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ज़माना-जया होना; जड़ मजबूत करना; ठीक तौरसे चलने लायक | जमुना-स्त्री० यमुना नदी । बनाना (कारबार, स्कूल आदि); बैठाना, स्थापित करना जमुनियाँ -वि० जामुनके रंगका । पु० जामुनका रंग। (असर, धाक, रोब आदि); इकट्ठा करना; खाना, उदरस्थ | जमुहाना*-अ० क्रि० जम्हाई लेना। करना (भाँगका गोला); मारना, रसीद करना (थप्पड़, जमूरक*-पु० पुराने समयकी एक तोप जो घोड़े या घुसा, लाठी आदि); मश्क करना, बैठाना (हाथ); डालना, ऊँटपर चलती थी। उगाना, उपजाना।
जमूरा-पु० दे० 'जमूरक' । ज़माना-पु० [अ०] काल; युग; अरसा, अवधि; बहुत जमैयत-स्त्री० [अ०] इकट्ठा होना; समुदाय; सभा। समय राज्यकाल; कार्यकाल; दुनिया, संसार; क्रियाका | जमोगना -स० क्रि० हिसाबकी जाँच कराना; मूल धनमें काला सौभाग्यकाल । मु०-उलटना-समयका यकबारगी सूद जोड़ना; अपनी कोई जिम्मेदारी दूसरेको सौंपना बदल जाना, नया युग उपस्थित हो जाना। -देखे और उससे इसकी हामी भरा लेना; किसीकी बातकी पुष्टि होना-अनुभवी होना । -पलटना,-बदलना-अच्छे या तसदीक करना । दिनसे बुरे या बुरेसे अच्छे दिन आना। -(ने)की जमोगवाना -सक्रि० जमोगनेका काम दूसरेसे कराना। गर्दिश-समयका उलट-फेर, दिनका फेर ।
जम्हाई-स्त्री० ऊँघ, ऊब, आलस्य आदिसे होनेवाली जमाल-पु० [अ०] सुंदरता, शोभा; ईश्वरका माधुर्य, ऐश्वर्य । शरीरकी एक सहज क्रिया जिसमें मुँह पूरा खुल जाता जमालगोटा-पु. एक विरेचक बीज ।
और साँस जोरसे अंदर खिंचकर फिर धीरे-धीरे बाहर जमाव-पु० जमनेका भाव; भीड़, मजमा ।
निकलती है, उबासी। जमावट-स्त्री० जमनेका भाव ।
जम्हाना-अ० क्रि० जम्हाई लेना। जमावड़ा-पु. जमाव ।
जयंत-पु० [सं०] इंद्रका पुत्र; शिव; विष्णु; चंद्रमा; जमी*-वि० संयमी, इंद्रियोंका निग्रह करनेवाला । कात्तिकेय । वि. विजयी; बहुरुपिया । ज़मीन-स्त्री० [फा०] पृथ्वी (ग्रह); धरती, भूमि, धरतीका | जयंती-स्त्री० [सं०] पताका; इंद्रकी कन्या, जयंतकी बहन स्थलभाग; जमीनका टुकड़ा, खेत; यह लोक; मिट्री दुर्गा; पार्वती; भाद्र-कृष्णा अष्टमीको आधी रातको रोहिणी कागज, कपड़े आदिकी सादी या अस्तर की हुई सतह
नक्षत्र होनेसे पड़नेवाला एक योग (कृष्णका जन्म इसी जिसपर चित्रकारी, नक्काशी या छपाई की जाय; वह तेल योगमें हुआ था); किसी व्यक्ति या संस्थाकी जन्मतिथिजिसपर कोई इत्र तैयार किया जाय, इत्रका मादा का उत्सव । नदी, तालाब आदिका तलभाग। (जमी)कंद-पु० । जय-स्त्री० [सं०] शत्रु या विपक्षीको हराना, पछाड़ना, सूरन । -दार-पु० जमीनका मालिक । -दारी-स्त्री० जीत; वशमें करना, निग्रह (इंद्रियजय); दूसरोंसे बढ़ जमींदारका हका वह जमीन जिसपर किसी खास जाना। पु० विष्णुके दो द्वारपालों( जय, विजय )मेंसे आदमीको जमींदारका हक हासिल हो; जमींदारका काम, एका युधिष्ठिरका अज्ञातवासके समयका नाम । -कारपेशा। -दोज़-वि० जमीन में धंसा हुआ, इस तरह
