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पर्णिका-पलक पर्णिका-स्त्री० [सं०] (कूपन) वस्तुओंके सीमित वितरणकी आदि) करनेका समय या दिन; सूर्यग्रहण; चंद्रग्रहण, व्यवस्था में वह पुरजी, कागजका टुकड़ा या टिकट जिसपर अवसर, मौका; संधिस्थान, गाँठ, जोड़; पोर; शरीरके लिखा रहता है कि अमुक व्यक्तिको इतना कपड़ा, पेट्रोल अवयवोंका कोई जोड़; पुस्तकका कोई भाग (जैसे महाया अन्य वस्तु दी जाय; पैसा जमा करनेपर मिलनेवाला भारतका); निश्चित काल; चातुर्मास्यके अंतर्गत वैश्व, वह प्रमाणक जिसे अर्पित करनेपर कोई वस्तु (जैसे दुग्ध- वरुण, प्रधास आदि चार भाग । शालाका दूध) या कोई सेवा प्राप्त की जा सके मनीआर्डर पर्वक-पु० [सं०] घुटनेका जोड़। फार्म (धनप्रपादेश-प्रपत्र) का वह निचला भाग जिसमें पर्वणी-स्त्री० [सं०] पूर्णिमा प्रतिपदा; उत्सव, त्योहार । रुपया भेजनेवाला पानेवालेके नाम कोई संदेश आदि पर्वत-पु० [सं०] पहाड़, चट्टान; किसी वस्तुका पहाड़ लिख सकता है।
जैसा ऊँचा ढेर, सातकी संख्या दशनामी संन्यासियोंका पर्दनी*-स्त्री० धोती।
एक भेद । -जा-स्त्री० नदी; पार्वती । -नंदिनी स्त्री० पर्दा-पु० दे० 'परदा'।
पार्वती । -पति-पु० हिमालय । -माला-स्त्री० पर्पटी-स्त्री० [सं०] गोपीचंदन; पापड़, एक रसीषधि । पहाड़ोंकी श्रेणी। -राज-पु० बड़ा पहाड़, हिमालय । पर्ब-पु० दे० 'पर्व'।
-स्थ-वि० पर्वतपर स्थित । पर्बत-पु० दे० 'पर्वत' ।
पर्वतात्मज-पु० [सं०] मैनाक । पर्यक-पु० [सं०] पलंग; एक आसन, वीरासन (योग); पीठ पर्वतात्मजा-स्त्री० [सं०] पार्वती।
और घुटनोंको कपड़ेसे बाँधकर बैठने की एक मुद्रा; पालकी। पर्वतारि-पु० [सं०] इंद्र। पर्यत-अ० [सं०] तक । वि० सीमित । पु० अंतिम सीमा, पर्वतीय-वि० [सं०] पर्वत-संबंधी; पर्वतका पहाइपर किनारा; अंत, समाप्तिस्थान । -भू-भूमि-स्त्री० नदी, रहने या पैदा होनेवाला, पहाड़ी । पु० पहाड़ी ब्राह्मणोंकी नगर आदिके पासका भूभाग।
एक उपाधि । पर्यटक-पु० [सं०] भ्रमण करनेवाला ।
पर्वतेश्वर-पु० [सं०] हिमालय । पर्यटन-पु० [सं०] इधर-उधर घूमना, भ्रमण ।
पर्वतोद्धव-पु० [सं०] पारा; शिंगरफ। वि० पर्वतपर पर्यवलोकन-पु० [सं०] (सवें) किसी कामको या किसी उत्पन्न ।
क्षेत्रादिको आदिसे अंततक-एक छोरसे दूसरे छोरतक- पर्वरिश-स्त्री० दे० 'परवरिश' । स्थूल रूपसे देखना, जाँचना-समझना।।
पशु-पु० [सं०] आयुध; अस्त्र परशु, फरसा। -पाणिपर्यवसान-पु० [सं०] अंत, समाप्ति; अवधारण, निश्चय । पु० गणेश; परशुराम । पर्यवेक्षक-पु० [सं०] (सूपरवाइज़र) किसी काम आदिकी पशुका-स्त्री० [सं०] बगल की हड्डी, पसली । निगरानी करनेवाला, चारों तरफ नजर रखनेवाला, पर्पद-स्त्री० [सं०] सभा; धमोपदेशक पंडितोंका समाज । देखभाल करनेवाला।
