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थानु-)
(थाने)दार-पु० थानेका प्रधान अफसर, दारोगा। पु० स्थायी भाव । -दारी-स्त्री० थानेदारका पद या पेशा।
थिर-वि०स्थिर, गतिहीन, एक ही जगह अड़ा या रुका थानु*-पु० स्थाणु, शिव । -सुत-पु० गणेश ।
हुआ; अचल, अचंचल; एक ही स्थितिमें रहनेवाला । थानैत-पु० किसी स्थानका स्वामी, अधिपति या देवता।। -जीह*-पु. मछली। -थानी*-वि० एक स्थानमें थाप-स्त्री० 'थपकी ध्वनिके साथ तबले आदिपर किया गया स्थिर रहनेवाला। हथेलीका आधात; खुले हुए हाथका पूरा आघात, थप्पड़, थिरक-स्त्री० नृत्यमें चंचलताके साथ पैरोंका उठना, आदर, सम्मान; मर्यादा, गौरव; धाक; हाथ आदिका पूरा- गिरना तथा हिलना। पूरा पड़ा हुआ चिहा विश्वास, ठिकाना; शपथ । थिरकना-अ० क्रि० चंचलताके साथ पैरोंको उठाते, गिराते थापन-पु० पुनः स्थापित करने या स्थायी बनानेकी क्रिया, या हिलाते हुए नाचना; नाचने में अंगोंको हाव-भावके स्थापन; उखड़ी हुई जड़को जमानेवाला।
साथ संचालित करना; आगे-पीछे डोलना। थापना-स० क्रि० स्थापित करना; उखड़ी हुई जड़को मज-थिरकहाँ*-वि० थिरकनेवाला स्थिर । बूत करना; गोबर, गीली मिट्टी आदिको हाथसे पीटकर थिरता, थिरताई*-स्त्री० स्थिरता, ठहराव; अचंचलता; या साँचे आदिमें भरकर कोई वस्तु तैयार करना । स्त्री० स्थायित्व; शांति । स्थापना, प्रतिष्ठा।
थिरना-अ० क्रि० पानी आदि द्रव पदार्थीका हिलना रुक थापर*-स्त्री०, पु० दे० 'थप्पड़'।
जाना, क्षुब्ध या आलोडित जलका स्थिर होना; पानी में थापा-पु० गीली हल्दी, मेहँदी आदिसे बनाया हुआ हाथ- मिली मिट्टी आदिका नीचे बैठना; मैल आदिके नीचे का छापा पूजाका चंदा; चिह्न डालनेका छापा; साँचा; | जमनेसे पानीका निर्मल होना; ठहरना । राशि, ढेर नेपालियोंकी एक जाति ।
| थिरा*-स्त्री० पृथ्वी। . थापी-स्त्री० गच पीटनेकी चिपटी मुंगरी; कच्चा घड़ा पीटने-थिराना-स० कि० पानी आदि द्रव पदार्थोंका हिलना बंद
का कुम्हारोंकाची सिरेका लकड़ी या मिट्टीका एक औजार।। करना, आलोडित या क्षुब्ध जलको स्थिर होने देना थाम-स्त्री० थामनेकी त्रिया; पकड़ा अवरोध । *पु०खंभा। गंदे पानीको मैल उँटकर निर्मल होने देना। अ० क्रि० थामना-स० क्रि० अवरुद्ध करना, किसी वस्तुको गतिसे | दे० 'थिरना'। निवृत्त करना; गिरने, लुढ़कने आदिसे बचाना,रोके रहना; थीता*-पु० स्थिरता, शांति, चैन । पकड़ना, हाथमें लेना; सँभालना; किसी कार्यको अपने थीती*-स्त्री० दे० 'थीता'। जिम्मे लेना।
थीर*-वि० स्थिर। थायी*-वि० स्थायी ।-भाव-पु० दे० 'स्थायी भाव'। थुकहाई-वि० स्त्री० (ऐसी स्त्री) जिसे सभी धिक्कारें। थारी -स्त्री० 'थाली'।
थुकाई-स्त्री० थूकनेका काम । थाल-पु. काँसे या पीतलका थालीकी शकलका बड़ा बरतन। थुकाना-स० क्रि० थूकने में प्रवृत्त करना; थूकनेका काम थाला-पु० पौधे या वृक्षकी जड़के चारों ओर बनाया गया दूसरेसे कराना; किसी वस्तुको उगलवाना; निंदा कराना। क्यारीकी तरहका घेरा, आलबाल; फोड़ेकी सूजन । थुक्काफजीहत-स्त्री० धिक्कार और तिरस्कार । थालिका-स्त्री० थाला, आलबाल।
थुड़ी-स्त्री० धिक्कारसूचक शब्द, लानत । मु०-थुड़ी थाली-स्त्री. काँसे, पीतल आदिका गोलाकार छिछला | करना-धिक्कारना, थू-थू करना। -थुड़ी होना-सबकी पात्र जिसमें भोजन करते हैं, बड़ी तश्तरी । मु०--का | दृष्टिसे गिर जाना। बैगन-वह जो किसी एक मतका न हो।
थुतकारना-स० क्रि० 'थू-थू करना; किसी चीजपर बारथावर*-वि० अचल; जंगमका उलटा, स्थावर ।। | बार थूकना; घोर घृणा प्रकट करना । थाह-स्त्री० नदी, ताल, समुद्र आदिका तल या नीचेकी । थुत्कार-५० [सं०] थूकनेकी आवाजः थूकनेकी क्रिया। धरती; नदी आदिमें वह स्थान जहाँ बिना डूबे पाँव टिक थुथना-पु० दे० 'थूथन' । जाय या तल छूआ जा सके; गहराईकी सीमा, गाध; थुनी-स्त्री० दे० 'थुन्नी' । पार; सीमा; इंतिहा; किसी वस्तुकी इयत्ताका अनुमान; थुन्नी-स्त्री० खंभा, थूनी। छिपे तौरसे लगाया गया पता । वि० कम गहरा, उथला। थुपथुपी-स्त्री० थपकी; झोका । मु०-लगना-गहराईका पार मिलना। -लेना-गह
थुरना-स० क्रि० कूटना; (ला०) पीटना। राईका अंदाज लगाना; किसी वस्तुकी परिमिति या रहस्य- थरहथा-वि० छोटे हाथका; जिसकी हथेली में थोड़ी वस्तु की जाँच करना।
अँट सके-'कन दैवो सौंप्यो ससुर बहू थुरथी जानि'थाहना-स० क्रि० थाह लेना पार पानेका यत्न करना; बि०, कमखर्च। गहराईका पता लगाना; अंदाज लेना।
थुलमा-पु० एक तरहका पहाड़ी कंबल जिसमें ऊपरसे थाहरा*-वि० उथला, कम गहरा ।
बाल जमाये गये होते हैं। थिगली-स्त्री० पैबंद, चकती।
थुली-स्त्री० दलिया। थित*-वि० बैठाया ठहरा हुआ, स्थित ।
थू-पु० थूकनेका शब्द, थूकने में मुँहसे निकलनेवाला शब्द । थिति*-स्त्री० स्थिति, ठहराव बने रहनेकी क्रिया या भावः अ० घृणा और धिक्कार-सूचक शब्द, छिः, थुड़ी, लानत । पालन; दशा, परिस्थिति; स्थिरता, शांति । -भाव*- म०-थ करना-थुड़ी-थुड़ी करना, घृणा और तिरस्कार
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