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धर्म- धर्माभास
विहित कर्म (जैसे यश ); एक प्रकारका अदृष्ट जिससे स्वर्गकी प्राप्ति होती है (मीमांसा); लौकिक, सामाजिक कर्तव्य; वह कर्म जिसे वर्ण, आश्रम, जाति आदिकी दृष्टिसे करना आवश्यक हो ( इसके पाँच भेद हैं- (१) वर्णधर्म, (२) आश्रमधर्म, (३) वर्णाश्रम धर्म, (४) गौण धर्म तथा (५) नैमित्तिक धर्म); उपमेय और उपमान दोनों में रहनेवाला साधारण गुण; ऋषि, मुनि या आचार्य द्वारा निर्दिष्ट वह कृत्य जिससे पारलौकिक सुख प्राप्त हो; किसी वस्तु या व्यक्तिमें सदा बनी रहनेवाली सहज वृत्ति, स्वभाव, प्रकृति; ईश्वर या सद्गतिकी प्राप्तिके लिए किसी महात्मा या पैगंबर द्वारा प्रवर्तित मतविशेष; आप्त, आचार्य, राजा या सरकार द्वारा निर्दिष्ट लोकव्यवहार-संबंधी नियम; पुण्य; निष्पक्षता; औचित्यः सत्संग; तरीका, ढंग; यमराज; आचार; याग; अहिंसा; उपनिषद्ः न्याय; धनुष्; सोमपायी; आत्मा; कुंडली में लग्न से नवाँ स्थान; [हिं०] ईमान । - क्षेत्र - पु० भारतवर्ष जो धर्मोपार्जनकी कर्मभूमि माना गया है; कुरुक्षेत्र । - ग्रंथ - पु० धर्मविशेषका आधारभूत ग्रंथ, वह ग्रंथ जिसमें किसी धर्मसे संबद्ध शिक्षाएँ दी गयी हो । - वड़ी - स्त्री० [हिं०] ऐसी जगह टॅगी घड़ी जिसे सभी लोग देख सकें । - चक्र - पु० धर्मसंघ; बुद्धदेव; बुद्धकी शिक्षा; एक अस्त्र जो प्राचीन कालमें प्रयुक्त होता था । - चरण - पु०, -चर्या - स्त्री० धर्मका पालन या आचरण । - चिंतन- पु०, चिंता - स्त्री० धार्मिक विषयोंका मनन । -ज-पु० प्रथम औरस पुत्र; युधिष्ठिर; एक बुद्ध । वि० धर्मसे उत्पन्न । - जन्मा ( न्मन् ) - पु० युधिष्ठिर । - ज्ञ-पु० बुद्धदेव । वि० जिसे धर्मके स्वरूपका ज्ञान हो । - तंत्र - पु० (थियोक्रेसी) वह शासनव्यवस्था जिसमें राज्यका कार्य ईश्वर या धर्मके नामपर पुरोहितों, धर्माध्यक्षों आदि द्वारा ही संचालित हो । - ध्वज, - ध्वजी ( जिन्) - ५० वह जिसने धार्मिकता का ढोंग रचा हो, पाखंडी । -नंदन- पु० युधिष्ठिर । - निरपेक्ष राज्य- पु० (सेक्यूलर स्टेट) वह राज्य जिसकी सरकारी नीति धर्मके मामलेमें निरपेक्ष या तटस्थ रहने की हो, असांप्रदायिक राज्य, लौकिक राज्य । - निष्ट-वि० जो धर्ममें आस्था रखता हो, धर्मपरायण । निष्ठा - स्त्री० धर्ममें आस्था, विश्वास । - पत्नी - स्त्री० धर्मशास्त्र के नियमोंके अनुसार ब्याही हुई स्त्री । - पर- वि० धर्मपरायण - परायण - वि० धर्म में निष्ठा रखनेवाला । -पितापु० (गॉड फादर) वह व्यक्ति जो बपतिस्मा लेनेपर किसी बच्चेको धर्मकी शिक्षा देनेकी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ( ईसाई); पितृ - कर्तव्यका पालन करनेवाला या पितृतुल्य व्यक्ति । - पीठ-पु० धर्मका मुख्य स्थान; वह स्थान जहाँ धर्मकी व्यवस्था दी जाय; काशी । - पुत्र- पु० युधिष्ठिर; धार्मिक भावनासे उत्पन्न किया हुआ पुत्र - पुस्तक - स्त्री० 'धर्मग्रंथ' । - बुद्धि-स्त्री० धर्मकी और प्रवृत्त बुद्धि; धर्म-अधर्मका विवेक करनेवाली बुद्धि । वि० जिसकी बुद्धि धर्मकी और प्रवृत्त हो। -भगिनी - वि० वह स्त्री जो धर्मके नाते बहिन लगे; गुरुकन्या । - भीरुवि० जिसे धर्म छूटने का भय बना हो; जो अधर्मसे डरता हो । - युग - पु० सत्ययुग । - युद्ध - ५० वह युद्ध
