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पदार्पण - पधारना
नाम, रूप आदिका कथन न्याय, वैशेषिक आदि दर्शनों में किया गया है, कोई अभिधेय वस्तु (न्याय में १६, वैशेषिकमें ६ या ७, सांख्यमें २५, योग में २६ और दांत २ पदार्थ माने गये हैं); (मैटर) ऐसी वस्तु जिसका ज्ञान हम अपनी ज्ञानेंद्रियों से प्राप्त कर सकते हैं तथा जो स्थान घेरती, भार रखती और रुकावट पैदा करती है। -विज्ञानपु० (फिजिक्स) दे० भौतिक शास्त्र' । -विद्या - स्त्री० वह विद्या जिसमें पदार्थोंका निरूपण किया गया हो । पदार्पण -पु० [सं०] पैर रखना; आगमन (आदरसूचक) । पदावधि - स्त्री० [सं०] ( टेन्यूर) किसी पदपर काम करते रहने की अवधि |
पदावनत - वि० [सं०] पैरोंपर झुका हुआ, विनीत । पदावली - स्त्री० भजनों आदिका संग्रह; [सं०] पदों या शब्दोंकी परंपरा; किसी रचना में निबद्ध अनेक पद या शब्द; शब्दोंकी लड़ी; किसी कवि या लेखक द्वारा प्रयुक्त शब्द- समूह |
पदावास - पु० [सं०] (आफिसल रेजीडेंस) किसी पदाधि कारीका सरकारी निवास स्थान ।
पदास - स्त्री० पादनेका भाव; पादनेका शारीरिक वेग । पदासन - पु० [सं०] पादपीठ, पैर रखनेकी छोटी चौकी । पदासा - वि० जिसे पदास लगी हो ।
पदासीन - वि० सं०] (किसी विशेष ) पदपर आरूढ । पदाहत - वि० [सं०] पैर से ठुकराया हुआ । पदिक - वि० [सं०] पैदल । पु० प्यादा; पैरका अग्रभाग; * गलेका एक आभूषण जिसपर किसी देवताका चरण बना रहता है; गलेका एक गहना, जुगनू; रत्न; तमगा । - हार - पु० रत्नोंकी माला ।
पदी* - पु० प्यादा, पदाति ।
पदु - पु० दे० 'पद'; बदला ।
पदुम- पु० घोड़ेके शरीरपरका एक चिह्न; * दे० 'पद्म' | पदुमिनी * - स्त्री० दे० 'पद्मिनी' । पदेन - अ० [सं०] (एक्स ऑफिशियो) (व्यक्तिगत रूपसे नहीं,वरन्) किसी पदपर आरूढ़ रहने या काम करते रहनेके कारण, पदकी हैसियतसे ।
पदांड़ा - वि० जो बहुत पादे; कायर । पदोदक - पु० [सं०] वह जल जिससे पैर धोया गया हो,
चरणामृत ।
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पदोन्नति - स्त्री० [सं०] ( प्रमोशन) किसी कर्मचारी के पद में होनेवाली वृद्धि या उन्नति, पहलेसे अधिक ऊँचे पदपर नियुक्त होना या भेजा जाना, पदवृद्धि, तरक्की । पटिका - स्त्री० [सं०] एक मात्रिक छंद । पद्धति, पद्धती - स्त्री० [सं०] पथ, मार्ग, रास्ता, प्रथा, रीति, परिपाटी, प्रणाली; पंक्ति, पाँत ।
पद्म-पु० [सं०] कमल; वे बिंदियाँ जो हाथीकी सूँड़ आदिपर होती हैं; कुबेरकी नौ निधियोंमेंसे एक; १०० नीलकी संख्या; पदमकाठ; पैरमें होनेवाला एक भाग्यसूचक चिह्न (सामुद्रिक); एक आसन । कंद-पु० कमलकी जड़ । - काष्ट - पु० एक ओषधि, पदमकाठ । - कोश- पु० कमलका संपुट; कमलके भीतरका छत्ता जिसमें उसके बीज लगते हैं । -ज, जात-पु० ब्रह्मा । -नाभ, -