पु० जयध्वनि । -गोपाल-पु० हिंदुओंमें प्रचलित एक बना हुआ कि जमीनके ऊपर न उभरा हो (किला, | प्रकारका अभिवादन। -घोष-पु० जयध्वनि । -जयमकान); जो जमीनके बराबर कर दिया गया हो, पटपर । कार-पु० जयघोष; जयप्राप्तिका आशीर्वाद । -जीव*-बोसी-स्त्री० जमीन चूमना । मु०-आसमान पु० एक तरहका प्राचीन अभिवादन । -देव-पु० गीतएक करना-अत्यधिक प्रयास या उद्योग करना; हलचल | गोविंदके रचयिता प्रसिद्ध वंगीय कवि । -ध्वनि-स्त्री० मचाना; दुनिया छान मारना। -(व)आसमानका जयघोष । -पत-पु० दे० 'जयपत्र'। -पत्र-पु० फ़क़-बहुत अधिक अंतर, आकाश-पातालका अंतर । पराजित राजा आदिका वह लेख जिसमें वह अपनी परा-(व)आसमानके कुलाब मिलाना-बहुत डींग मारना, | जय स्वीकार करे, मुकदमेमें जीतनेवाले पक्षको मिलनेअत्युक्ति करना; किसी कामके लिए बहुत प्रयत्न करना ।। वाला जयसूचक पत्र, डिगरी। -पराजय-स्त्री० जीत-का पाँव तलेसे खिसक या निकल जाना-भय या हार । -पाल-पु. जमालगोटा, विष्णु । -माल-स्त्री० घबराहटसे खड़ा न रह सकना, बदहवास हो जाना। [हिं०] दे० 'जयमाला'। -माला-स्त्री० विजेताको -का पैबंद होना-दफन होना, मरना। -चूमना- पहनायी जानेवाली जयसूचक माला; वह माला जो इस तरह गिरना कि मुँह-नाक जमीनसे लग जाय; स्वयंवरा कन्या मनोनीत वरके गले में डाले (हिं०)। जमीनसे माथा टेककर (राजा, बादशाह आदिको) प्रणाम -लक्ष्मी-स्त्री० जयश्री। -श्री-स्त्री० विजयकी अधिकरना, जमीबोसी । -दिखाना-पटकना, गिराना । ष्ठात्री देवी विजय; एक रागिनी। -स्तंभ-पु० देश-नापना-अधिक यात्रा करना; बेकार फिरते रहना। विजयके स्मारक रूपमें संस्थापित स्तंम । मु०-मनाना-पकड़ना-जमकर बैठ जाना; (कुश्ती में) चित न होना। (किसीकी) विजय या कल्याणकी कामना करना। -पर आना-गिरना, (कुश्तीमें) नीचे आना । -पर जयद्रथ-पु० [सं०] सिंधु-सौवीरका राजा (दुर्योधनका पाँव न पड़ना या न रखना-बहुत गर्व होना, बहुत बहनोई) जिसने चक्रव्यूहमें फँसे अभिमन्युका वध किया। इतराना । -में गड़ जाना-अत्यंत लज्जित होना, जयना*-स० क्रि० विजय प्राप्त करना । लज्जासे सिर न उठा सकना। ।
जया-स्त्री० [सं०] दुर्गा; दुर्गाकी एक सहचरी; पताका जमुकना-अ० क्रि० पास आना, होना।
| हरी दूब शमी; जैत; हड़; भाग अड़हुलका फूल । * वि०
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