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पथिक-पदार्थ पथिक-पु० [सं०] रास्ता चलनेवाला, राही, बटोही। वर्णकी चमत्कारपूर्ण आवृत्ति; दोसे अधिक पदोंकी एक पथिकाश्रय-पु० [सं०] पथिकोंके ठहरनेकी जगह, धर्म- दूसरेके अनुरूप स्थिति, अनुप्रास ।-मोचन-पु०(रिलीफ) शाला, सराय ।
किसी पदं या कर्तव्यसे मुक्त हो जाना, छुट्टी पा जाना, पथेय*-पु० दे० 'पाथेय'।
पृथक हो जाना या कर दिया जाना। -योजना-स्त्री. पथी(थिन)-पु० [सं०] पथिक ।
पदों या शब्दों को जोड़ना, पदों या शब्दोंको चुन-चुनकर पथीय-वि० [सं०] पथ-संबंधी पथका ।
रखना। -रिपु-पु० काँटा । -विग्रह,-विच्छेद-पु० पथौरा-पु० गोबर पाथनेकी जगह ।
दे० 'पदच्छेद' । -व्याख्या-स्त्री० (पार्सिंग) वाक्यमें आये पथ्य-वि० [सं०] लाभकर, हितकर (आहार, औषध आदि); हुए पदका शब्दभेद, लिंग, वचन आदि बतलाना । उचित; अनुकूल । पु० रोगीको दिया जानेवाला, रोगकी -शिक्षार्थी-वि०, पु० (ऐटिस) नौकरी पानेकी आशास्थितिके अनुकूल और हितकर आहार; रोगीके लिए हित- से बिना वेतन लिये काम सीखनेवाला, उम्मेदवार किसी कर वस्तु; कल्याण; हड़का पेड़; सेंधा नमक । मु०-से अनुभवप्राप्त व्यवसायी, कलाकार आदिकी देखरेख में व्यवरहना-कुपथ्य न,करना, वर्जित वस्तुओंसे परहेज करना, साय, कला आदिकी शिक्षा प्राप्त करनेवाला, शिक्ष्यमाण । परहेजसे रहना।
-सूचक चिह्न-पु० (इनसिग्निया) राजा या किसी बड़े पथ्यापथ्य-वि० [सं०] रोगकी अवस्थामें हितकर और अधिकारी आदिके पदकी पहिचान करानेवाला विशेष अहितकर ।
चिह्न (मुकुट, दंड, पट्टा इ०)। पद-पु० ईश-प्रार्थना-संबंधी गीत; भक्तिपरक गीत, भजन पदक-पु०पूजनके लिए बनायी हुई किसी देवताके चरणकी [सं०] पैर; डग, कदम, चरणचिह्न चिह्न, निशान; स्थान; प्रतिमूत्ति; बालकोंको पहनाया जानेवाला एक प्रकारका आधार; योग्यता या कार्यके अनुसार नियत स्थान, ओहदा, गहना जिसपर किसी देवताका चरण बना रहता है। कोई दर्जा; विषय पात्र; किसी छंद या पद्यका चरण या चौथा बहुत अच्छा या कमालका काम करनेपर किसीको उपहारभाग; विभक्ति, प्रत्ययसे युक्त शब्द, वाक्य आदिका कोई रूपमें दिया जानेवाला सोने-चाँदी आदिका सिक्के जैसा अंश । -कंज,-कमल-पु० कमलवत चरण |-कारणात् गोल या अन्य आकारका टुकड़ा जिसपर प्रायः देनेवालेका -अ० (एक्स ऑफिशियो) दे० 'पदेन'। -क्रम-पु० 'नाम अंकित रहता है। [सं०] स्थान; ओहदा; गलेका चलना, डग भरना; वेदमंत्रोंके पदोंको एक दूसरेसे अलग एक गहना। करनेका क्रम । -ग,-चर-पु० पैदल सिपाही ।-चारी- पदम-पु० एक पेड़, * दे० 'पभ' ।