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दूलित-देखना
३६८ दूलित-वि० दे० 'दोलित' ।
बंदकर लेनेके बाद भी सामने विद्यमान-सा प्रतीत हो। दूल्हा-पु० वह व्यक्ति जिसका ब्याह होने जा रहा हो या | दृष्ट-वि० [सं०] देखा हुआ जाना हुआ।-कूट-पु० पहेली;
कुछ ही दिनों पहले हुआ हो, वर, नौशा; पति नायक। एक प्रकारकी पहेली जैसी दुरूह कविता जिसका अर्थ बहुत दूषक-पु० [सं०] दोषारोपण करनेवाला व्यक्ति, दोष लगाने सोच-सोचकर निकाला जाता है । या आक्षेप करनेवाला मनुष्य दुष्ट व्यक्ति।
दृष्टमान*-वि० दे० 'दृश्यमान'। दूषण-पु०[सं०] दोष, ऐव, खराबी, दुर्गुण; दोष लगानेका दृष्टांत-पु० [सं०] प्रस्तुत विषयको समझानेके लिए समान कार्य या भाव, दोषारोपण; अपराध; रावणका एक भाई । | धर्मवाली किसी दूसरी वस्तुका कथन, उदाहरण, मिसाल; * वि० विनाशकारी, संहारक ।
अर्थालंकारका एक भेद, जहाँ उपमेय वाक्य और उपमान दुषणारि-पु० [सं०] राम जिन्होंने दूषणको मारा था। वाक्यमें तथा उन दोनोंके धर्मों में 'बिब-प्रतिबिंब-भाव दुषणीय-वि० [सं०] जिसपर दोष लगाया जा सके, दोषा- दिखाया जाय । रोपणके योग्य ।
दृष्टार्थ-वि० [सं०] जिसका अर्थ या विषय स्पष्ट हो । दूषन*-पु० दे० 'दूषण'।
दृष्टि-स्त्री० [सं०] देखना, अवलोकन; देखनेकी शक्ति दूषना*-सक्रि० दोष लगाना; दूषित बनाना।
दीठ, नजर प्रकाश; ज्ञान; मत, विचार; उद्देश्य, अभिदूषित-वि० [सं०] दोषयुक्त, बुरा, गंदा, कलंकित । प्रायः सोचने-बिचारनेका पहलू । -कूट-पु० दे० 'दृष्टदूसना*-स० क्रि० दोष लगाना ।
कूट'। -कोण-पु० देखने-सोचने-विचारनेका पहलू । दूसर*-वि० दे० 'दूसरा'।
-क्रम-पु० चित्रित वस्तुओंमें वही सापेक्ष्य छोटाई-बड़ाई, दूसरा-वि० जो गिनतीमें दोके स्थानपर हो, पहलेके बाद- ऊँचाई-निचाई आदि दिखाई देना जो स्थानविशेषसे प्रत्यक्ष का; भिन्न, दीगर ।
दर्शनमें दिखाई देती है। -क्षेप-पु० दृष्टि डालनेकी दूहना-स० क्रि० दे० 'दुहना'।
क्रिया, अवलोकन । -गत-वि० जो देखने में आया हो, दहनी-स्त्री० दे० 'दोहनी' ।
जो देख पड़ा हो। -गोचर-वि० जिसका चाक्षुष प्रत्यक्ष दूहा*-पु० दे० 'दोहा'।
हो सके, जो देखा जाय, दिखाई पड़नेवाला । -दोषदृक (श)-पु० [सं०] आँख, दृष्टि; दोकी संख्या देखना; पु० नजरका बुरा असर; देखने में त्रुटि होना । -पथद्रष्टा; ज्ञान । -क्षेप-पु० किसी ओर दृष्टि डालना, दृष्टि- पु० नेत्रव्यापारका क्षेत्र । -पात-पु० दे० 'दृष्टिक्षेप' । पात। -पात-पु० दे० 'दृक्क्षेप' ।
-बंध-पु० नजरबंदी। -भ्रम-पु० (हेलूसिनेशन) ऐसी दृगंचल-पु० [सं०] पलक ।
किसी वस्तुका आभास होना जिसका वस्तुतः कोई बाध दृग-पु० आँख, दृष्टि; देखनेकी शक्ति। -मिचाव-पु० अस्तित्व न हो, आधारहीन या अस्तित्वहीन वस्तु देखनेआँखमिचौनी।
