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तौसना-त्रि तौसना*-अ० कि० दे० 'तौं सना'। स० क्रि० ताप या त्रय-वि० [सं०] तीन । गरमी पहुँचाकर बेचैन करना।
त्रयी-स्त्री० [सं०] तीनका समाहार-जैसे वेदत्रयी। तौहीन-स्त्री० [अ०] अनादर, अपमान, बेइज्जती। त्रयोदशी-स्त्री० [सं०] किसी पक्षकी तेरहवीं तिथि, तेरस । तौहीनी-स्त्री० दे० 'तौहीन'।
भ्रष्टा*-पु० एक प्रकारकी थाली जो प्रायः ठाकुर-पूजनके त्यक्त-वि० [सं०] त्यागा, छोड़ा हुआ, जिसका त्याग कर काम आती है। दिया गया हो।-जीवित,-प्राण-वि० जिसने जीवनकी । त्रसरेणु-स्त्री० [सं०] धूलका वह सूक्ष्म कण जो छिद्रसे आशा छोड़ दी है। मरनेको प्रस्तुत। लज-वि०निर्लज्जा आनेवाले प्रकाशमें दिखाई देता है। सूक्ष्म कण; सूर्यको जो संकोचमें न पड़ा रहे ।
एक पत्नी। त्यक्तव्य-वि० [सं०] छोड़ने, त्यागने योग्य ।
व्रसन-पु० [सं०] भय, चिता; व्याकुलता। त्यक्ता(क्त)-वि०, पु० [सं०] छोड़नेवाला, त्यागनेवाला। सना*-अ० क्रि० डरना, भीत होना। त्यजन-पु० [सं०] छोड़ने, त्यागनेकी क्रिया।
साना*-स० क्रि० डराना, भय दिखाना । त्याग-पु० [सं०] किसी वस्तु परसे अपना स्वत्व हटा लेने त्रसित-वि० डरा हुआ, भीत, त्रस्त; ग्रस्त, आक्रांत । अथवा अपनेपनका भाव मिटाकर उसे छोड़ देनेकी क्रिया, स्त-वि० [सं०] भीत, डरा हुआ; चकित ।
सीसे नाता तोड़ देनेकी क्रिया सांसारिक विषयों त्राटक-पु० [सं०] हठयोगमें किसी विदुपर दृष्टि जमानेकी तथा भोगोंमें लिप्त न रहनेकी क्रिया या भाव; ममत्वका क्रिया। उच्छेदः परहितसाधन अथवा उच लक्ष्यकी प्राप्तिके लिए त्राण-पु० [सं०] भयके हेतुका निवारण, रक्षा, बचाव । की गयी स्वार्थकी उपेक्षा, कुरबानी; किसी पद या स्थानसे | त्राता(त)-पु० [सं०] रक्षक, बचानेवाला । संबंध न रखना । -पत्र-पु० इस्तीफा । -शील-वि० उदार, त्यागी।
त्रास-पु०[सं०] भय, डर; कष्ट ।-कर-पु०दे० 'त्रासक'। त्यागना-स० कि० छोड़ना, त्याग करना ।
-दायी (यिन)-वि०, पु० भयदायक । त्यागी (गिन)-वि० [सं०] जो सांसारिक सुखोंमें लिप्त त्रासक-पु० [सं०] डरानेवाला; नाशक; दूर करनेवाला। न होजिसने स्वार्थ, भोगकी इच्छा आदिका त्याग कर | ग्रासन-पु०[सं०] डराने या त्रस्त करनेकी क्रिया त्रासक । दिया हो, विरक्त ।
वासना*-स० क्रि० डराना, भय दिखाना । त्याज्य-वि० [सं०] छोड़ने, त्यागने योग्य ।
त्रासित-वि० [सं०] त्रस्त किया हुआ, डराया हुआ। त्यार*-वि० दे० 'तैयार'।
ब्राहि-अ० [सं०] बचाओ, रक्षा करो, पाहि । मु०-त्राहि त्यो -अ० उस प्रकार, उस तरह, वैसे; उसी वक्त, उसी करना-दैन्यपूर्वक रक्षाके लिए प्रार्थना करना, बेबस होकर समय, तत्क्षण; * (किसीकी) ओर, तरफ ।