-काठ-पु० पद्मकाष्ठ । (रिन)-वि० पैदल चलनेवाला। -चिह्न-पु० पैरका पदमाकर*-पु० दे० 'पद्माकर'।। निशान । -च्छेद-पु० किसी वाक्य या वाक्यांशके पदवाना-स० क्रि० पदानेमें प्रवृत्त करना । पदोंको एक दूसरेसे अलग करना।-च्युत-वि० जो अपने | पदवि, पदवी-स्त्री० [सं०] मार्ग, रास्ता; चलन, प्रणाली, पद या दजेंसे हटा दिया गया हो, जिसका पद छीन लिया। पद्धति; स्थान; राज, संस्था आदिकी ओरसे किसीको दी गया हो। -ध्यति-स्त्री० पदच्युत होनेकी क्रिया या | जानेवाली आदर या योग्यतासूचक उपाधि, खिताब । दशा। -ज-वि० पैरसे उत्पन्न । पु० पैरकी उँगलियाँः पदांत-पु० [सं०] पदका अंतिम भाग; किसी श्लोक या शूद्र । -तल-पु० तलवा। -त्याग-पु० अपना पद या पद्यके चरणका अंतिम भाग। ओहदा छोड़ देना, अपने पद, ओहदेसे अलग हो जाना। | पदांतर-पु० [सं०] दूसरा पद या डग; एक डगकी दूरी । -वाण-पु० जूता, खड़ाऊँ आदि । -त्रान*-पु० दे० पदांभोज-पु० [सं०] दे० 'पदकंज'। 'पदत्राण' । -दलित-वि० पैरों तले कुचला हुआ। पदाक्रांत-वि० [सं०] पाँवोंसे कुचला हुआ, पामाल । -दारिका-स्त्री० बिवाई । -धारण-सुरक्षा-स्त्री० | पदाघात-पु० [सं०] पैरका प्रहार । (सीक्यूरिटी ऑफ टैन्यूर) किसी पदपर, नोकरी आदिपर पदाति, पदातिक-पु० [सं०] पैदल चलनेवाला; प्यादा, काम करते रहने या सुरक्षित रूपसे बने रहनेकी पक्की पैदल सिपाही। आशा । -न्यास-पु० पैर रखना, डग भरना।-पंकज, पदातिका*-स्त्री० पैदल सेना । -पद्म-पु० दे० 'पदकमल' ।-पद्धति-स्त्री० पदचिह्नोंकी पदाती(तिन्)-पु० [सं०] पैदल सिपाही । कतार । -पाठ-पु० वेदमंत्रोंका वह क्रम जिसमें उनमें पदाधिकारी(रिन)-पु० [सं०] वह जो किसी पदपर प्रयुक्त सभी पद विभक्त करके अपने मूल रूपमें अलग- नियुक्त हो, ओहदेदार । अलग रखे गये हों; वह ग्रंथ जिसमें वेदमंत्रोंका ऐसा संपा- पदाना-स० क्रि० पादने में प्रवृत्त करना हैरान करना, दन किया गया हो (संहिता-पाठका उलटा)। -पूरण- परेशान करना; (खेलमें) दौड़ाना। पु० किसी छंदकी पूर्ति करना। -बाधा-स्त्री०,-रोध पदाब्ज-पु० [सं०] दे० 'पदकंज' । (पदरोक)-पु०(लेग विफोर विकेट) (किसी बल्लेबाज द्वारा) पदारथ-पु० दे० 'पदार्थ' । टाँग अड़ाकर अर्थात् अनियमित रूपसे गेंदको यष्टियोंकी पदारविंद-पु० [सं०] दे॰ 'पदकंज' ।
ओर बढ़नेसे रोक देना ।-भ्रंश-पु०पदच्युति ।-मुक्त- पदार्य-पु० [सं०] अतिथिको पैर धोनेके लिए दिया जानेवि० (आउट गोइंग) अपना पद या स्थान छोड़कर अन्यत्र वाला जल । जानेवाला । -मूल-पु० तलवा; शरण, आश्रय (ला०)। पदार्थ-पु० [सं०] पद या शब्दका अर्थ; वह वस्तु जिसका -मैत्री-स्त्री० किसी छंद या पद्यमें एक ही शब्द या किसी शब्दसे बोध हो; उन विषयों में कोई एक जिनके
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