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निथंभ-निपात
वि० वह जो सदा आनन्दसे रहे ।
रही हो। निथंभ*-पु० स्तंभ, खंभा।
निद्रालु-वि० [सं०] सोनेवाला, निद्राशील । निथरना-अ० क्रि० धुले हुए मैल आदिके नीचे बैठ जानेसे निद्रित-वि० [सं०] सोया हुआ, सुप्त । जल आदिका स्वच्छ हो जाना।
निधड़क-अ० बेखटके, बेरोक बिना हिचक । निथारना, निथालना*-सक्रि० पानी या किसी अन्य निधन-पु० [सं०] नाश, मरण; अंत; कुंडलीमें आठवाँ तरल पदार्थको इस रूपमें लाना कि उसमें घुला हुआ। स्थान । वि०वित्तहीन, गरीब, दरिद्र ।-कारी(रिन)मैल आदि नीचे बैठ जाय ।
वि० घातक, नाशक । -क्रिया-स्त्री० अंत्येष्टिक्रिया। निदई*-वि० दे० 'निर्दय।
निधनी-वि० धनहीन, दरिद्र । निदरना*-स० क्रि० अपमान करना, अनादर करना; निधान-पु० [सं०] रखना; आधार, आश्रया आकर,
तिरस्कार करना, त्यागना; मात करना, नीचा दिखाना। खजाना; संपत्ति घर । निदर्शक-वि० [सं०] दिखलाने-बतलानेवाला ।
निधि-स्त्री० [सं०] किसी वस्तुका आधार; खजाना; वह निदर्शन-पु० [सं०] प्रदर्शन; उदाहरण, दृष्टांत ।
गड़ा हुआ धन जिसके स्वामीका पता न हो; कुबेरके नौ निदर्शना-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार जहाँ दो पदार्थों में रत्न (पा, महापन, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील भिन्नता होते हुए भी उपमा द्वारा उनके संबंधकी कल्पना और खर्व); समुद्र; नौकी संख्या; वह धन जो किसी उद्देकी जाय।
श्यसे अलग रखा या जमा कर दिया जाय; बहुगुण-संपन्न निदलन*-पु० दे० 'निर्दलन'।
व्यक्ति (लोकस) किसी चलायमान बिंदुकी वह रेखा जिसनिदहना*-स० क्रि० जलाना।
पर उस बिंदुकी वे सब स्थितयाँ हों जो किसी दिये हुए निदाघ-पु० [सं०] गरमी; घाम; ग्रीष्म ऋतु, पसीना।
नियमका पालन करती हों।-नाथ,-प,-पति-पाल-कर-पु० सूर्य। -काल-पु० ग्रीष्म ऋतु ।
पु० कुबेर । निदान-पु० [सं०] आदि कारण; कारण रोगका कारण
| निधीश, निधीश्वर-पु० [सं०] कुबेर । रोगकी पहचान, लक्षणों द्वारा यह निर्णय करना कि कौन निधेय-वि० [सं०] रखने योग्य, स्थापन करने योग्य । रोग हुआ है। अ० अंतमें, आखिर । वि०निकृष्ट, तुच्छ, निनरा-वि० न्यारा, जुदा। गया-गुजरा। -गृह-पु० (क्लिनिक) वह स्थान जहाँ । निनाद-पु०[सं०] शब्द, गुंजार; रथके पहियेकी आवाज । रोगियोंका परीक्षण इत्यादि कर उन्हें चिकित्सा-संबंधी
निनादना*-स० क्रि० निनाद करना ।। उचित सलाह दी जाती है। -शास्त्री (स्त्रिन)-पु० निनान*-पु० अंत; लक्षण । अ० अंतमें, आखिर । वि० (पैथेलाजिष्ट ) रोगोंका निदान करनेवाला विशेषज्ञ । | आखिरी दजेंका, घोर; बुरा, तुच्छ । निदारुण-वि० [सं०] कठिन; निर्दय; असह्य ।
निनार, निनारा-वि० न्यारा, जुदा-'वे हरि जल हम निदाह*-पु० दे० 'निदाघ'।
मीन वापुरी कैसे जियहिं निनारे'-सू०, दूर। निदिध्यास, निदिध्यासन-पु० [सं०] अनवरत चिंतन, निनावाँ-पु० फुसीकी तरहके लाल दाने जो जीभ, मसूड़े बार-बार स्मरण करना।
तथा मुँहके भीतरी भागों में निकल आते है। निदेश-पु० [सं०] आज्ञा; शासन कथन; समीपता, निक-निनौना*-स० कि० नवाना, झुकाना । टता; पात्र, बरतन; (डाइरेक्शन) रास्ता या ढंग बतानेका निनौरा-पु० ननिहाल ।
काम, करने या किये जानेका आदेश देना, हिदायत । निन्नानबे-वि०, पु० दे० 'निन्यानबे' । निदेशक-पु० [सं०] (डाइरेक्टर) निदेश करनेवाला; चल- | निन्यानबे-वि० नब्बे और नौ। पु० निन्यानबेकी संख्या, चित्रों में पात्रोंकी वेशभूषा, कथोपकथन आदि निर्धारित | ९९ । मु०-का चक्कर का फेर-धन बढ़ानेकी धुन । करनेवाला (निर्देशक)।
निन्यारा*-वि० दे० 'निनारा। निदेशिका-स्त्री० [सं०] (डाइरेक्टरी) किसी नगर, प्रदेश निपंग-वि० पंगु, अपाहिज ।
आदिके प्रमुख नागरिकों, व्यापारियों आदिका नाम, पता| निपजना*-अ० कि० उपजना, उत्पन्न होना, जमना पुष्ट आदि बातोंका ब्यौरा देनेवाली पुस्तक ।
होना, परिपक होना निकलना; बनना। निदेशी (शिन्)-वि० [सं०] आज्ञा देनेवाला । निपजी*-स्त्री० उपज; फायदा, मुनाफा । निदेस*-पु० दे० 'निदेश' ।
निपट-अ० एकदम, बिलकुल, नितांत, निरा। निदोष-वि० दे. 'निर्दोष'।
निपटना-अ० क्रि० दे० 'निबटना'। निद्धि*-स्त्री० दे० 'निधि' ।
निपटारा-पु० दे० 'निबटारा' । निद्रा-स्त्री० [सं०] प्राणियोंकी वह अवस्था जिसमें संशावहा | निपटेरा-पु० दे० 'निबटेरा' । नाडियोंका काम रुक जाता है, आँखें बंद हो जाती, शरीर निपतन-पु० [सं०] नीचे आना, उतरना; गिरना, पतन । शिथिल पड़ जाता और चेतना जाती सी रहती है। आल- निपतित-वि० [सं०] नीचे उतरा हुआ; गिरा हुआ। स्था मीलन । -चार,-भ्रमण-पु० (सोमनैबलिज्म) | निपत्र-वि० जिसमें या जिसपर पत्ते न हों, पत्रहीन । निद्रा-ग्रस्त रहते हुए भी चलना-फिरना या अन्य कार्य निपाँगर-वि० पंगु, जिसके हाथ-पाँव बेकाम हो गये हों। करना। -भंग-पु० जागरण ।
निपात-पु० [सं०] गिरना, पतन, चलाना, फेंकना; निद्रायमाण-वि० [सं०] जो सो रहा हो, जिसे नींद आ विनाश; वह शब्द जो वर्णागम आदिके द्वारा किसी प्रकार
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