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परिवा-परिसंघ
४५८ कमीके कारण पड़नेवाली बाधा। -व्यवस्थापक-पु० परिशिष्ट-वि० [सं०] जो छूट गया हो, बचा हुआ समाप्त। (ट्रैफिक मैनेजर) रेल-पथ द्वारा यात्रियों तथा माल- पु० किसी पुस्तक या लेखका पूरक अंश ।
असबाबके परिवहनकी व्यवस्था करनेवाला अधिकारी। परिशीलन-पु० [सं०] स्पर्श लगाव; किसी विषयपर पूरी परिवा-स्त्री० पक्षकी पहली तिथि ।
तरह विचार करते हुए उसे पढ़ना, सम्यक् अध्ययन । परिवाद-पु० [सं०] निंदा, शिकायत; (कांप्लेंट) दोषकथन, परिशुद्ध-वि० [सं०] पूर्णतया शुद्ध बिलकुल ठीक (एक्यूबुराई बताना दुखड़ा किसीमें ऐसे दोष दिखाना जिनका रेट); चुकाया हुआ; जो बरी कर दिया गया हो। अस्तित्व न हो, झूठी निंदा कुख्याति, अपवाद; आरो- परिशुद्धता-स्त्री० [सं०] (एक्कुरेसी) विलकुल ठीक, यथार्थ पित दोष, जुर्म।
या सटीक होनेका भाव । परिवादक-पु० [सं०] वादी, मुद्दई; निंदा करनेवाला; परिशुद्धि-स्त्री० [सं०] पूर्ण शुद्धि; रिहाई । वीणा बजानेवाला ।
परिशुष्क-वि० [सं०] अति शुष्क, एकदम सूखा हुआ; परिवादिनी-स्त्री० [सं०] सात तारोंवाली वीणा; निंदा मुरझाया हुआ; पिचका हुआ (कपोल आदि); नीरस । करनेवाली स्त्री।
परिशोध-पु० [सं०] सम्यक शुद्धि, पूरी सफाई; ऋण परिवादी (दिन)-वि० [सं०] निंदा करनेवाला, अपवाद | आदिका भुगतान, चुकता ।
करनेवाला; आरोप करनेवाला; शोर मचानेवाला। परिशोधन-पु० [सं०] पूर्णतया शुद्ध करनेकी क्रिया; भुगपरिवार-पु० [सं०] कुटुंब आदि; आश्रित जन, परिजन तान, चुकता करना; संशोधन ।
अनुचरोंका समूह, दल-बल; *वस्तुओंका समुदाय, समूह ।। परिशोष-पु० [सं०] दिलकुल शुष्क हो जाना। परिवारी-पु० परिवार में रहनेवाला कुटुंवी ।
परिश्रम-पु० [सं०] लांति; क्लेशकर आयास, मेहनत । परिवाह-पु० [सं०] पानीका उमड़कर चारों ओर बहना; परिश्रमी(मिन)-वि० [सं०] परिश्रम करनेवाला, जो बढ़े हुए पानीके बहनेका मार्ग; फालतू पानीका निकास।। परिश्रम करे। परिवृत्त-वि० [सं०] घुमाया हुआ; बदला हुआ; समाप्त परिश्रांत-वि० [सं०] विशेष रूपसे थका हुआ। घेरा हुआ, आवेष्टित । पु० (सरकम्स्क्राइब्ड सर किल) दे० परिश्रत-वि० [सं०] विख्यात, प्रसिद्ध । 'परिगतवृत्त'।
परिपद-स्त्री० [सं०] सगा; वेद-वेदांग, धर्मशास्त्र आदिमें परिवृत्ति-स्त्री० [सं०] धुमाव; घेरना, आवेष्टित करना; पारंगत ब्राह्मणोंकी वह सभा जिसे प्राचीन कालके राजा समाप्ति; विनिमय, अदला-बदला; एक शब्दके स्थान पर । धर्म आदिके मामलोंका निर्णय करनेके लिए यदा-कदा दूसरे शब्दको इस प्रकार रखना कि अर्थमें अंतर न पड़े, बुलाया करते थे; (काउंसिल) सलाह देनेवाले या विवाअर्थकी रक्षा करते हुए किसी शब्दके स्थानपर उसका दादिमें हिस्सा लेनेवाले सदस्योंकी सभा नगर या