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भुना हुआ चूरन ।
पंडल * - वि० पीला । पु० पिंड; शरीर ।
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प्रामाणिक प्रतिलिपि राजकीय पंजी में सुरक्षित रखनेका प्रबन्ध करनेवाला अधिकारी; किसी विश्वविद्यालय, उच्च न्यायालय, सहयोगसमितियों आदिका वह अधिकारी जो अपनी संस्था या विभागके सब प्रकार के महत्त्वपूर्ण लेख, कागज पत्रादि सुरक्षित रूपसे रखनेकी व्यवस्था करता है । पंजीयन - पु० ( रजिस्ट्रेशन) मकान, जमीन आदिकी बिक्री या हस्तांतरण आदिका ब्यौरा या किसी पारसल, चिट्टा आदिके सुरक्षित रूपसे भेजे जानेके लिए पानेवालेका नाम, पता आदि पंजी में चढ़ाकर अभिलेख के रूपमें रखा जाना; अभ्यर्थियों आदिकी नामसूची में नामका दर्ज कर लिया जाना ।
पँवाड़ा ( रा ) - पु० विस्तृत कथा; वीरगाथा; कीर्तिकथा । पँवार - पु० परमार, राजपूतोंका एक भेद; * प्रबाल ।
पंजीरी - स्त्री० धनियाँ, चीनी, सोंठ आदि मिलाकर घीमें पँवारना * - स० क्रि० फेंकना; दूर करना, हटाना ।
पंसरहट्टा - पु० वह बाजार जिसमें पंसारियोंकी दुकानें हों । पंसारी - पु० हल्दी, नमक, मसाले आदि तथा ओषधियाँ बेचनेवाला बनिया ।
पँड़वा- पु० भैसका बच्चा ।
पंडा - पु० तीर्थ, मंदिर या घाटपर पुजनेवाला ब्राह्मण, घाटिया; गंगापुत्र; रसोई बनाने का काम करनेवाला ब्राह्मण । स्त्री० [सं०] सत् असत्का विवेक करनेवाली बुद्धि; निश्चया त्मिका बुद्धि, ज्ञान; विद्या ।
पँड़ाइन - स्त्री० पाँडेकी स्त्री; पाँड़े जातिको स्त्री । पंडाल - पु० किसी संस्थाके अधिवेशन आदि के लिए बना हुआ बड़ा मंडप |
पंडित - पु० [सं०] शास्त्र के तात्पर्यको जाननेवाला विद्वान् वह जिसमें सत्-असत्का विवेक करनेकी शक्ति हो;ब्राह्मण ( लोक ); संस्कृतका विद्वान् । वि० विद्वान्; कुशल | - मंडल - पु०, - सभा - स्त्री० विद्वानोंकी मंडली । पंडितम्मन्य - वि० [सं०] जो अपनेको बहुत बड़ा विद्वान्
समझे ।
पंडिताइन । - स्त्री० दे० 'पंडितानी' ।
पंडिताई - स्त्री० पंडित होनेका भाव या गुण, विद्वत्ता । पंडिताऊ - वि० पंडितोंके ढंगका, पंडित जैसा ।
पंडितानी - स्त्री० पंडितकी स्त्री; ब्राह्मणी । पंडुक - पु०कबूतरकी जातिका एक हलके कत्थई रंगका पक्षी । पंडुर* - पु० जलसर्प |
पॅतीजना-स० क्रि० रुई ओटना ।
पँतीजी - स्त्री० रुई धुननेका औजार, धुनकी ।
पंत्यारी* - स्त्री० पंक्ति, कतार ।
पंथ - पु० मार्ग, रास्ता; रीति; धर्म, संप्रदाय । मु०गहना * - रास्ता पकड़ना । - देखना - निहारना, - सेना-वाट जोहना, प्रतीक्षा करना । पर लाना, पर लगाना - सुमार्गपर चलाना। - ( किसीके ) - )-लगनाअनुकरण करना; परेशान करना ।
पंथ की * - पु० यात्री, मुसाफिर ।