पलं का*-स्त्री० दूरवतों स्थान । पु० पलंग। पर्यवेक्षण-पु० [सं०] (सूपरविजन) चारों तरफ नजर | पलंग-पु० बड़ी और बढ़िया चारपाई, अधिक लंबी-चौड़ी रखने, निगरानी करने आदिका काम, देखभाल ।
और सुन्दर चारपाई। -तोड़-वि० जो बिना कुछ काम पर्यसन-पु० [सं०] फेंकना; दूर करना; बाहर करना। किये यों ही पड़ा रहे, निकम्मा, आलसी। -पोश-पु० पर्यस्तापह्नति-स्त्री० [सं०] अपह ति अर्थालंकारका एक पलंगकी चादर । मु०-को लात मारकर खड़ा होनाभेद जहाँ किसी (उपमान) वस्तुका गुण छिपाकर किसी भली-चंगी होकर सौरीसे बाहर आना; किसी भारी बीमारीदूसरी वरतु (उपमेय) में उसकी स्थापना की जाय। से छुटकारा पाकर स्वस्थ होना। -तोड़ना-कोई काम पर्याप्त-वि० [सं०] जितना चाहिये उतना, पूरा, काफी । न करते हुए सोये या पड़े रहना, बेकार रहकर दिन पर्याय-पु० [सं०] अनुक्रम, सिलसिला; व्यतीत होना बिताना । -लगाना-पलंगपर ठीक तरहसे बिछावन (समय); समानार्थक शब्द, प्रकार, ढंग; एक अर्थालंकार | बिछाना। जहाँ एक वस्तुका क्रमसे अनेक आश्रय लेना दिखाया जाय पलँगड़ी-स्त्री० छोटा पलंग, चारपाई। या अनेक वस्तुओंका एकके ही आश्रित होना दिखाया। पल-पु० [सं०] मांस समयका एक लघु विभाग जो ६० जाय।-वाची(चिन)-वि० समानार्थक ।-सेवा-स्त्री० विपल अर्थात् २४ सेकेंडके बराबर होता है; ४ कर्षकी एक बारी-बारीसे सेवा करना ।
प्राचीन तौल; पयाल; * पलक । -गंड-पु० दीवारपर पर्यायोक्त-पु०, पर्यायोक्ति-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार | पलस्तर करनेवाला मिस्त्री, राज । -प्रिय-पु० राक्षस जहाँ कोई बात घुमा-फिराकर कही जाय या किसी रम- कौआ । वि० जिसे मांस प्यारा हो, मांसप्रिय । णीय व्याजसे कार्यसाधन किये जानेका वर्णन हो। पलक-स्त्री० आँखको ढंकनेवाला चमड़ेका वह परदा जिसके पर्यालोचन-पु०, पर्यालोचना-स्त्री० [सं०] सम्यक् विवे गिरने और उठनेसे आँख क्रमसे बंद होती और खुलती चन, समीक्षण।
है; * क्षण, निमिष । * अ० क्षणभर । मु०-झपकते या पर्यपा सक-पु० [सं०] उपासना करनेवाला, सेवक । गिरते-देखते-देखते, क्षणभर में । -पसीजना-आँखोंमें पर्युपासन-पु० [सं०] उपासना, सेवा, पूजा ।
आँसू भाना; दयार्द्र होना । -बिछाना-किसीका बड़ी पर्व(न्)-पु० [सं०] उत्सव, त्योहार; कोई उत्सव या श्रद्धासे स्वागत करना । -भंजना-आँखका इशारा होना। त्योहार मनाने या कोई विशिष्ट धार्मिक कृत्य (स्नान | -भाँजना-आँखसे इशारा करना। -मारना--आँखसे
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