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जिसमें किसी प्रकारका अन्याय या छल-कपट न हो, न्यायपूर्ण युद्ध । - राइ, राय* - पु० दे० 'धर्मराज' | - राज- ५० युधिष्ठिरः यमराजः बुद्धदेवः राजा । - लुप्तोपमा- स्त्री० उपमालंकारका एक भेद । -वत्सल - वि० जिसे धर्म प्यारा हो । - वाहन - पु० शिव; धर्मराजका वाहन - भैसा । - विद्- वि० धर्मश । - वीर- पु० वह जिसे धर्मपालनके प्रति इतना अदम्य उत्साह हो कि किसी भी स्थिति में अपने धर्म से न डिगे । - शाला- स्त्री० वह स्थान जहाँ धर्मार्थ अन्नादि बँटता हो, धर्मसत्र न्यायालय; यात्रियोंके निःशुल्क ठहरने के लिए बनवाया हुआ स्थान । - शास्त्र - पु० वह आप्त ग्रंथ जिसमें मनुष्य के कर्तव्याकर्तव्य, दायविधान आदिकी व्यवस्था हो (मनु, याज्ञवल्क्य आदिकी स्मृतियाँ) | - शास्त्री (त्रिन्) - पु० धर्मशास्त्रका पंडित । - शीलवि० जो धर्मके अनुसार आचरण करे; जो धर्मानुष्ठानमें बराबर लगा रहे । - संगीति- स्त्री० धर्म संबंधी वादविवादः बौद्धों का धर्मसम्मेलन जो बुद्धकी मृत्यु के बाद धार्मिक विषयोंपर विचार के लिए तीन बार हुआ था । -संहितास्त्री० वह ग्रंथ जिसमें धार्मिक विषयोंका प्रतिपादन हो । - सभा - स्त्री० न्यायालय, कचहरी । -सार-पु० उत्तम, पुण्य कर्म । - सारी* - स्त्री० धर्मशाला । - स्व-पु० (एंडामेंट्स) किसी मंदिरादिका खर्च चलाने या किसी धार्मिक कृत्यादिके निर्वाहार्थं स्थायी व्यवस्था करनेके उद्देश्य से दी गयी संपत्ति, धर्मोत्तरसंपत्ति । मु० - बिगाड़ना - किसीका धर्म नष्ट करना, किसीको धर्मच्युत करना; स्त्रीका सतीत्व नष्ट करना । - रखना- धर्मच्युत होनेसे बचना या बचा लेना ।
धर्मतः - अ० [सं०] धर्मके अनुसार; धर्मको साक्षी देकर । धर्मांतर - पु० [सं०] अन्य धर्म |
धर्मांध - वि० [सं०] स्वधर्म में अंधश्रद्धा और दूसरे धर्मोको प्रति द्वेषका भाव रखनेवाला; धर्मके नामपर लड़नेवाला । धर्माचरण - पु० [सं०] धार्मिक या पुण्य कार्य करना; धर्मके अनुसार आचरण करना ।
धर्माचार्य - पु० [सं०] धर्मकी शिक्षा देनेवाला गुरु । धर्मात्मज - पु० [सं०] युधिष्ठिर ।
धर्मात्मा (त्मन्) - वि० [सं०] धर्मनिष्ठ, धर्मशील, धार्मिक धर्मादा-पु० धर्मार्थ निकाला हुआ धन । धर्माधर्म-पु० [सं०] धर्म और अधर्म | धर्माधिकरण - पु० [सं०] न्यायालय; न्यायाधीश । धर्माधिकरणिक- पु० [सं०] धर्म-अधर्मका निर्णय करनेवाला राजकर्मचारी, न्यायाधीश, विचारक ।
धर्माधिकार - पु० [सं०] धार्मिक कृत्योंका निरीक्षण;न्यायव्यवस्था; न्यायाधीशका पद । धर्माधिकारी (रिन्) - ५० [सं०] दे० 'धर्माधिकरणिक' | धर्माधिकृत - पु० [सं०] दे० 'धर्माध्यक्ष' । धर्माधिष्ठान - पु० [सं०] न्यायालय | धर्माध्यक्ष-पु० [सं०] न्यायाधीश; विष्णु । धर्मानुष्ठान-पु० [सं०] दे० 'धर्माचरण' । धर्माभास-पु० [सं०] श्रुति स्मृति से भिन्न शास्त्रों द्वारा उक्त सद्धर्म ।
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