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पतंग-पति
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पतंग-पु० [सं०] सूर्य, पक्षी, चिड़िया; शलभ, टिड्डी; पताई झोंकना या टालना। खेलनेका गेंद । स्त्री० [हिं०] बाँसकी कमानियोंके ढाँचेपर पताका-स्त्री० [सं०] ध्वजके ऊपरी सिरेपर पहनाया कागज मढ़कर बनाया जानेवाला खिलौना जिसे तागेसे जानेवाला वह तिकोना या चौकोना कपड़ा जिसपर प्रायः बाँधकर हवा चलते समय आसमानमें उड़ाते हैं, गुनी, । किसी राजा, राष्ट्र या संघ आदिका निजी चिह्न बना रहता कनकौवा। -बाज़-पु० पतंग उड़ाने, लड़ानेवाला । है; झंडा, पताका पहनानेका डंडा, ध्वज; चिह, निशान; -बाज़ी-स्त्री० पतंगबाज होनेका भाव; पतंग उड़ानेका | प्रतीका सौभाग्य; नाटकमें एक विशिष्ट स्थल,दे० 'पताकाहुनर ।
स्थानक'; तीर चलाने में उँगलियोंकी एक विशेष प्रकारकी पतंगम-पु० [सं०] पक्षी; शलभ, पतंगा।
मुद्रा प्रासंगिक कथावस्तुका एक भेद (ना०)। -दंडपतंगा-पु० उड़नेवाला कीड़ा, फतिंगा; चिरागका गुल; पु. पताका लगानेका डंडा । -शीर्षक-पु० (बैनर, चिनगारी ।
हेडलाइन) समाचार-पत्रके मुखपृष्ठपर एक सिरेसे दूसरे पतंचिका-स्त्री० [सं०] धनुषकी डोरी ।
सिरेतक, पताका रूपमें, दिया गया सर्वप्रधान शीर्षक, पत*-पु० पति; मालिका अधीश्वर, प्रभु । स्त्री० लाज; पृष्ठ(व्यापी)शीर्षक । -स्थानक-पु० नाटकमें वह स्थल . प्रतिष्ठा; इज्जत । -पानी-पु० प्रतिष्ठा, इज्जत; लाज। जहाँ किसी सोचे हुए विषय या प्रस्तुत प्रसंगसे मेल मु०-उतारना-किसीकी प्रतिष्ठा भंग करना; अपमान खानेवाला दूसरा विषय या प्रसंग उपस्थित हो जाय । • करना ।-रखना-प्रतिष्ठाकी रक्षा करना, इज्जत बचाना। मु० (किसीकी)-उड़ना या फहरना-एकाधिकार पतझड़-स्त्री० शिशिर ऋतु जिसमें पेड़ोंकी पत्तियाँ झड़ होना; सबसे बढ़कर होना; मूर्द्धन्य होना बेजोड़ होना। जाती हैं।
(किसीकी) गुण, विद्या आदिकी पताका उड़ना या पतत्प्रकर्ष-पु० [सं०] एक काव्यदोष जहाँ किसी अलं- फहरना-ख्याति होना। -उड़ाना या फहराना
कार या किसी रचनाकी उत्कृष्टताका निर्वाह न हो सके । | आधिपत्य स्थापित करना, विजय प्राप्त करना ।-गिरनापतन-पु० [सं०] ऊपरसे नीचे आना; गिरना; च्युत होना; पराजय होना, हार होना । अधोगति; संहार; नाश; मरण; नीचे जानेकी क्रिया या पताकिक-पु० [सं०] पताका धारण करनेवाला, झंडाभाव; बैठना; डूबना ( जैसे सूर्यका); जातिसे च्युत होना; बरदार । गर्भपात; पतित होना; -शील-वि० पतन जिसका पताकित-वि० [सं०] (फ्लैग्ड) पताकाओंसे सज्जित; जिसस्वभाव हो; जो सदा पतनोन्मुख रहे।
पर पताका लगायी गयी हो। पतनीय-वि० [सं०] पतनके योग्य पतित होने के योग्य । पताकिनी-स्त्री० [सं०] सेना । पतनोन्मुख-वि० [सं०] पतनकी ओर जानेवाला, पतनकी पताकी (किन)-वि० [सं०] पताकावाला; पताका ले