जिलेकी पर्यायवाची शब्द रखना (जैसे-'चरण-कमल'के स्थानपर स्थानीय प्रबंधसभा चुने हुए या मनोनीत किये हुए 'पाद-पम' रखना); एक अर्थालंकार जहाँ कुछ देकर कुछ सदस्यों की विशेष सभा; समूह, मंडली। लेनेका वर्णन हो (सा०); (कनवर्शन) एक तरहके ऋणपत्र, परिषेक-पु० [सं०] सींचना, छिड़काव; स्नान । प्रमंडलके हिस्सों आदिको दूसरी तरहके ऋणपत्रों या परिष्करण-पु० [सं०] बुराइयाँ या दोष दूर कर ठीक हिस्सों में बदलना; धर्म, विश्वास, मत आदिका बदलना । करना, संशोधन । परिवृद्धि-स्त्री० [सं०] पूर्ण वृद्धि, सम्यक् वृद्धि । परिष्कार-पु० [सं०] सजावट, सिंगार; पाक द्वारा सुस्वादु परिवेदन-पु० [सं०] भारी दुःख; छोटे भाईका बड़े भाईसे बनाना; संस्कार; भूषण, गहना, मार्जन आदि संस्कार, पहले ही विवाह करना या अग्निहोत्र ले लेना; विवाह सफाई; घरका उपयोगी सामान । व्यापक ज्ञान, पूरी जानकारी सर्वत्र स्थिति तर्क। परिष्कृत-वि० [सं०] जिसका परिष्कार किया गया हो; परिवेश, परिवेष-पु० [सं०] घेरना, वेष्टन; हलकी सजाया, सँवारा हुआ; पाक द्वारा सुस्वादु बनाया हुआ; बदलीके कारण सूर्य या चंद्रमाके चारों ओर बन जाने- साफ किया हुआ; शुद्ध किया हुआ। वाला एक प्रकारका मंडल, किरणोंका वह मंडल जो कभी- परिष्क्रिया-स्त्री० [सं०] सजाना, अलंकृत करना; शोधन । कभी सूर्य या चंद्रमाके चारों ओर बन जाता है, परिधि; परिष्यंद-पु० [सं०] प्रवाह, बहाव नदी द्वीप; आर्द्रता । आवेष्टित करनेवाली वस्तु; भोजन परसन।।
| परिसंख्या-स्त्री० [सं०] गिनती, गणना; एक अर्थालंकार परिवेष्टन-पु० [सं०] चारों ओरसे घेरना आवृत करनेवाली जहाँ किसी वस्तुका एक स्थानसे निषेध करके उसका दूसरे वस्तु, आवरण, आच्छादन घेरा, परिधि पट्टी।
स्थान में स्थापन हो; ऐसा विधान जिससे विहित वस्तुसे परिवेष्टित-वि० [सं०] चारों ओरसे घिरा हुआ; आवृत । भिन्न सभी वस्तुओंका निषेध हो जाय (मीमांसा)।। परिव्यक्त-वि० [सं०] अति स्पष्ट ।
परिसंख्यात-वि० [सं०] जिसकी परिसंख्या हुई हो, परिव्यय-पु० [सं०] (कॉस्ट) किसी वस्तुके उत्पादन, परिगणित; जिसका खास तौरसे उल्लेख किया गया हो। निर्माणादिमें लगनेवाला रुपया या खर्च, लागत; मसाले। परिसंख्यान-पु० [सं०] गणना सही अनुमान अनुसूची। परिव्रज्या-स्त्री० [सं०] चारों ओर घूमना(विशेषतःभिक्षुका); परिसंघ-पु० [सं०] (कानफेडरेशन) स्वतंत्र राजाओं, राज्यों तपस्या संन्यास ।
या राष्ट्रोंका ऐसा संघटन जो एक दूसरेकी सहायता करने परिवाज, परिव्राजक-पु० [सं०] वह जो घर-बार छोड़- और सामान्य रूपसे संबंध रखनेवाले वैदेशिक प्रश्नों कर चतुर्थ आश्रममें प्रविष्ट हो गया हो, संन्यासी । __ आदिके संबंध समान नीति निर्धारित करने के उद्देश्यसे
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