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दोउ - दोहगा
हाथोंका; दोनों हाथोंसे किया हुआ (वार) । -धारावि० जिसमें दोनों ओर धार हो । -नली - वि० स्त्री० जिसमें दो नालें हों । -पलिया, पल्ली- वि० स्त्री, जिसमें दो पल्ले हों । - पहर- पु०, स्त्री० पहरी । - स्त्री० दिनका वह समय जब सूर्य सिरपर आ जाता है, मध्याह्न । - पीठा- पु० कागज आदिका एक ओर छपने के बाद दूसरी ओर छपना; वि० दूसरी ओर भी छपा हुआ । - फसली - वि० जिसमें दो फसलें उपजायी जायँ । - बारा - अ० एक बार और । - मंजिला - वि० दो तल्लोंवाला । -मटस्त्री० बालू मिली हुई मिट्टी। -मुँहा - वि० जिसके दो मुँह हों । - मुँहा साँप - पु० एक साँप जिसकी दुम मोटी होनेके कारण दूसरे मुँहकीसी जान पड़ती है; वह मनुष्य जो दो तरह की बातें करे, कपटी मनुष्य । - रंगा - वि० दे० 'दुरंगा' । - रसा - वि० जिसमें दो प्रकार के रस हों । - रुखा - वि० कभी एक तरहका, कभी दूसरी तरहका ( व्यवहारादि); दोनों तरफ समान रंग या बेलबूटेवाला । - हत्थड़-पु० दोनों हाथोंसे मारा हुआ थप्पड़ | मु०आँखों देखना - समान दृष्टिसे न देखना । - दिनका- नावोंपर चढ़ना या पैर हालका; बहुत कम उम्रका । रखना- दो पक्षोंका अवलंबन करना; दो वस्तुओंका सहारा लेना । - सिर होना - मरनेको तैयार होना, मौतको न्यौता देना ।
दोउ, दोऊ - वि० दोनों ।
दोख* - पु० दे० 'दोष' ।
दोखना * - स० क्रि० दोषारोपण करना, दोषी ठहराना । दोखी* - पु० दे० 'दोषी' ।
दोगा - पु० एक तरहका छपा हुआ लिहाफ; पानी में घोला हुआ चूना ।
दोग्धा (ट) - पु० [लं०] दुहनेवाला, ग्वाला; बछड़ा; चारण । दोष * - स्त्री० संकट, कुश; असमंजस, पसोपेश; दबाव । दोचन * - स्त्री० दोच; दबाव डालना; दबावमें पड़ना । दोचना - स० कि दबाव डालना । दोज - स्त्री० दूज, द्वितीया तिथि ।
दोजख पु० [फा०] इस्लाम धर्मके अनुसार वह स्थान जहाँ कयामत के बाद पापी जायेंगे, जहन्नुम, नरक । दोज़खी - वि० [फा०] दोजख संबंधी; दोजखका, नारकीय; दोजख भेजने योग्य ( पापी ); बहुत बड़ा (पापी) । दोजग* - पु० दे० 'दोज़ख' ।
दोदना - स०क्रि० किसी के सामने कही हुई बात से मुकरना । दोन- पु० दोआबा; दो पहाड़ोंके बीचका भूभाग; दो नदियों का संगम दो वस्तुओंका मेल ।
दोना - पु० पत्तों का बना हुआ कटोरेकी शकलका पात्र; दीना । दोनिया, दोनी - स्त्री० छोटा दोना । दोनों - वि० पूर्वकथित या ऐसे दो जिनमें से एक भी छोड़ा
न जाय, उभय ।
दोबल* - पु० दोष, लांछन- 'दोबल देत सबै मोहीको उन पठयो मैं आयो' - सू० ।
दोबा* - पु० दुविधा, दो स्थितियोंके बीचकी अवस्था । दोय+ * - वि० दोनों ।
दोयम - वि० [फा०] दूसरे दर्जेका, दूसरे नंबरका ।
