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निचुल-नित्यानंद
४०८ निचुल-पु० [सं०] ३त; ऊपरका वस्त्र, निचोल ।
(क्लिनिक) किसी डाक्टर आदिका वह निजी चिकित्सा-गृह निचै* -पु० दे० 'निचय' ।
जहाँ रोगियोंका निदान तथा उपचार किया जाता है; निचोड़-पु० निचोड़ने पर निकली हुई वस्तु, निचोड़ा हुआ निदानगृह ।
जल, रस आदि; सारांश, निष्कर्ष तत्त्व, सार। निजु-वि०, अ० दे० 'निज' । निचोड़ना-स० कि- दबाकर या ऐंठकर किसी गीली या | निजोर* --वि० बलहीन, कमजोर । रसवाली वस्तुमेंसे पानी या रस निकालना, गारना; किसी निझरना*-अ० कि० एकदम झड़ जाना; खाली हो जाना वस्तुमेंका तत्व निकाल लेना; किसीकी सारी पूँजी हर लेना, -'भुवपर एक बुंद नहिं पहुँची, निझरि गये सब मेह'किसीका सब कुछ ले लेना ।
सू०, सारहीन हो जाना; अपनेको निर्दोष बताना । निचोना*-स० क्रि० निचोड़ना।
निहि*-अ० दे० 'नीठि' । निचोर*-पु० दे० 'निचोड़।
निठल्ला, निठल्लू-वि०बिना काम-धंधेका, खाली बैठा निचोरना*-स० क्रि० दे० 'निचोड़ना' ।
हुआ, बेकार; अकर्मण्य । निचोल-पु० [सं०] वह कपड़ा जिससे कोई वस्तु ढकी निठाला-पु० बेकारीका समय आय या जीविकाका अभाव । जाय, आच्छादन-वस्त्र, ढकनेका कपड़ा; चदरा; बिछावन- | निठुर-वि० दे० 'निष्ठुर'। की चादर ओहार; उत्तरीया स्त्रियोंकी ओढ़नी। निठुरई -स्त्री० निष्ठुरता। निचोलक-पु० [सं०] सदरी; चोली; कवच, उरस्त्राण । निठरता*-स्त्री० निष्ठुरता, निर्दयता । निचोवना*-स० क्रि० दे० 'निचोड़ना'।
निठुराई-स्त्री० करता, दयाहीनता, निष्ठुरता। निचौहाँ-वि० नीचेकी ओर किया हुआ, नीचेकी ओर निठौर-पु० बुरा स्थान; कुदाँव, दुर्दशा-'जिनको पिय झुका या झुकाया हुआ; नीचा ।
परदेस सिधारो सो तिय परी निठौर'-सू० । निचौह-अ० नीचेकी ओर ।
निडर-वि० निर्भय, निभीक; साहसी; ढीठ । निछक्का-पु० निर्जन स्थान, एकांत स्थान ।
नि*-अ० निकट, पास-'कबिरा चंदनके निई नीब भी निछत्र-वि० जिसके सिरपर छत्र न हो, बिना छत्रका; चंदन होइ'-कबीर ।
राजचिह्नरहित; जिसमें क्षत्रिय न हों, क्षत्रियहीन । निढाल-वि० थककर चूर, शिथिल, श्रांत; पस्त । निछनियाँ*-अ० दे० 'निछान'।।
निढिल*-वि० जो ढीला न हो, कसा हुआ, तना हुआ; निछल*-वि० निश्छल, कपटरहित ।।
सख्त, कड़ा। निछाना-वि० जिसमें मिलावट न हो, विशुद्ध, खालिस, | नितंत-अ० दे० 'नितांत'।
केवल, एकमात्र । अ० एकदम, बिलकुल, पूर्णतः। नितंत्र अनुज्ञा-स्त्री. (वायरलेस लाइसेंस) बेतारका यंत्र निछावर-स्त्री० किसी वस्तुको किसीके सिर या शरीरके (रेडियो) रखनेकी अनुमति । ऊपरसे घुमाकर दान कर देने या कहीं रखने, आदिका नितंब-पु० [सं०] स्त्रियों के शरीरका कमरसे नीचेका एक टोटका; निछावर की जानेवाली वस्तु; नेग; बलि; भाग, कटिका अधोभाग, चूतड़ा कमर; पहाड़की ढाल; उत्सर्ग; इनाम । मु०-करना-समर्पण करना; त्यागना। कंधा। -बिंब-पु० मंडलाकार नितंब । -होना-समर्पित किया जाना; त्याग दिया जाना। नितंबिनी-वि०, स्त्री० [सं०] सुंदर और भारी नितंब(किसीका किसीपर)-होना-किसीके निमित्त प्राण वाली। स्त्री० सुंदर और भारी नितंबवाली स्त्री।
छोड़ देना, किसीके लिए जान देना, बलि जाना। नित-अ० नित्य, प्रतिदिन, सदा। -नित-अ० हर निछावरी-स्त्री० दे० 'निछावर'।
। रोज, अनुदिन। निछोह-वि० जिसमें प्रेम, दया न हो, निर्मम, निठुर। | नितराम्-अ० [सं०] बहुत अधिक, अत्यंत; एकदम निछोही-वि० दे० 'निछोह' ।
__ पूर्णतः निरंतर; हर हालत में; निश्चयपूर्वक । निज-वि० [सं०] अपना, स्वकीय, जो पराया न हो; खास, नितल-पु० [सं०] पातालके सात भागों मेंसे एक । प्रधान पक्का सच्चा । अ० बिलकुल; प्रधानतः, अधिकतर नितांत-अ० [सं०] अत्यंत एकदम, बिलकुल । यथार्थ में, निश्चयपूर्वक । -सचिव-पु० (प्राइवेट सेक्रेटरी) निति-अ० दे० 'नित'। किसी राज्यपाल, मुख्य मंत्री या अन्य बड़े आदमीके साथ | नित्य-वि० [सं०] सदा बना रहनेवाला, अक्षर, अनश्वर, रहकर उसके निजी कामोंकी देखभाल तथा पत्र-व्यव- शाश्वतप्रतिदिनका; जो नित्य किया जाय । अ० प्रतिहारादि करनेवाला सचिव । -स्व-पु० अपना भाग। दिन; सदा । -कर्म(न),-कृत्य-पु. प्रतिदिन किया -करके-निश्चित रूपसे, अवश्य । -का-खास अपना, जानेवाला विहित कर्म जिसके न करनेसे पाप होता है व्यक्तिगत।
(जैसे-संध्या, पंचयश, स्नान आदि)। -क्रिया-स्त्री० निजकाना*-अ० क्रि० पास पहुँचना, नजदीक आना दे० 'नित्यकर्म'। -नियम-पु० कभी भंग न होनेवाला या जाना।
नियम । -प्रति-अ० प्रतिदिन, हर रोज।। निजन*-वि० जनरहित, निर्जन, सुनसान ।
नित्यता-स्त्री०, नित्यत्व-पु० [सं०] नित्य होनेका भाव, निज़ाम-पु० [अ०] तरतीब बंदोबस्त, हैदराबादके नवाब- अविनाशिता, अक्षरता। की उपाधि प्रबंधक काव्यरचना ।
। नित्यशः-अ० [सं०] हर रोज, प्रतिदिन सदा, हमेशा । निजी-वि० निजका; व्यक्तिगत । -उपचारगृह-पु० नित्यानंद-पु० [सं०] वह आनंद जो सदा बना रहे ।
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