समझनेका धोखा, भ्रांति । -मांद्य-पु० आँखोंसे कम दृग्गोचर-वि० [सं०] दे० 'दृष्टिगोचर'।
दिखाई देना । -रोध-पु० देखनेकी क्रियाका रुकना या दृढ-वि० [सं०] जो विचलित न हो, जो डिग न सके, रोका जाना; देखनेके काममें होनेवाली रुकावट ।-विक्षेप धीर, कड़े दिलका; कसकर बँधा हुआ; अशिथिल; गाढ; -पु० तिरछी चितवन, कटाक्ष; दृष्टिपात । -विभ्रममजबूत, सबल, बलिष्ठ; पुष्ट; जिसमें कोई फेरफार न हो पु० प्रेमभरी चितवन, नेत्रविलास । मु०-फिरना-दे० सके पक्का, अटला कठिन; स्थूल, स्थायी, टिकाऊ।-कर्मा- | 'आँखें फिर जाना'। -फेरना-दे० 'आँख फेरना' । (मन्)-वि० दृढ़तापूर्वक अपने काममें लगा रहनेवाला । -बचाना-दे० 'आँख बचाना' । -बिछाना-दे० 'आँख -चेता(तस)-वि० कड़े दिल, पक्के इरादेवाला । प्रतिज्ञ बिछाना' । -भर देखना-तृप्तिपर्यंत देखना, जी भरकर -वि० जो प्रतिज्ञासे न डिगे, सत्यसंध, सत्यप्रतिज्ञ।-फल देखना । -मारी जाना-अंधा होना, नेत्रहीन होना । -पु० नारियल ।-मुष्टि-वि० जिसकी मुट्ठी जल्दी न खुल -मिलामा-देखा-देखी करना । -में समाना-दे० सके; कृपण, कंजूस । -व्रत-वि० संकल्पका पक्का, दृढ़- 'आँखोंमें समाना' । (किसीपर)-रखना-निगरानी प्रतिश। -संध-वि० दृढव्रत, दृढप्रतिज्ञ ।
करना, देखरेखमें रखना, देख-भाल करना। -लगाना दृढता-स्त्री०, दृढत्व-पु० [सं०] दृढ होनेका भाव मजबूती। -एकटक देखना; नेह जोड़ना, प्रीति लगाना। दृदाई*-स्त्री० दृढता, मजबूती।
दृष्टिवंत-वि० शानवान्, बुद्धिमान् दीठवाला। दृढ़ाना-अ०क्रि० एढ होना, पुष्ट होना; स्थिर होना। दे*-स्त्री० देवीका लघुरूप।
स० क्रि० ४ढ़ बनाना, मजबूत करना, पक्का करना। देई*-स्त्री० दे० 'देवी' । दृप्त-वि० [सं०] गर्वित; उन्मत्त हर्षयुक्त; तेजोयुक्ता दीप्त । | देउरी-पु० दे० 'देवर' । दृश्य-पु० [सं०] जो कुछ देखा जाय, वह सब कुछ जो देउरानी -स्त्री० दे० 'देवरानी' । दर्शकको दृष्टि-गोचर हो, नज्जारा; तमाशा । वि० देखने देख-भाल, देख-रेख-स्त्री.निगरानी, निरीक्षण, संरक्षण । योग्य, दर्शनीय; मनोरम, शोभन; जानने योग्य, ज्ञातव्य; देखनहारा-पु० देखनेवाला, दर्शक । जो दर्शकोंको अभिनय द्वारा दिखाया जाय (काव्य)। देखना-स० क्रि० नेत्रों द्वारा किसीका ज्ञान प्राप्त करना; दृश्यमान-वि० [सं०] जो देखा जा रहा हो।
तलाश करना, खोजना; परीक्षा करना, परखना; निगदृश्याभास-पु० [सं०] (स्पेक्ट्रम) देखी हुई किसी वस्तु । रानी करना या रखना; सम्हालना; प्रबंध करना; सोचनाकिंवा दृश्यका वह चित्र, प्रतिबिंब या आभास जो आँखें समझना निरीक्षण करना; अनुभव करना, भोगना पढ़ना,
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