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नाभि - पु० विष्णु । - नाल - स्त्री० कमलकी डंडी । - निधि - स्त्री० कुबेरकी एक निधि । निमीलन- पु० कमलका संपुटित होना । - नेत्र - वि० जिसके नेत्र कमलके समान हों । पु० एक बुद्ध । -पत्र - पर्ण - पु० पुष्करमूल; पुरइन; कमलकी पँखड़ी । -पाणि- वि० जिसके हाथमें कमलका फूल हो । पु० ब्रह्मा विष्णु । - बंधपु० एक प्रकारका चित्रकाव्य या चित्रालंकार जिसमें अक्षर इस ढंग से लिखे जाते हैं कि उनसे कमलका फूल बन जाता है । - बंधु - पु० सूर्य; भ्रमर । - बीज, वीज-पु० कमलगट्टा । - भव, भू, योनि-पु० ब्रह्मा । -रागपु० एक प्रसिद्ध रत्न, लाल, मानिक । - रेखा - स्त्री० कमलके आकार की हस्तरेखा जो अति धनवान् होनेका लक्षण मानी जाती है । - लांछना - स्त्री० लक्ष्मी; सरस्वती; तारा देवी । - लोचन - वि० कमल जैसे नेत्रोंवाला । - वासा- स्त्री० लक्ष्मी । - व्यूह - पु० प्राचीन कालकी एक प्रकारकी मोर्चाबंदी जिसमें सैनिकोंको इस ढंग से खड़ा करते थे कि कमलपुष्पका आकार बन जाता था। -संभव - पु० ब्रह्मा ।
पद्मक - पु० [सं०] पद्मव्यूह; हाथीकी सुँइपरके दाग; पद्म वृक्षकी लकड़ी; कुट नामक औषधि; पद्मासन । पद्मा - स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; लौंग; मनसा देवी । पद्माकर - पु० [सं०] कमलोंसे युक्त जलाशय; कमल-राशि; हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि ।
पद्माक्ष - पु० [सं०] कमलगट्टा; सूर्य; विष्णु । वि० जिसके नेत्र कमलके समान हों ।
पद्माख - पु० दे० 'पद्मकाष्ठ' ।
पद्मालया - स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; लौंग |
पद्मावती - स्त्री० [सं०] मनसा देवी; एक प्राचीन नदी; एक सुरांगना; पटनाका एक पुराना नाम; उज्जयिनीका एक पुराना नाम ।
प्रद्मासन - पु० [सं०] एक प्रकारका आसन जिसमें पालथी मारकर तनकर बैठते हैं; ब्रह्मा; शिव; सूर्य । पद्मिनी-स्त्री० [सं०] कमलका पौधा, कमलकी नाल; कमलोंका समूह; कमलसे युक्त जलाशय; हथिनी; चार प्रकारकी स्त्रियों में से प्रथम श्र ेणीकी स्त्री (कोकशास्त्र); चित्तौरकी एक प्रसिद्ध रानी । - कांत, -वल्लभ-पु० सूर्य । पद्मशय- पु० [सं०] विष्णु ।
पद्मोद्भव - पु० [सं०] ब्रह्मा ।
पद्मोद्भवा - स्त्री० [सं०] मनमा देवी |
पद्य - वि० [सं०] पद संबंधी; पदोंवाला; शब्द-संबंधी | पु० चार चरणोंवाला छंद, छंदोबद्ध रचना, गद्यका उलटा । पद्यमय - वि० [सं०] पद्यरूप ।
पद्या - स्त्री० [सं०] पगडंडी; सड़क के किनारेकी पैदल चलनेकी पटरी ।
पद्यात्मक - वि० [सं०] दे० 'पद्यमय' । पधरना* - अ० क्रि० पधारना, आना ।
पधराना - स० क्रि० आदर के साथ लिवा जाना; आदरपूर्वक बैठाना; स्थापित करना । पधारना - अ० क्रि० पदार्पण करना; चला जाना । स० क्रि० पधराना !
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