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नावक-नि:शील
४०४ नावक-* पु० मल्लाह, केवटः [फा०] एक प्रकारका छोटा नास्तिक-पु० [सं०] वह जिसे ईश्वर, परलोक आदिमें तीर; मधुमक्खीका डंक।
| विश्वास न हो, वेद-निंदक, आस्तिकका उलटा । नावधिकरण-पु० [सं०] (एडमिरलटी) राज्यके जहाजी नास्तिकता-स्त्री०, नास्तिकत्व-पु०[सं०] नास्तिक होनेबेड़े, नौसेना आदिका संचालन करनेवाला अधिकारिवर्ग का भाव, ईश्वर, परलोक आदिमें अविश्वासबुद्धि । या उनका विभाग अथवा प्रधान कार्यालय ।
नास्तिक्य-पु० [सं०] दे० 'नास्तिकता'। नावना*-स० क्रि० झुकाना, नवाना; डालना; घुसाना। नास्तिमंत-वि० (हैव-नॉट) जिसके पास रुपया-पैसा कुछ नावर, नावरि*-स्त्री० नाव, नौका; नावकी क्रीड़ा-'जनु भी न हो, अकिंचन, गरीब, निःस्व । नावरि खेलहिं सर माहीं-रामा।
नास्य-वि० [सं०] नाकका; नासिकासे संबद्धः नासिकासे नाविक-पु० [सं०] कर्णधार, माझी, मल्लाह, पोतारोही। उत्पन्न । पु० (बैल आदिकी) नाथ, नकेल । नाव्य-वि० [सं०] (नेविगेबिल) नावसे पार करने योग्य नाह-पु० पहियेकी नाभि * नाथ, अधीश्वरः पतिः [सं०] प्रशंसनीय । पु० नावसे पार करने योग्य जल; नयापन, | बंधन, फंदा, पाश । नवीनता । -जलमार्ग-पु० (नेविगेबिल वाटरवेज़) वे | नाहक-अ० [फा०] दे० 'ना'के साथ । नदियाँ, नहरें आदि जिनमें नावों या जहाजों द्वारा यात्रा | नाहर-पु० शेर, सिंह। की जा सके।
नाहरू-पु० नहरुवा, नारू रोग; * नाहर, सिंह-'मारसि नाश-पु० [सं०] अस्तित्व न रहना; प्रध्वंस, लय, संहार, गाय नाहरू लागी'-रामा० । बरबादी; त्याग; अदर्शन, लोप। -कारी(रिन)-वि० नाहिन*-अ० नहीं। नाश करनेवाला।
नाहिनै*-[वाक्य नहीं है। नाशक-वि०सं०] नष्ट करनेवाला, मिटा देनेवाला नाही-अ० दे० 'नहीं'।
मारनेवाला, संहार करनेवाला; दूर करनेवाला । नित*-अ० नित्य, हमेशा । नाशन-पु० [सं०] नष्ट करना; हटाना; मृत्यु । वि० नष्ट | निंद-वि० दे० 'निद्य' । करने या करानेवाला।
निंदक-पु० [सं०] निंदा या बदगोई करनेवाला । नाशना*-स० क्रि० दे० 'नासना' ।
निंदना-स० क्रि० निंदा करना, शिकायत करना। नाशपाती-स्त्री० एक प्रसिद्ध फल; इसका पेड़। निंदनीय-वि० [सं०] निंदा करने योग्य, गर्हणीय । नाशवान (वत्)-वि० [सं०] जो नष्ट हो जाय, भंगुर, निदरना*-सक्रि० निंदा करना; निरादर करना । नश्वर, अशाश्वत ।
निदरिया-स्त्री० निद्रा, नींद । नाशी(शिन्)-वि० [सं०] नाशशील, नश्वर नाशक । | निंदा-स्त्री० [सं०] किसीके दोषका वर्णन; झूठमूठ किसीमें नाश्ता-पु० [फा०] जलपान, कलेवा ।
दोष निकालना; अपवाद,शिकायत, बदनामी। प्रस्तावनास-* पु० दे० 'नाश' । स्त्री० नाकसे सुरकी या सूधी । -पु. ( बोट ऑफ सें शर) शासन-संबंधी किसी नीति जानेवाली औषध; सँघनी । -दान-पु० सुँघनी रखनेका या कार्यके प्रति असंतोष प्रकट करने, उसकी निंदा करने पात्र ।
के उद्देश्यसे राज्यके प्रधान मंत्री या किमी संस्थाके सभा. नासना*-स० कि० नष्ट करना, बरबाद करना, मिटा देना पति, अध्यक्ष आदिके विरुद्ध लाया जानेवाला प्रस्ताव । मार डालना। अ० कि० नष्ट होना, दूर होना।
-स्तुति-स्त्री० निंदा और प्रशंसा; व्याजस्तुति, निंदाके नासा-स्त्री० [सं०] नाक; घ्राणेंद्रिय; दरवाजेके ऊपर लगायी व्याजसे की गयी प्रशंसा ।। जानेवाली आड़ी लकड़ी, भरेटा। -छिद्र-पु० नाकका निदाई-स्त्री० निरानेकी काम निरानेकी उजरत । छेद । -परिस्राव-पु० सीसे नाकका बहना । -पाक | निदाना-स० क्रि० दे० 'निराना' । -पु. नाक पक जानेका रोग। -पुट-पु० नथना । निंदासा-वि० जिसे नींद लग रही हो; अलसाया हुआ । -बेध-पु० नाकका वह छेद जिसमें कील या नथ पहनी | निंदित-वि० [सं०] जिसकी निंदा की गयी हो या की जाती है। -रंध्र-पु० नाकका छेद । -वंश-पु. नाक- | जाती हो, गहित, दूषित । की हड्डी। -विवर-पु० नाकका छेद । -शोष-पु० निंदिया-स्त्री० नांद, निद्रा। नाकका कफ सूखनेका एक रोग। -स्राव-पु० सदासे | निंद्य-वि० [सं०] निंदा करने योग्य, निंदनीय । नाकका बहना।
निब-पु० [सं०] नीमका पेड़ । नासाग्र-पु० [सं०] नाकका अग्र भाग, नाककी नोक । निबकौड़ी, निबकौरी-स्त्री० नीमका फल । नासिक-स्त्री० दे० 'नासिका'।
निंबू, निंबूक-पु० [सं.] कागजी नीबू । नासिका-स्त्री० [सं०] नाक; घ्राणेंद्रिय नाककी शकलकी! निःशंक-वि० [सं०] जिसे किसी प्रकारका खटका न हो, कोई चीज । -मल-पु० नाकसे निकलनेवाला श्लेष्मा। निडर । अ० बिना किसी खटके या डरके। नासी*-वि० दे० 'नाशी'।
निःशत्रु-वि० [सं०] शत्रुरहित ।। नासीर-वि० [सं०] आगे जानेवाला, अग्रेसर । पु० सेना- निःशब्द-वि० [सं०] शब्दरहित, जहाँ किसी प्रकारका का अग्र भाग, हरावल ।
शब्द न होता हो; जो किसी प्रकारका शब्द न करे । नासूर-पु० [अ०] पुराना घाव जिसमें लंबा छेद हो गया। निशरण-वि० [सं०] अरक्षित । हो और जिसमेंसे प्रायः मवाद बहा करता हो, नाडीव्रण। निःशील-वि० [सं०] दे० 'निश्शील'।
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