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काकड़ासीगी-काट
१५२ काकड़ासींगी-स्त्री० दवाके काम आनेवाला एक द्रव्य, पतले छिलकेवाला (बादाम, नीबू इ०)। पु० कागज बनाने कर्कटशृंगी।
या बेचनेवाला; बिलकुल सफेद कबूतर । -काररवाई। काकणी-स्त्री० [सं०] घुघची
स्त्री० लिखा-पढ़ी। काकरी*-स्त्री० ककड़ी।
कागद-पु० [सं०] कागज । काकरेज़-पु० [फा०] एक तरहका ऊदा-काले और लाल | कागर*-पु० कागज; केंचुली; मुलायम पर, पंख । रंगके मेलसे बना हुआ-रंग।
| कागरी*-वि० तुच्छ । काकरेजा-पु० [फा०] काकरेज रंगका कपड़ा।
कागा*-पु० कौआ। -बासी-स्त्री० तड़के छानी जानेकाकरेजी-वि० [फा०] काकरेज रंगका । १० काकरेज रंग। वाली भाँग; एक तरहका मोती। -रोल-पु० कौओंका काकलि, काकली-स्त्री० [सं०] मधुर, अस्फुट ध्वनि | काँव-काँव करना; शोरगुल ।
पतली मीठी आवाज; चोरीमें सहायक एक औजार । कागौर-पु० काकबलि । काकलीक-पु० [सं०] मंद, मधुर स्वर ।
काच-पु० [सं०] शीशा खारी मिट्टी। -मणि-पु० काका-पु० चचा। स्त्री० [सं०] काकजंघा, काकोली। स्फटिक । -लवण-पु० काला नमक । काकाक्षिगोलक न्याय-पु० [सं०] एक शब्द या पदसे, काचरी-स्त्री० केंचुली। कौएकी आखके डेलेकी तरह, दो काम निकालना। काचा, काचो*-वि० दे० 'कच्चा'। काकातुआ-पु० बड़ा तोता जिसके सिरपर चोटी होती है। काची-स्त्री० सिंहाड़े, कुम्हड़े आदिका हलुआ । काकारि-पु० [सं०] उल्लू ।
काछ-पु० पेड़ और जाँधका जोड़; धोतीका छोर जिसे काकिणी-स्त्री० [सं०] कौड़ी; पणका चौथाई, पाँच गंडे जाँघोंके बीचसे ले जाकर पीछे खाँ सते हैं, लॉग; सिखोंका कौड़ी; माशेका चौथाई; धुंधची।
कच्छ; नटोंका वेश-विन्यास। काकी-स्त्री० काकाकी स्त्री; [सं०] कौएकी मादा। | काछना-स० कि० लाँगको पीछे ले जाकर खोंसना; काकु-पु० [सं०] भाव या अर्थके भेदसे ध्वनिमें भेद होना| मँवारना, पहनना; किसी पतली चीजको पोंछकर, उँगली वक्रोक्ति अलंकारका एक भेद जिसमें ध्वनिभेद, कहनेका आदिसे एक तरफ हटाकर इकट्ठा करना । ढंग बदलनेसे अर्थ बदल जाता है; * व्यंग्य, छिपी चोट काछनी-स्त्री० घुटनोंतक कसकर पहनी हुई धोती जिसमें करनेवाली उक्ति ।
दोनों लांगें पीछे खुसी हों; मूर्तियों आदिको पहनाया काकुत्स्थ-पु० [सं०] काकुत्स्थके वंशमें उत्पन्न व्यक्ति- जानेवाला एक तरहका घाघरा। दशरथ, राम आदि ।
काछा-पु० कुछ ऊपर चढ़ाकर और कसकर पहनी हुई काकुन-स्त्री० एक मोटा अन्न, कॅगनी ।
धोती जिसकी दोनों लाँगें पीछे खोंसी जाती है। काकुल-स्त्री०[फा०] कनपटीपर लटकते हुए बाल, जल्फ। काछी-पु० एक हिंदू जाति जो तरकारियाँ बोने-बेचनेका काकोदर-पु० [सं०] साँप ।
काम करती है, कोयरी, मरार (छत्तीसगढ़)। काकोल-पु० [सं०] काला कौआ, डोमकौआ सर्प शूकर । काछू-पु० कछुआ। काकोली-स्त्री० [सं०] एक वनौषधि, जीवंती ।। काछे*-अ० पास, निकट । काकोलूकीय न्याय-पु० [सं०] कौए और उल्लूकासा काज-पु० काम, कार्य, धंधा; अर्थ, प्रयोजन; विवाहादि सहज वैर।
कृत्य; बटनका छेद । (के काज-के लिए, के वास्ते । ) काक्ष-पु० [सं०] कटाक्ष; चढ़ी हुई त्यौरी ।
काजर-पु० दे० 'काजल'। काक्षी-स्त्री० [सं०] एक गंधद्रव्य; एक तरहको सुगंधित | काजरी*-स्त्री० वह गाय जिसकी आँखके चारों ओरका मिट्टी।
हिस्सा काला हो। काग-पु० [अं० 'कार्क'] बोतल या शीशीकी डाट; [सं०] काजल-पु० दियेके धुएँ की कालिख जो सुरमेकी तरह कौआ। -भुसुंडि,-भुसुंडी-पु० एक रामभक्त जो आँख में लगायी जाती है। -की कोठरी-ऐसी जगह शापवश कौआ हो गया था।
जहाँ जानेसे, ऐसा काम जिसे करनेसे, कलंक लगना काग़ज़-पु० [अ०] सन, बाँस, चीथड़े आदिकी लुगदीसे | अनिवार्य हो, बदनामीका घर । मु०-पारना-दियेकी बनायी हुई वस्तु जो लिखने छापने आदिके काम आती लीपर कजरौटा आदि रखकर कालिख इकट्ठा करना। है, कागद; लिखी हुई चीज, लेख लिखित प्रमाण, दस्ता-काज़ी-पु० [अ०] मुसलमान न्यायाधीश जो शराके वेज; रुका ऋणपत्र; अखबार ।-पत्र-पु० किसी मामलेसे | अनुसार मामलोंका निर्णय करे; निकाह पढ़ानेवाला संबद्ध लिखी हुई बातें; कागजात सबूत । -का रुपया- मौलवी; विचारक। नोट । -की नाव-कागज मोड़कर (खेलके लिए) बनायी काजू-पु० एक पेड़ और उसका फल जिसकी गिरी मेवेके हुई नाव; न टिकनेवाली, क्षणभंगुर वस्तु । मु०-काला करना-बेकार बातें लिखना। -के घोड़े दौड़ाना-लंबी काट-स्त्री० काटनेका काम; काटनेका ढंग; तराश; चोट, लिखा-पढ़ी, पत्र-व्यवहार करना; (केवल) कागजी कार- घावः चालबाजी; पेचका तोड़ा तेल आदिकी तलछट; रवाई करना।
घाव पर किसी चीजके लगनेसे होनेवाली छरछराहट । काग़ज़ात-पु० [अ०] कागजपत्र ।
-कपट-स्त्री० छिपाकर या अनुचित रीतिसे काटना । काग़ज़ी-वि० [अ०] कागजका बना लिखित (सबूत इ०); | .-कूट-स्त्री० कलमसे लकीर खींचकर लिखी हुई चीजको
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