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निखनन-निचुड़ना निखनन-पु० [सं०] खोदना गाड़ना।
निगरानी-स्त्री० [फा०] देख-भाल, निरीक्षण । निखरना-अ.क्रि.निर्मल होना, साफ होना (किसी निगरु*-वि० जो गुरु अर्थात् भारी न हो, हलका ।
वस्तुपर ) और अधिक रंग चढ़ना; परिमार्जित होना। निगलन-पु० [सं०] निगलना, भक्षण । निखरवाना-स० क्रि० स्वच्छ कराना, साफ कराना। निगलना-सक्रि० गलेसे नीचे उतार देना, घोंट जाना निखरी-स्त्री० पक्की रसोई, 'सखरी'का उलटा ।
खा जाना; रुपया या धन हड़प लेना या दबा बैठना । निखर्व-वि० [सं०] दस हजार करोड़, ठिंगना, छोटे! निगह-स्त्री० [फा०] निगाह, दृष्टि । -बान-वि० देखकदका । पु० दस हजार करोड़की संख्या ।
रेख करनेवाला, रखवाला; रक्षक। निखवख*-अ० बिलकुल; केवल ।
निगाली-स्त्री० नैचेका वह भाग जो मुँह में रहता है। निखात-वि० [सं०] खोदा हुआ; जमाया हुआ; गाड़ा। निगाह-स्त्री० [फा०] दृष्टि, नजर दयादृष्टि, कृपा, मेहरहुआ। -निधि-स्त्री० (ट्रेजर ट्रोव) भूमिके भीतर गड़ी बानी; विचार, समझ चितवन, अवलोकन ध्यान; परख
हुई संपत्ति जो बाद में खोदकर निकाली गयी हो। निरीक्षण । -बान-वि० दे० 'निगहबान' । निखाद*-पु० दे० 'निषाद'।
निगिभ-वि० बहुत प्यारा, परम प्रिया अत्यंत गोप्य । निखार-पु० सफाई; सजावट ।
निगीर्ण-वि० [सं०] निगला हुआ; जिसका अंतर्भाव हो निखारना-म०क्रि० स्वच्छ करना, साफ करना, निर्मल गया हो या किया गया हो।
बनाना; पवित्र करना, शुद्ध करना, पापसे रहित करना। निगुण, निगुन, निगुना-वि० दे० 'निर्गुण'। निखालिसा-वि०बिना मिलावटका, विशुद्ध, पवित्र। निगुनी-वि० जो गुणी न हो, गुणीका उलटा, गुणहीन । निखिल-वि० [सं०] सारा, संपूर्ण, सब ।
निगुरा-वि० जिसने गुरुसे दीक्षा न ली हो, अदीक्षित । निखुटना, निखूटना*-अ० क्रि० घट जाना; समाप्त हो निगूढ-वि० [सं०] अति गुप्त रहस्यपूर्ण। जाना-बाती सूखी तेल निखूटा'-कबीर ।
निगृहीत-वि० [सं०] पकड़ा हुआ; वशमें लाया गया; निखेध*-पु० दे० 'निषेध' ।
दवाया हुआ विवादमें पराजित आक्रांत; पीडित । निधना*-सु० कि० निषेध करना, मना करना ।
निगोड़ा-वि० अभागा निराश्रयः जिसके कोई न हो, जो निखोट-वि० जिसमें किसी प्रकारका खोटापन न हो,
एकदम अकेला हो; निकम्मा; * दुष्ट, नीच । दोषरहित, निष्कलंक, विशुद्ध स्पष्ट, साफ । अनिःशंक निगोरा*-वि० दे० 'निगोड़ा'। होकर, बेखटके खुलमखुल्ला ।
निग्रह-पु० [सं०] रोकना, अवरोध; वशमें लाना; दंड निखोड़ना-स० क्रि० नाखूनसे नोचना ।
देना, दबाना, दमन; बंधन; अभ्यास और वैराग्य द्वारा निगंध*-वि० जिसमें गंध न हो, गंध-रहित ।
चित्तवृत्तिका निरोध । निगड-स्त्री० [सं०] बेड़ी, शृंखला; हाथी बाँधनेकी जंजीर । निग्रहना*-२० क्रि० पकड़ना; रोकना; दंड देना । निगडन-पु० [सं०] बेड़ी डालना; जंजीरसे बाँधना । निग्रही(हिन्)-वि० [सं०] निग्रह करनेवाला, दमन निगडित-वि० [सं०] बेड़ी या जंजीरसे जकड़ा हुआ। करनेवाला, दंड देनेवाला । निगद-पु० [सं०] भाषण, कथन; बोल-बोलकर किया हुआ निघंटु-पु० [सं०] वह ग्रंथ जिसमें शब्दोंके पर्यायोंका
जप, उल्लेख करना; बिना अर्थ समझे याद करना। संग्रह हो ( जैसे अमरकोश, हलायुध, वैजयंती इ०); निगदन-पु० [सं०] याद की हुई चीजका पाठ करना; वैदिक शब्दकोश जिसकी व्याख्या यास्कने अपने निरुक्त
कथन । निगदित-वि० [सं०] कहा हुआ, उक्त ।
निघटना*-अ० क्रि० घटना, कम होना-'निघटत नीर निगम-पु० [सं०] वेद; वेदका कोई अंश; पथ, मार्ग; मीनगन जैसे'-रामा०; बीतना । स० कि० मिटाना, नष्ट वणिकपथ, हाट, बाजार; मेला; कारवाँ; अनुमानके पाँच | करना। अवयवा मसे एक, निगमन (न्या०); बनजारा; निश्चयः | निघरघट-वि० बिना घर-घाटका, बिना घर-बारकां; जो (कारपोरेशन) वह निकाय या संस्था जो विधि (कानून)के | घूम-फिरकर एक ही जगह पर रहे और हटानेसे भी न हटे; अनुसार एक व्यक्तिकी तरह काम करने के लिए प्राधिकृत | बेशर्म, निर्लज । हो।-कर-पु०(कॉरपोरेशन टैक्स) व्यापारिक या औद्यो- निघरा-वि० बिना घर-बारका; निगोड़ा, कमीना, नीच । गिक निगमों( संस्थाओं )पर लगनेवाला कर । -निवासी | निघर्ष, निघर्षण-पु० [सं०] रगड़, घिसावट; पीसना । (सिन्)-पु० विष्णु, नारायण ।
निचय-पु० [सं०] समूह; संचय; निश्चय । निगमन-पु० [सं०] हेतु, उदाहरण और उपनयनके उप- निचल*-वि० अचल, अटल । रांत सिद्ध की गयी प्रतिशाका पुनः कथन (न्या०); वेदके निचला-वि० नीचेका, नीचेवाला; अचल, स्थिर, शांत । शब्दोंका उद्धरण; अंदर जाना।
निचाई-स्त्री० नीचा होनेका भाव, नीचापन, ऊँचाईका निगमागम-पु० [सं०] वेद और शास्त्र ।
उलटा; नीचेकी औरका विस्तार; नीचता, खोटाई। निगमित-वि० (इनकॉरपोरेटेड) निगमरूप में परिणत या | निचान-स्त्री० नीचापन; ढालुआँपन । संघटित ।
निचिंत-वि० दे० 'निश्चित'। निगर-* वि० सब, समस्त । पु० समूह [सं०] निगलना, निचड़ना-अ० कि० निचोड़ा जाना,गरना; सारहीन होना, भक्षण, भोजन होमका धुआ।
| बल या शक्ति निकल जानेसे क्षीण होना । २६-2
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