पंथान* - पु० रास्ता, मार्ग | पंथिक* - पु० पथिक ।
पंथी - पु० बटोही, यात्री; किसी मतका माननेवाला । पंदर (द्र) ह - वि० दस और पाँच । पु० १५ की संख्या । पंप-पु० [अ०] पानी आदि तरल पदार्थों को ऊपर खींचने या पहुँचाने तथा इधर-उधर ले जानेकी एक कल; ट्यूब आदिमें हवा भरनेकी एक कल; पिचकारी ।
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पंजीयन - पकना
पंपा - स्त्री० [सं०] दक्षिणकी एक नदी या इसके पासका एक पुराना नगर या झील ( रामा० ) । पंपाल* - वि० पापी ।
पँवर* - स्त्री० ड्योढ़ी; सामान । पँवरना* -
* - अ० क्रि० तैरना; थाह लेना, पता लगाना । पँवरि* - स्त्री० ड्योढ़ी; द्वार ।
पॅवरिआ (या) - पु० पौरिया, द्वारपाल पुत्रजन्म के अवसर पर मंगलगीत गानेका पेशा करनेवाला एक विशेष वर्ग, ढाढी । पँवरी - स्त्री० ड्योढ़ी; * खड़ाऊँ ।
पंसासार* - पु० पासेका खेल । पँसुरी, पँसुली - स्त्री० दे० 'पसली' । पंसेरी-स्त्री० पाँच सेरकी तौलका बाट ।
प - वि० [सं०] पीनेवाला; रक्षक (समासांत में ) । पु० हवा | पइग' - पु० दे० 'पैग' । पइठना-अ० क्रि० दे० 'पैठना' । पइसार* - पु० प्रवेश । परि* - स्त्री० ड्योढ़ी । पडनार - पु० पद्मनाल, कमलदंड | पउनी* स्त्री० दे० 'पौनी' ।
पडला - पु० वह खड़ाऊँ जिसमें खूँटीकी जगह रस्सी लगी रहती है ।
पकड़ - स्त्री० पकड़नेका काम या भाव, ग्रहण; पकड़नेका तर्ज; कुश्ती में एक बारकी भिड़ंत; भूल, अशुद्धि आदि खोज निकालनेकी क्रिया या भाव; समझ । - धकड़स्त्री० धर-पकड़ । मु० - जाना - बंदी बनाया जाना, दोषी ठहराया जाना। - में आना- पकड़ा जाना; काबू में किया जाना ।
पकड़ना - स० क्रि० किसी वस्तुको इस ढंगसे हाथमें लेना या दबाना कि वह इधर-उधर हट न सके; ग्रहण करना; धरना; गति या व्यापारसे निवृत्त करना; पता लगाना, गलती करने या बहकनेसे रोकना; किसी काममें आगे बढ़े हुएकी बराबरी में आ जाना; किसी वस्तुको अपने में व्याप्त होने देना; किसी वस्तु में व्याप्त होना; अपनाना; आक्रांत या वशीभूत करना; ग्रसना; गिरफ्तार करना; किसी वस्तुसे चिपकना; समझना ।
पकड़वाना - स०क्रि० पकड़ने में प्रवृत्त करना, सहायता देना । पकड़ाना - स० क्रि० पकड़नेमें प्रवृत्त करना । पकना - अ० क्रि० अनाज, फल आदिका उस अवस्थाको पहुँचना जिसके बाद वे झड़ने लगते हैं, परिणतावस्थाको प्राप्त होना; कच्चा न रहना; आँच खाकर कड़ा और लाल होना; आँच या गरमी खाकर गलना या नरम होना, सीझना, चुरना; सफेद होना; पक्का होना; फोड़ा-फुंसी, घावका मवाद भर आनेको अवस्थाको पहुँचना; गोटियोंका सब खानोंको पार करके अपने खाने में पहुँचना ( चौसर ) ।
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