसपर प्रायः मार पड़े।
आदर और यथोचित सेवाका भाव । -भोजन-पु० पिट्ट-पु० पीछे-पीछे चलनेवाला, अनुगामी (निंदा); सहा- | पितरोंका भोजन; पितरोंका भोज्य पदार्थ, उड़द । लोकयक, समर्थक; खुशामदी; साथ-साथ खेलनेवाला, खेलका पु० वह लोक जिसमें पितर निवास करते हैं, पितरोंका साथी; किसी खिलाड़ीका वह कल्पित साथी जिसके स्थान- लोक । -वंश-पु० पिताका कुल ।-वन,-सद्म(न)पर वह अपनी बारी समाप्त कर फिर खुद ही खेलता है। पु० श्मशान । -विसर्जन-पु० आश्विन कृष्ण अमापिठौरी-स्त्री० पीठीसे तैयार की हुई पकौड़ी आदि । वास्याके दिन पितरोंकी 'बिदाई'का कृत्य ।-वेश्म (न्)पिडक-पु०, पिडका-स्त्री० [सं०] फुड़िया, फुसी। पु० पिताका घर, मायका । -श्राद्ध-पु० पितरोंके पिड़किया-स्त्री० गुझिया नामक पकवान ।
निमित्त किया जानेवाला श्राद्ध । -सत्तात्मक-वि० पितंबरी-पु० दे० 'पीतांबर'।
(पैट्रिआर्कल) (वह प्रथा या पद्धति) जिसमें पिता या पितपापड़ा-पु० एक क्षुप जो दवाके काम आता हैं। गृह-स्वामीकी ही सत्ता सर्वोपरि मानी जाती रही हो। पितर-पु० मृत पूर्वजप्रतत्वसे छूटे हुए पूर्वज जिन्हें पिंडा- | -स्थान, स्थानीय-पु. वह जो पिताके स्थानपर हो, पानी दिया जाता है । -पति-पु० यमराज ।
अभिभावक, संरक्षक । -हा (हन्)-पु. पिताकी पितराधि, पितराई।-स्त्री० वह कसाव जो पीतल के बर- हत्या करनेवाला। तनमें खटाई रख देनेसे या अधिक देरतक भोज्यवस्तु रख पितृव्य-पु० [सं०] चाचा। देनेसे उसमें उत्पन्न हो जाता है।
पित्त-पु० [सं०] शरीरके तीन प्रसिद्ध दोषोंमेंसे एक (यह पिता(त)-पु० [सं०] किसीके संबंधमें वह व्यक्ति जिसके नीलापन लिये पीले रंगका और कड़वा होता है)।-करवीर्यसे उसकी उत्पत्ति हुई हो, जनक, वाप; दे० 'पितृ। वि. जो पित्त उत्पन्न करे, बढ़ाये। -कोष-पु. पित्तकी -पुत्र-पु० पिता और पुत्र, बाप और बेटा ।
थैली, पित्ताशय । -क्षोभ-पु.पित्तका प्रकोप। -ज
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