बचानेके लिए किसीको पुकारना। -त्राहि मचनात्योनार*-पु० दे० 'त्यौनार ।
विपग्रस्तोंके मुंहसे 'त्राहि-त्राहि की पुकार निकलना । त्योर*-पु० दे० त्योरी'।
त्रि-वि० [सं०] तीन । यह यौगिक शब्दोंके आरंभमें जोड़ा त्योर(क)सा-प० बीता हुआ या आगेका तीसरा वर्ष। जाता है, जैसे-त्रिकाल, त्रिदेव, त्रिलोक इ०।-कंट,स्योरी-स्त्री० माथेका बल, माथेकी सलोट; निगाह, दृष्टि। कंटक-पु० गोखरू; सेहुँडा टेंगरा मछली। वि०जिसमें मु०-चढ़ना या बदलना-क्रोधसे माथेमें बल पड़ना, तीन काँटे या नोकें हों।-कटु,-कटुक-पु० तीन कड़ए कोपसे भ्रकुटीका ऊपर की ओर खिंच जाना । -चढ़ाना पदार्थोंका समाहार-सोंठ, पीपर और मिर्च। -कालया बदलना-क्रोध व्यक्त करनेके लिए पेशानीपर बल | पु०तीनों काल-भूत,वर्तमान और भविष्य; तीनों समयडालना। -में बल पड़ना-त्योरी चढ़ना ।
प्रातः, मध्याह्न और सायं । अ० प्रातः, मध्याह्न और त्योहार-पु० प्रतिवर्ष निश्चित तिथिको मनाया जानेवाला सायं-तीनों समय । -कालज्ञ-वि०,पु० तीनों कालोंकी कोई बड़ा धार्मिक या जातीय उत्सव, पर्व।।
बातें जाननेवाला । -काल दर्शक-पु० ऋषि । वि०जिसे त्योहारी-स्त्री० वह वस्तु जो त्योहारके उपलक्ष्यमें छोटों तीनों कालोंकी बातें ज्ञात हों।-कालदर्शिता-स्त्री० त्रिया नौकरोंको दी जाय ।
कालदर्शी होनेकी शक्ति या भाव ।-कालदर्शी(शिन्)त्यो -अ० दे० 'त्यो।
वि०, पु० दे० 'त्रिकालज्ञ' । -कुटी-स्त्री० भौहोंके मध्यत्योनार*-पु० ढंग, तरीका।
के कुछ ऊपरका स्थान जहाँ त्रिकूट-चक्रकी स्थिति मानी त्यौर-पु० दे० 'त्योरी' ।
जाती है। -कूट-पु० वह पर्वत जिसपर लंका बसी थी; त्योराना-अ० क्रि० सिर घूमना, सिर में चक्कर आना। तीन शृंगीवाला पर्वत; एक पर्वत जो सुमेरुका पुत्र माना त्यौरी-स्त्री० दे० 'त्योरी'।
जाता है (वामन पु०); योगमें एक चक्र जिसकी स्थिति त्यौरुसा-पु० 'त्योरुस' ।
त्रिकुटीमें मानी जाती है। समुद्री लवण । -कोण-पु० स्यौहार-पु० दे० 'त्योहार' ।
(ट्राइएंगिल) तीन कोनोंका क्षेत्र, त्रिभुज A कामरूपका -वि० [सं०] (समासांतमें) रक्षा करनेवाला; तीन । प्र० एक सिद्ध पीठ; जन्मकुंडली में लग्नस्थानसे पाँचवाँ और सप्तमी विभक्तिके रूप में प्रयुक्त होनेवाला एक प्रत्यय । | नवाँ स्थान । वि०जिसमें तीन कोने हों, तिकोना ।-कोण अपा-स्त्री० [सं०] लज्जा, लाज, शर्म कुलटा,व्यभिचारिणी फल-पु० सिंघाड़ा। -कोण भवन-पु० जन्मकुंडली में स्त्री यश; कुल, वंश, जाति । * वि० लजित ।
लग्नस्थानसे पाँचवाँ और नवा घर ।-कोणमिति-स्त्री०
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