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मामा
जीवनांत-जुगवना
२८६ आवश्यकताएं पूरी करना, रोजका खर्च चलाना। जीविका-स्त्री० [सं०] जीवनयात्राका साधन,रोजी, वृत्ति । -बूटी-स्त्री० [हिं०] संजीवनी बूटी। -मरण- जीवित-वि० [सं०] जीता हुआ, जीवंत, जीवनयुक्त; जिसे पु० जीना-मरना, जिंदगी-मौत । -मूरि-स्त्री० [हिं०] पुनः जीवन मिला हो। पु० जीवन; जीवन-काल; संजीवनी बूटी; अति प्रिय वस्तु या जन ।-यापनव्यय- जीविका, प्राणी। -काल-पु० आयु । -नाथ-पु० पु० (कॉस्ट ऑव लिविंग) जीवन-निर्वाहका व्यय- पति । -संशय-पु० जीवनका खतरा । भोजन, वस्त्र, निवास आदि-संबंधी वह सामान्य व्यय जो जीवितांतक-पु० [सं०] शिव । जीवनयापनके लिए आवश्यक होता है। -रक्षक नौका- जीवितेश-पु० [सं०] प्राणाधार, पति ईश्वर चंद्र, सूर्य । स्त्री० (लाइफ बोट) जहाज डूबते समय प्राण बचानेवाली जीवी(विन्)-वि० [सं०]...से जीनेवाला (जैसे श्रमविशेष प्रकारकी नौका । -रक्षक पेटी-स्त्री० (लाइफ जीवी, चिरंजीवी, दीर्घजीवी इ०) । बेल्ट) डूबनेसे बचनेके लिए बाँधी जानेवाली पेटी जिसमें जीवेश-पु० [सं०] परमेश्वर । हवा भरी रहती है या बड़ा-सा काग (कार्क) लटकता जीह, जीहा*-स्त्री० दे० 'जीभ' । रहता है। -वृत्त,-वृत्तांत-पु० जीवनचरित ।-वत्ति- जीहि, जीही*-स्त्री० दे० 'जीभ' । स्त्री० जीविका। -संघर्ष-पु० कठिन परिस्थितियोंमें | जुई-स्त्री० दे० 'जुई। अस्तित्व बनाये रखनेका भारी प्रयत्न । -हर-वि० जु-अ०, सर्व० दे० 'जो'। जीवनका हरण करनेवाला।
जुअती*-स्त्री० दे० 'युवती'। जीवनांत-पु० [सं०] जीवनका अंत, मृत्यु ।
जुआँ, जुआ-पु० दे० ''। जीवनावास-पु० [सं०] वरुण शरीर।
जुआ-पु० इल, बैलगाड़ी आदिमें जीते जानेवाले बैल या जीवनि*-स्त्री० संजीवनी बूटी, जिलानेवाली चीज; अति | बैलोंके कंधेपर रखी जानेवाली लकड़ी; जाँतेकी मूठा बाजी प्रिय वस्तु ।
लगाकर खेला जानेवाला (ताश आदिका) खेल, धत जीवनी-स्त्री०जीवनचरित ।
सोलह चित्ती कौड़ियोंसे खेला जानेवाला इस तरहका जीवनोपाय-पु० [सं०] जीविका ।
खेल। -खाना-पु० जुआ खेलनेका अड्डा। -चोरजीवनौषध-स्त्री० [सं०] वह दवा जो मरतेको जिला दे। पु० जीतकर भाग जानेवाला जुभाड़ी; धोखवाज। जीवन्मुक्त-वि० [सं०] जो जीवित दशामें ही आत्मज्ञान | -चोरी-स्त्री० धोखेबाजी। प्राप्त कर संसार-बंधनसे छूट गया हो ।
जुआड़ी-पु० जुआ खेलनेवाला । जीवन्मृत-वि० [सं०] जो जीता हुआ भी मुर्दे जैसा हो। जुभार-स्त्री० दे० 'ज्वार'; * पु०दे० जुआडी' -भाटाजीवरा*-पु० जीव; प्राण ।
