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नागमती-नाटिका होती है। -झाग*-पु० अहिफेन, अफीम । -दंत,- नागिनी-स्त्री० दे० 'नागिन'। दंतक-पु० हाथीदाँत; दीवारकी खूटी। -दमन-पु. नागेंद्र-पु० [सं०] बड़ा साँप; शेष आदिः प्रमुख नाग; नागदौनेका पौधा ।-दौन-पु० [हिं०] एक छोटा पहाड़ी महाकाय हाथी, गजराज; ऐरावत। पेड़ । -दौना-पु० [हिं०] एक पौधा जिसमें टहनियोंकी नागेश-पु० [सं०] शेष नाग; एक प्रसिद्ध वैयाकरण । जगह जड़के ऊपरसे केवल बड़ी-बड़ी पत्तियाँ लगती है; नागेश्वर-पु० [सं०] शेष नाग; ऐरावत; नागकेशर । एक तरहका क.दुवा और काँटेदार दौना। -द्रुम-पु० नागेसर* -पु० दे० 'नागेश्वर' । सेहुँड़; नागफनी। -धर-पु० शिव । -नगर-पु० नागौरी-वि० नागौरका (बैल, गाय इ०) । गजमुक्ता। -पंचमी-स्त्री० श्रावण शुक्ला पंचमी जिस | नाच-पु० ताल और लयपर आश्रित अंगविक्षेप; आनंदा. दिन सनातनी हिंदू नाग देवताकी पूजा करते है ।-पति- तिरेकमें मचायी जानेवाली उछल-कूद खेल, क्रीडा; कामपु० सर्पराज वासुकि हस्तिराज ऐरावत । -पाश-पु० धंधा ।-कूद-स्त्री० उछल-कूद; नाच-तमाशा ।-घरवरुणका अस्त्रभूत पाश; ढाई फेरेका फंदा; साँपोंका फंदा । महल-पु० दे० 'नर्तनशाला' । -रंग-पु० आमोद-पुर-पु. पाताल । -पुष्प-पु० चंपक; नागकेशर; प्रमोद । मु०-काछना-नाचनेको उद्यत होना ।-दिखाना पुन्नाग वृक्ष । -पुष्पिका-स्त्री० पीली जूही; नागदौना। -किसीके सामने उछल-कूद मचाना । -नचाना-परे-पुष्पी-स्त्री. नागदमनी; मेढासींगी। -फनी-स्त्री० शान करना; इच्छानुसार काम कराना। [हिं०] थूहरकी जातिका एक पौधा। -फाँस-स्त्री० नाचना-अ० कि० ताल और लयके अनुसार गात्रविक्षेप [हिं०] दे० 'नागपाश'। -फेन-पु० अफीम |-बंधक- करना, नृत्य करना; आनंदातिरेकमें उछलना-कूदना; पु० हाथी फँसानेवाला। -बल-पु० भीम (जिन्हें दस । प्रत्यक्षसा प्रतीत होना, झूलना; इधरसे उधर आना-जाना, हजार हाथियोंका बल था)। वि० जो हाथीकी तरह बल- दौड़-धूप मचाना; काँपना; क्रोधावेशमें उछलना कूदना। वान् हो। -भगिनी-स्त्री० वासुकि नागकी बहन जर- नाज*--पु० अनाज, अन्न खाद्य वस्तु, खाद्य पदार्थ । त्कारु। -भूषण-पु. शिव । -यज्ञ-पु. एक यश नाज़-पु० [फा०] हाव-भाव, विलास-चेष्टा गर्व, घमंड । जिसमें जनमेजयने नागोंका विनाश किया था ।-लोक- -नखरा-पु० हाव-भाव, मोहक चेष्टा । -नी-स्त्री. पु० पाताल । -वंश-पु० नागोंका वंश; शक जातिकी। रूपवती स्त्री; नाजुकबदन औरत, कोमलांगी। -बरदार एक शाखा । वि० नागवंशका नागवंशमें उत्पन्न ।-वल्लरी, -वि० नाज बरदाश्त करनेवाला, आशिक ।-बरदारी-वल्ली-स्त्री० पानकी बेल ।
स्त्री० नाज बरदाश्त करना । -व(ज़ो)अदा,-नखरानागमती-स्त्री० [सं०] एक लता।
