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तृषा-तेहि
३३४ उत्पन्न संतोष; इच्छित वस्तुकी प्राप्तिसे जीका भरना । से साफ किया हुआ सोना। तृषा-स्त्री० [सं०] प्यास तीव्र इच्छा, अभिलाष; लोभ । तेजी-स्त्री० [फा०] तेज होनेका भाव, तीक्ष्णता, तीव्रता तषालु-वि०सं०] प्यासा, पिपासित, पिपासात । प्रखरता; शीघ्रता, जल्दी; महँगी, सस्तीका उलटा । तृषावंता-वि० तृषावान् ।
तेजोमय-वि० सं०] तेजसे परिपूर्ण; जिसके शरीरसे तेज तषाचान(वत)-वि० [सं०] तृषालु, प्यासा ।
निकलता हो, ज्योतिर्मय। तृषित-वि० [सं०] प्यासा ।
| तेजोमूर्ति-पु० [सं०] सूर्य। वि० जिसमें तेजकी प्रचुरता हो। तृष्णा-स्त्री० [सं०] प्यास; अप्राप्त वस्तुको पानेकी तीव्र | तेजोवान्(वत्)-वि० [सं०] तेजसे युक्त; तीखा; तेज । इच्छा; लोभ ।-क्षय-पु० संतोष, इच्छाका अंत; शांति। तेजोहत-वि० [सं०] जिसका तेज नष्ट हो गया हो। तृष्णालु-वि० [सं०] तृष्णावान्, प्यासा लोभी। तेता*-वि० उतना, जो परिमाणमें उसीके बराबर हो। ते *-प्र० से; द्वारा।
तेतालीस-वि०, पु० दे० 'ते तालीस'। तैंतालीस-वि० चालीस और तीन । पु० ४३ की संख्या। तेतिक*-वि० उतना । ततीस-वि० तीस और तीन । पु० तैतीसकी संख्या, ३३।। तेतो*-वि० उतना। तेंदुआ-पु० चीतेकी जातिका एक हिंस्र जंतु जो प्रायः तेरस-स्त्री० दे० 'त्रयोदशी' । पीलापन लिये भूरा-सा होता है और इसकी देहपर काले- तेरह-वि० दस और तीन । पु० तेरहकी संख्या, १३ । काले गोल धब्बे या चित्तियाँ-सी होती हैं।
(तीन-तेरह-दे० 'तीन' में)। तदू-पु० एक पेड़ जिसका हीर आबनूसके नामसे बिकता है।। तेरहीं-स्त्री० मरनेकी तिथिसे तेरहवीं तिथि जिस दिन ते-*अ० से । सर्व० [सं०] वे, वे लोग।
ब्राह्मणभोजनके बाद मरणाशौचका अंत होता है। तेइ-सर्व० वे ही।
तेरुस*-पु० पिछला या आगेका तीसरा साल। स्त्री०तेरस । तेईस-वि० बीस और तीन । पु० तेईसकी संख्या, २३।। तेरे*-प्र० से। तेऊ*-सर्व वे भी।
तेरो*-सर्व० तेरा। तेखना*--अ०क्रि० रुष्ट, नाराज होना।
तेल-पु०बीजों, वनस्पतियों आदिसे निकलने या विशेष तेग़-स्त्री० [फा०] बड़ी तलवार ।
उपाय द्वारा निकाला जानेवाला स्निग्ध तरल पदार्थ; वरतेगा-पु० दे० 'तेग'; कुश्तीका एक दाँव ।