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दोल-पु० [सं०] झूला झूलना; दोलोत्सव, नंडोल, डोली । दोलन- पु० [सं०] झूलना । दोला- स्त्री० [सं०] झूला, हिंडोला; अनिश्चय; बड़ी डोली । - यंत्र - पु० झूला; अर्क उतारनेका भभका | दोलायमान- वि० [सं०] झूलता हुआ; अस्थिर, ढुलमुल । दोलायित, दोलित - वि० [सं०] झूलता हुआ; अस्थिर । दोलोत्सव- पु० [सं०] फाल्गुनकी पूर्णिमाको पड़नेवाला वैष्णव का एक उत्सव जिसमें हिंडोलेपर कृष्णकी प्रतिमाको झुलाते हैं।
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दोष-पु० [सं०] अपराध, कसूर; अवगुण, ऐत्र; विकार, खराबी; लांछन, पाप, कलुष; त्रुटि; अशुद्धि; बछड़ा; गोधूलि; किसी बात का खंडन; रसको अपकृष्ट बनानेवाली एक काव्यगत त्रुटि; शरीर में रहनेवाले बात, पित्त और कफ जिनके कोपसे शरीर व्याधिग्रस्त हो जाता है; इन दोषोंसे उत्पन्न विकार; राग-द्वेषादि जो मनुष्यको सुकर्म या दुष्कर्ममें प्रवृत्त करते हैं । - कर, - कारी (रिन), कृत् - वि० बुराई करनेवाला, अनिष्टकर -धन- पु० वात, पित्त और कफके दोषोंको शांत करनेवाली दवा । - ज्ञ - वि० विद्वान्, मनीषी । त्रय - पु० वात, पित्त और कफ - ये तीन दोष । - पत्र - पु० वह कागज जिसपर अपराधी के अपराधोंका ब्यौरा लिखा हो । - प्रमाणित - वि० (कॉनविक्टेड) जिसका अपराध न्यायालय में प्रमाणित हो गया हो, दे० 'अभिशंसित' । - वेचक - पु० ( सेंसर) वह सरकारी कर्मचारी जो पत्र, पुस्तक, फिल्म आदिका तथा सेना संबंधी सूच नाओं का परीक्षण कर आपत्तिजनक अंश निकाल देता है । -वेचन - पु० ( सेंसरशिप) पत्र पुस्तकादिसे उत्तेजक या आपत्तिजनक अंशोंका, निरीक्षणके बाद, हटा दिया जाना । - सिद्धू - वि० (कोन विक्टेड) जिसका दोष या अपराध प्रमाणित हो गया हो, दोषप्रमाणित, अभिशंसित । - सिद्धि - स्त्री० (कॉनविक्शन) दोष या अपराधका प्रमाणित हो जाना ।
दोषन* - पु० दोष, अपराध, दूषण । दोषना* - स० क्रि० दोप लगाना, ऐब लगाना । दोषा - स्त्री० [सं०] रात्रि भुजा । -कर- पु० चंद्रमा । दोषाकर- पु० [सं०] दोषों का समूह। वि० जो दोषों से युक्त हो ।
I
दोषारोपण - पु० [सं०] दोष लगाना । दोषावह - वि० [सं०] दोषपूर्ण, दोषोंसे भरा हुआ । दोषित* - वि० दोषयुक्त ।
दोषी (पिन्छ ) - पु० [सं०] अपराधी, अभियुक्त; ऐबी; पापी । दोस - * पु० दोष; + मित्र । दोसा* - स्त्री० दे० 'दोषा' |
दोस्त - पु० [फा०] मित्र, सुहृद् । -नवाज़ - पु० मित्रों के प्रति सहानुभूति रखनेवाला ।
दोस्ताना - वि० [फा०] दोस्तीका; मित्रोचित | पु० मित्रता; मित्रताका व्यवहार ।
दोस्ती - स्त्री० [फा०] मित्रता, सौहार्द + दो लोइयाँ एक साथ बेलकर तवापर सेंकी हुई रोटी ।
दोह - * पु० दे० 'द्रोह'; [सं०] दुहनेकी क्रिया, दोहन । दोहगा - स्त्री० दुभंगा; वह विधवा जिसे किसी दूसरेने रख
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