ओर प्रवृत्त, जो पतनकी राहपर हो; जो पतनके निकट हो। चलनेवाला । पु० झंडा ले चलनेवाला, झंडाबरदार; झंडा। पतर*-वि० पतला । पु० पत्ता; पनवारा।
पतार*-पु० दे० 'पाताल'; जंगल । पतरा-वि० पतला; झीना निर्बल ।
पताल-पु० 'पाताल'का एक विकृत रूप। -दंती-पु० पतराई-स्त्री० पतलापन ।
वह हाथी जिसका दाँत सीधे नीवेकी ओर बढ़ा हो । पतरी -स्त्री० पत्तल ।
पतावर-पु० सूखे पत्ते । पतरौल-पु० गश्त लगानेवाला व्यक्ति (अं० पैट्रोल)। पतिंग-पु० फतिंगा।। पतला-वि०जिसका फैलाव या घेरा कम हो जो मोटा न पतिंवरा-स्त्री० [मं०] स्वेच्छासे वर चुननेवाली कन्या हो; जिसका शरीर मोटा न हो, कृश; सँकरा; बारीक; जो वह कन्या जो अपना वर चुननेके लिए स्वयंवर-भूमिमें गाढ़ा न हो; जिसमें जलांशकी अधिकता हो; शक्तिहीन; उतरी हो। अबल । -पन-पु० पतला होनेका भाव । मु०-पढ़ना पति-स्त्री० दे० 'पत'; साख । पु० [सं०] किसी वस्तुका -दीन-हीन हो जाना; आपद्ग्रस्त होना।
स्वामी, अधीश, वह जिसका किसी वस्तुपर अधिकार हो; पतलून-पु० [अं० 'पैंटलून'] अंग्रेजी ढंगका पायजामा ।। किसी ब्याही हुई औरतका भर्ता, शौहर, कांत; शासक । पतवार-स्त्री० नाव में पीछेकी ओर लगी हुई वह तिकोनी। -कामा-वि०, स्त्री० पति चाहनेवाली (स्त्री); पतिसे
लकड़ी जिसके द्वारा नावको इधर-उधर घुमाते हैं, कर्ण। मिलनेकी इच्छा रखनेवाली (स्त्री)। -घातिनी,-नीपतवारी-स्त्री० ईखका खेत; पतवार ।
स्त्री० पतिको मार डालनेवाली स्त्री; वैधव्य योगवाली पता-पु० किसी वस्तु, स्थान या व्यक्तिका ऐसा परिचय स्त्री; एक हस्तरेखा जो यह सूचित करती है कि अमुक स्त्री
जो उसे पाने, ढूँढ़ने या उसके पासतक समाचार पहुँचाने पतिघातिनी होगी। -देवता,-देवा-स्त्री. वह स्त्री जो में सहायक हो; चिट्ठी आदिकी पीठपर लिखा जानेवाला अपने पतिको देवताकी तरह माने, पतिव्रता स्त्री-धर्मपानेवालेका नाम आदि जिसके सहारे वह उसके पास पु० पतिके प्रति स्त्रीका कर्तव्य। -प्राणा-स्त्री० पतिव्रता पहुँच जाती है। जानकारो; स्थितिसूचक चिह्न या लक्षण; स्त्री। -लोक-पु० वह उत्तम परलोक जिसमें पतिकी खोज, खबर; ठिकाना; भेद, तत्त्व, रहस्य । (पते)की,- आत्माका निवास हो। -धर्त*-पु० दे० 'पतिव्रत' । की बात-भेदभरी बात, तत्त्वकी बात ।
-वर्ता*-वि०, स्त्री० दे० 'पतिव्रता' ।-व्रत-पु० पतिके पताई-स्त्री० सूखी हुई पत्तियाँ या उनका पुंज । मु०- | प्रति एकांत प्रेम या भक्ति । -व्रता-वि०, स्त्री० पतिमें झौंकना,-लगाना-आगको तेज करनेके लिए उसमें अनन्य श्रद्धा, अनुराग रखनेवाली (स्त्री), साध्वी (नारी)।
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