वधूको विवाहके पूर्व हल्दी मिला हुआ तेल लगानेकी एक तेज-पु० [सं०] तीखापन; शस्त्रकी तीक्ष्णता; चमक; रीति ।मु०-चढ़ना-विवाह-संबंधी तेलकी रस्म पूरी होना । उत्साह ।-पत्ता,-पात-पु० [हिं०] मसालेके काम आने-| तेलग-स्त्री० तैलंग या आंध्र देशकी भापा । वाला एक प्रकारका पत्ता । -पत्र-पु० तेजपात । तेलहन-पु० वे बीज जिनसे तेल निकाला जाता है। तेज(स)-पु० [सं०] तीक्ष्णता; तीक्ष्ण धार; दिव्य ज्योति | तेलहा -वि० तेलसे संबद्ध तेलका, तेल में बना हुआ; दीप्ति, प्रभा, चमक; बल, पराक्रम वीर्य; उग्रता, अधीरता | जिसमें तेल हो। प्रभाव; अपमान या अधिक्षेपको न सहनेका गुण; ताप; तेलिया-वि० जो तेलकी भाँति चिकना हो; जिसका रंग नवनीत, मक्खन, सोना; अग्नि, पंचमहाभूतोंमें तीसरा तेलके रंग जैसा हो। पु० एक रंग; इस रंगका घोड़ा; एक ओज; दूसरोंको अभिभूत करनेकी सामर्थ्य ।
विष । स्त्री० एक मछली। -पखान-पु० एक तरहका तेज़-वि० [फा०] जिसकी धार तीक्ष्ण हो, पैनी धारका; काला, चिकना पत्थर । -मसान-पु० कंजूम आदमी। द्रतगामी, वेगवान् फुतीला तीक्ष्ण बुद्धिवाला; तीखे स्वाद- -सुहागा-पु० एक प्रकारका चिकना सुहागा । का; जल्द असर करनेवाला; महँगा, जिसका मूल्य चढ़ तेली-पु०हिंदुओंकी एक जाति जो तेल पेरने और बेचनेका गया हो; प्रखर, प्रचंड; उग्रः चपल, चंचल ।
पेशा करती है। मु०-का बैल-रात-दिन पिसनेवाला तेजन-पु० [सं०] दीप्ति या तेज उत्पन्न करनेकी क्रिया या व्यक्ति ।
भाव; चाकू आदि तेज करना; बाणकी नोक शस्त्रकी धार। तेवर-पु. क्रोधसूचक भ्रभंग, क्रोधभरी दृष्टि, कोप प्रकट तेजना*-स० क्रि० तजना, छोड़ना।
करनेवाली तिरछी नजर, भौंह । मु०-चढ़ना-क्रोधके तेजवंत-वि० तेजवान् ।
मारे भौंहोका तन जाना। -बदलना-क्रुद्ध होना। तेजवान-वि० तेजसे युक्त पराक्रमी; बलिष्ठ; ओजस्वी। | तेवरी-स्त्री० दे० 'त्योरी' । तेजसी*-वि० तेजस्वी।
तेवहार-पु० दे० 'त्योहार'। तेजस्काम-वि० [सं०] शक्ति, प्रताप आदिकी इच्छा करने- तेवान*-पु० सोच, चिंता । वाला।
तेवाना*-अ० कि० सोचमें पड़ना, चिंता-मग्न होना । तेजस्वान्(स्वत्)-वि० [सं०] तेजसे युक्त, तेजवाला । | तेह-पु० क्रोध; स्वाभिमान, ऐंठ; ताव; प्रखरता, तेजी। तेजस्विता-स्त्री० [सं०] तेजस्वी होनेका भाव ।
तेहरा-वि० तीन परत किया हुआ, तीन तहोंका; जिसकी तेजस्वी(स्विन्)-वि० [सं०] तेजवाला; प्रतापी शक्ति- तीन प्रतियाँ एक साथ हों; तीसरी बार किया हुआ। शाली प्रभावशाली।
तेहराना-स० क्रि० तीन परतों या तहोंका बनाना; तीसरी तेज़ाब-पु० [फा०] किसी क्षार पदार्थका अम्ल जिसमें | बार करना; तीसरी बार पढ़ना ।
दूसरी वस्तुओंको गलानेकी शक्ति रहती है (एसिड)। तेहा*-पु० दे० 'तेह'।। तेजाबी-वि० [फा०] तेजाव-संबंधी ।-सोना-पु० तेजाब- | तेहि*-सर्व० उसको, उसे ।
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