पु० दे० 'नाज-नखरा'। नागर-वि० [सं०] नगर-संबंधी नगर में रहनेवाला; चतुर, नाज़िम-वि० [अ०] प्रबंध करनेवाला, प्रबंधकर्ता । चालाक; नगर-निवासियों-संबंधी। पु० नगरबासी, पौर; नाज़िर-वि० [अ०] देखनेवाला, दर्शक । पु० वह जो चतुर, सभ्य पुरुष ।
देख-भाल करे, निरीक्षक * स्त्री० अंतःपुरकी मुख्य परिनागरता-स्त्री० [सं०] नागरिकता, शहरातीपन; शिष्टता, |
चारिका। सभ्यता; चालाकी, चतुरता ।
नाज़क-वि० [फा०] कोमल, सुकुमार; महीन, बारीक नागरिक-वि० [सं०] नगर-संबंधी; नगरका; जो नगरमें जो जल्दी टूट जाय, फूट जाय या नष्ट हो जाय; सूक्ष्म रहे, शहराती। पु० नगरवासी, पौर । -उड्यनविभाग गंभीर; संकटपूर्ण, मार्मिक । -ख़याल-वि० अच्छे विचा-पु० (सिविल एवियेशन डिपार्टमेंट) नागरिकोंकी हवाई रोंवाला । -दिमाग़-वि० दे० 'नाजुक मिजाज' । - यात्रा आदिकी देखभाल करनेवाला विभाग। -शास्त्र- बदन-वि० कोमल शरीरवाला, कोमलांग, सुकुमार । पु० (सिविक्स) वह शास्त्र जिसमें व्यक्ति और देशके हितकी -मिजाज़-वि० जिसे कोई बात बहुत जल्दी लग जाय; दृष्टिसे उत्तम नागरिक जीवन व्यतीत करने आदिका बिवे- चिड़चिड़ा, तुनुकमिजाज; घमंडी। चन किया जाता हैं।
नाजो, नाजी*-स्त्री० नाजनी प्रियतमा। नागरिकता-स्त्री० [सं०] नागरिक होनेका भाव; नागरो- नाटक-पु० [सं०] दृश्य काव्य या रूपकके दस भेदोंमेंसे एक चित स्वत्व, आचार या शिष्टता; नागरिक जीवन । । जो प्रथम और सर्वप्रधान है। रूपक अभिनय दृश्य काव्य । नागरी-स्त्री० [सं०] नगर में रहनेवालीस्त्री, शहरकी औरत, -कार-पु० नाटक बनाने, लिखनेवाल।। -शालानगरवासिनी; चतुर स्त्री सेहुँडा संस्कृत और हिंदी भाषा• | स्त्री० वह स्थान या गृह जहाँ नाटक खेला जाता हो। की लिपि ।
नाटकिया-पु० अभिनेता; बहुरुपिया। नागा-पु० एक शैव संप्रदाय जिसमें साधु लोग नंगे रहते नाटकी-स्त्री० इंद्रकी सभा । पु० नाटक खेलनेवाला, अभिहै। इस संप्रदायका साधु; आसाममें बसनेवाली एक जंगली नेता। जाति; आसामका एक पहाड़; बराबर चलनेवाले काममें नाटकीय-वि० [सं०] नाटक-संबंधी; नाटक जैसा ।-ढंगसेपड़नेवाला अंतर, बीच । * वि० खाली; नंगा।
आश्चर्यमय या अकल्पित रूपसे । नागिन-स्त्री० सपिणी; नाग नामक साँपकी मादाजी बहुत नाटना-अ० क्रि० दे० 'नटना' । स० कि. अस्वीकार विषैली होती है; कर या दुष्ट स्वभाववाली स्त्री; पीठ या करना, इनकार करना। गरदनपरकी लंबी रोमावली; बैलोंकी पीठपर होनेवाली नाटा-विछोटे कदका। पु०छोटे कदका बैल (या आदमी)। साँपके आकारकी लंबी रोमराजि जिसकी गणना ऐबोंमें है। नाटिका-स्त्री० [सं०] उपरूपकका एक भेद ।
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