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पखवारा-पचास पखवारा-पु० महीनेका आधा भाग, पंद्रह दिनोंका समय। पगारना -स० क्रि० फैलाना । पखा*-पु० दाढ़ी।
पगिआना, पगियाना*-सक्रि० दे० 'पगाना'। पखाउजा-पु० दे० 'पखावज' ।
पगिया*-स्त्री० दे० 'पगड़ी' । पखान-पु० दे० 'पाषाण'।
पगुराना -अ० क्रि० जुगाली करना, पागुर करना । पखाना-* पु० कथा, उपाख्यान; + दे० 'पाखाना'। पघा-पु० ढोर बाँधनेकी रस्सी, गिराएँ । पखारना-स० क्रि० पानीसे धोना; धोकर साफ करना । पच-वि० पाँचका एक रूपांतर जिसका प्रयोग प्रायः समासपखाल-पु० मशक; धौंकनी; मुँह धोनेका पात्र ।
में होता है। -कल्यान-पु० दे० 'पंचकल्याण' ।-खना पखाली-पु० भिश्ती।
-वि० पाँच खंडोंवाला। -गुना-वि० जिसमें कोई राशि पखावज-पु० मृदंग।
या माप पाँच बार शामिल हो, पाँच गुना । -ग्रह-पु० पखावजी-पु० पखावज वजानेवाला ।
मंगल, बुध, गुरु, शुक्र तथा शनि-ये पाँच ग्रह।-तूरापखिया-पु० झगड़ा खड़ा करनेवाला । वि० व्यर्थका । पु० एक बाजा। -तोरिया-पु. एक तरहका कपड़ा। पखी*-पु० दे० 'पक्षी' ।
-मेल-वि० जिसमें कई या पाँच प्रकारकी वस्तुएँ मिली पखीरी-पु० दे० 'पक्षी' ।
हों। -रंग-पु० चौक पूरनेके कामकी अबीर-नुक्का आदि पखुड़ी, पखुरी -स्त्री० दे० 'पँखड़ी'।
पाँच वस्तुओंका समूह । वि० दे० 'पचरंगा'। -रंगापखुरा, पखुवा-पु० मनुष्यके शरीरमें कंधे और बाँहके वि० पाँच रंगोंवाला; पाँच रंगोंमें रँगा हुआ या पाँच जोड़के पासका भाग, भुजमूलके पासका भाग।
रंगोंके सूतोंसे बुना हुआ (कपड़ा); जो कई रंगोंका हो । पखेरू-पु० पक्षी, चिड़िया।
-लड़ी-स्त्री० पाच लड़ियोंवाला, माला जैसा एक पखोआ-पु० पंख।
गहना । -लोना-वि० जिसमें पाँच प्रकारके नमक मिले पखौटा-पु० पर, पंख; मछलीका पर ।
हों । पु० ऐसा मिश्रण; पंचलवण । पखौरा, पखौड़ा-पु० दे० 'पखुरा' ।
पचकना-अ० क्रि० दे० 'पिचकना'। पग-पु० पैर, डग ।-टुंडी-स्त्री० मनुष्यों के चलनेसे जंगल, पचकाना-स० क्रि० दे० 'पिचकाना'। खेत या मैदान में बना हुआ पतला रास्ता ।-तरी-स्त्री० पचखा-पु० दे० 'पंचक' । जूता ।-दासी-स्त्री० जूता खड़ाऊँ।
पचड़ा-पु० बखेड़ा, सँझट; एक तरहका गीत जिसे प्रायः पगड़ी-स्त्री० सिरपर लपेटी जानेवाली कपड़ेकी लंबी पट्टी, ओझा देवी आदिकी स्तुतिमें गाता है; लावनीकी तरहपाग, उष्णीप । मु. (किसीसे)-अटकना-किसीसे | का गीत जिसमें पाँच-पाँच चरणोंके खंड होते हैं। झगड़ा लगना।-उछलना-बेइज्जती होना; दुर्दशा होना। पचन-पु० [सं०] पकने या पकानेका कार्य; अग्नि । -उछालना-बेइज्जती करना; दुर्गत करना।-उतरना- पचना-स्त्री० [सं०] पकनेकी क्रिया। अ० कि० पचाया प्रतिष्ठा नष्ट होना, अपमान होना। -उतारना-अप- जाना हजम होना; खपना, अन्य वस्तुमें मिल जाना। मानित करना, बेइज्जत करना; लूटना। (किसीको), अधिक परिश्रमसे क्षीण होना। मु०पच मरना-जी-बंधना-मालिकाना मिलना; उत्तराधिकार प्राप्त होना; तोड़ मेहनत करना। उच्च अधिकार मिलना । (किसीको)-बाँधना-मालिक | पचपचा-वि० अधूरा पका हुआ (भोजन); जिसका पानी या सरदार बनाना; उत्तराधिकारी बनाना; उच्च अधिकार देना। -बदलना-मित्रता करना। -रखना-मान-पचपचाना-अ० क्रि० किसी वस्तुका अधिक गीला होना । मर्यादाकी रक्षा करना। (किसीके आगे या पैरोंपर) पचपन-वि० पचासऔर पाँच। पु० पचपनकी संख्या, ५५।
-रखना-सहायताकी गुहार करना; दयाकी भीख माँगना। पचवना*-स० क्रि० दे० 'पचाना'। पगना-अ.क्रि. किसी वस्तुका शीरे आदिमें इस प्रकार पचहत्तर-वि० सत्तर और पाँच । पु० पचहत्तरकी डूबा रहना कि वह उसमें अच्छी तरह भिन जाय; किसी संख्या, ७५ । तरल पदार्थके साथ इस प्रकार मिलना कि वह जज्ब हो | पचहरा-वि० पाँच स्तरों-परतोंवाला; पाँच गुना। जाय; रस आदिमें सन जाना, शराबोर होना; ओतप्रोत | पचाना-स० क्रि० जठराग्निकी क्रिया द्वारा खाये हुए होना; निमग्न होना; लिप्त होना।
पदार्थको रस आदिका रूप ग्रहण करनेकी स्थितिको पगनियाँ*-स्त्री० जूती।
पहुँचाना, हजम करना; पक्क बनाना; नष्ट कर देना; पगरा-पु० डग; सफर शुरू करनेका समय, प्रभात । बना न रहने देना; पराये मालको अनुचित रीतिसे आत्मपगरी-स्त्री० दे० 'पगड़ी' ।
सात् कर लेना, हड़प लेना; किसी बात या मामलेको इस पगला-वि० पागल; नासमझ ।
प्रकार दबा देना कि उसका भेद खुल न सके; बहुत अधिक पगहा-पु० दे० 'पधा'।
काम लेकर या कष्ट पहुँचाकर शरीर आदिको क्षीण बनाना; पगा*-पु० पगड़ी; डुपट्टा पघा; दे० 'पगरा' ।
किसी वस्तुको पूर्णतया लीन कर लेना; किसी वस्तुको पगाना-सक्रि० पागनेका काम दूसरेसे कराना; शराबोर अपने में एकदम छिपा लेना। कराना; निमग्न कराना; अनुरक्त करना ।
पचारना -सक्रि० ललकारना । पगार-पु० गारा, गिलावा हलकर पार करने योग्य नदी पचाव-पु० पचनेका कार्य या भाव । आदिः । वेतन; * दे० 'प्राकार'।
| पचास-वि० दसका पाँच गुना । पु० पचासकी संख्या, ५०॥
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