पु० दे० 'ज्वारभाटा'। जीवरि*-स्त्री० जीवन धारण करनेकी शक्ति ।
जुआरी-पु० जुआ खेलनेवाला । जीवांतक-पु० [सं०] बहेलिया। वि० जीवोंका वध करने जुडें-स्त्री० छोटी जू; मटर आदिमें लगनेवाला छोटा कीड़ा। वाला।
जुकाम-पु० [अ०] एक रोग जिसमें नाक बहती, कुछ जीवा-स्त्री० [सं०] धनुषकी डोरी; चापके दो सिरोंको। ज्वर हो आता और सिर भारी हो जाता है। मु०मिलानेवाली रेखा; (कॉर्ड) वह रेखा जो परिधिके एक बिगड़ना-जुकामका सूख जाना । (मेढकीको)विंदुसे दूसरेतक खींची जाय, किंतु जो केंद्रसे होकर न होना-छोटे आदमी में बड़ोंकी बराबरी करनेका हौसला
जाय, चापकर्ण; जल, पृथ्वी; जीविका वचा; जीवंती। होना। जीवाजून*-पु० जीवजंतु ।।
जुग-पु० युग; पीढ़ी; जोड़ा, युग्म गुट्ट; चौसरकी गोटियोंजीवाणु-पु० [सं०] (वेसिलस) क्षुद्रतम जीव; (बैक्टीरिया) का जोड़ा, एक घर में बैठी हुई दो गोटियाँ। -जुग-अ० विकारसे उत्पन्न होनेवाले अति-सूक्ष्म एक-कोपीय शाकाणु सदा, युगोंतक । -जुग जियो-युगोंतक जीते रहो, लंबी जिनमेंसे कितने ही तो रोगोंकी उत्पत्तिके कारण माने | आयु भोगो । मु०-टूटना,-फूटना-दो इकट्ठी गोटियोंका जाते हैं और कुछ शरीरके लिए लाभदायक भी होते हैं। अलग-अलग हो जाना; एका न रह जाना, फूट पड़ना। -नाशक-वि० (एंटी-बायोटिक) जो (रोगादि उत्पन्न | जुगजुगाना-अ० क्रि० झिलमिलाना, टिमटिमाना । करनेवाले) जीवाणुओंका नाश करने में समर्थ हो (दवा)। | जुगजुगी-स्त्री० एक चिड़िया, शकरखोरा। -विज्ञान-पु० (बैक्टीरियालॉजी) जीवाणुओंकी उत्पत्ति, | जुगत-स्त्री० युक्ति, उपाय, चतुराई; द्वयर्थक बात, व्यंग्यविकास आदिका विवेचन करनेवाला विज्ञान | -विद- विनोदभरी उक्ति । * वि० युक्त, संभव। मु०-लगानापु० (बैक्टीरियालॉजिस्ट) जीवाणुओं संबंधी जानकारी जोड़-तोड़ भिड़ाना, युक्ति करना। रखनेवाला, जीवाणु-विज्ञान जाननेवाला ।
जुगती-वि० जोड़-तोड़ लगानेवाला, चतुर । जीवात्मा(त्मन्)-पु० [सं०] जीव, देहस्थ चैतन्य, जुगनी-स्त्री० दे० 'जुगनू', * हार आदि में लगा हुआ नग। व्यष्टि आत्मा।
जुगनू-पु० एक कीड़ा, खद्योत (रातमें उड़नेपर इसकी दुमजीवाधार-पु० [सं०] जीवका अधिष्ठान, हृदय । से रोशनी निकलती है); गलेमें पहननेका एक गहना। जीवावशेष-पु० [सं०] (फॉसिल) धरतीके भीतरी स्तरोंसे | जुगम*-वि० दे० 'युग्म' । निकले हुए प्राचीन कालके जीवों, वनस्पतियों आदिके जुगल-वि० दे० 'युगल'। अवशिष्टांश।
जुगवना-स०नि०जोड़ना,इकट्ठा करना;संभालकर रखना ।
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