________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दुःखमय-दु वि० दुःख देनेवाला; जिससे कष्ट पहुँचे ।-प्रद-वि० दे० -स्त्री० एक बातपर मन न जमना, द्विविधा; संदेह; चिंता। 'दुःखद'।-प्राय, बहुल-वि० जिसमें दुःखका आधिक्य -चित्ता-वि० दे० 'दुचित' । -ज*-पु० दे० 'द्विज' । हो, दुःखपूर्ण, कष्टसंकुल । लभ्य-वि० दुर्लभ, दुष्प्राप्य । -ज-पति*-पु० दे० 'द्विजपति'। -ज-राज*-पु० -साध्य-वि० दे० 'दुःसाध्य' । मु०-उठाना-तकलीफ । दे० 'द्विजराज'।-जन्मा*-पु० दे० द्विजन्मा'।-जातिसहना। -देना-कष्ट पहुँचाना। -पहुँचना-कष्ट होना। -पु०, स्त्री० दे० 'द्विजाति'। -जानू*-अ० दो घुटनोंके -पाना-तकलीफ सहना, झेलना । -बटाना-विपत्तिमें बल ।-जीह -पु० दे० 'द्विजिह्व'।-टूक-वि०जिसके दो साथ देना, ,सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार द्वारा दुःख हलका | टुकड़े कर दिये गये हों। -तरफा-तर्फा-वि० दोनों करना । -मानना-खिन्न होना, दुःखी होना।
ओरका; दुरंगा। -तारा-पु० सितारकी तरहका एक दुःखमय-वि० [सं०] दुःखोंसे भरा हुआ, दुःखपूर्ण । बाजा जिसमें दो तार लगे रहते हैं। -दल-पु० दे० दुःखांत-वि० [सं०] जिसका अंत दुःखमय हो; जिसका | "द्विदल'। -दिला*-वि० दे० 'दुचित'। -धारा-पु० पर्यवसान दुःखमें हो। पु० वह नाटक जिसकी समाप्ति एक प्रकारकी तलवार जिसमें दोनों ओर धार रहती है। दुःखमयी घटनासे हो; दुःखका अंत या नाश ।
-नाली-वि० स्त्री० जिसमें दो नल हों, दो नलोंवाली । दुःखार्त-वि० [सं०] दुःखी, कष्टमें पड़ा हुआ।
-पटा-पु० दे० 'दुपट्टा'। -पटी*-स्त्री० छोटा दुपट्टा । दु:खित-वि० [सं०] जिसे कष्ट हो, पीडित खिन्न । -पट्टा-पु० ओढ़नेकी चादर, उत्तरीय । -पट्टी*-स्त्री. दुखिनी-वि० स्त्री० [सं०] (वह स्त्री) जिसपर विपत्ति पड़ी। छोटा दुपट्टा । -पद-पु० दे० 'द्विपद'। -पर्दी-स्त्री० हो, दुःख में पड़ी हुई।
एक तरहकी मिर्जई जिसमें दोनों ओर पर्दै लगे रहते हैं, दुःखी(खिन्)-वि० [सं०] जिसे दुःख हो, जो कष्टमें हो, बगलबंदी । -पलिया-वि० स्त्री० दो पल्लोंवाली । स्त्री० दुःखान्वित ।
एक तरहकी टोपी। -पहर-स्त्री० दे० 'दोपहर'।-पहदुःशकुन-पु० [सं०] बुरा शकुन; अनिष्ट-सूचक लक्षण । रिया-स्त्री० एक छोटा पौधा जिसमें लाल-लाल फूल लगते दुःशासन-पु० [सं०] दुर्योधनका छोटा भाई जिसने भरी| हैं; + दोपहर, मध्याह्न ।-पहरी-स्त्री० दोपहर, मध्याह्न । सभामें द्रौपदीका केशाकर्षण किया था। वि० जिसपर -फसली-वि० रबी और खरीफ दोनोंमें पैदा होनेवाला; शासन करना कठिन हो।
संदिग्ध । -बगली-स्त्री० मालखंभकी एक कसरत । दुःशील-वि० [सं०] जो सुशील न हो, बुरे स्वभावका; -बधा-स्त्री० दे० 'दुबिधा'। -बारा-दे० 'दोबारा'। दुर्विनीत, उद्धत ।
-बिधा-स्त्री० चित्तकी किसी एक बातपर न जमनेकी दुःश्रव-पु० [सं०] काव्यमें एक दोष, श्रति कटु दोष । ।
क्रिया या भाव, निश्चयका अभाव; संशय, संदेह, अंदेशा वि० श्रुतिकटु, कर्णकटु, सुनने में अप्रिय ।
संकल्प-विकल्प, असमंजस । -भाखी,-भाषिया,दुःसह-वि० [सं०] जिसे सहना कठिन हो, असह्य । भाषी-पु. वह दो भाषाएँ जाननेवाला मध्यस्थ जो दुःसाध्य-वि० [सं०] जो कठिनतासे सिद्ध किया जा सके; उन भाषाओंके बोलनेवाले दो व्यक्तियोंकी वार्ताके अवसरजिसका करना कठिन हो, दुष्कर; असाध्य ।
पर एकको दूसरेका अभिप्राय समझाये। -मंजिला-वि० दुःसाहस-पु० [सं०] असंभव या दुष्कर कार्यकी सिद्धि के जिसमें दो मंजिलें हों। -माही-वि० दो महीनोंपर लिए किया गया साहस; अनुचित साहस; धृष्टता । होनेवाला । -मुँहा-वि० जिसके दो मुँह हों, दो मुखोंसे दुःसाहसिक-वि० [सं०] जिसके लिए साहस करना | युक्त । -रंग(गा)-वि० दो रंगोंवाला, जिसमें दो रंग ठीक न हो।
हों; दो प्रकारका, जिसमें एकरूपता न हो। -रंधा*दुःसाहसी(सिन्)-वि० [सं०] व्यर्थका साहस करनेवाला, वि० जिसमें दो रंध्र हो; जिसमें आरपार छेद हो।-रद*, अनुचित साहस करनेवाला ।
-रदाल*-पु० दे० 'द्विरद' ।-रस-पु० सहोदर भाई दुस्वा -पु० [सं०] डरावना स्वप्न बुरे फलवाला स्वप्न ।। दे० 'दोमट' । वि० दे० 'दोरसा', दे० क्रममें। -राजदास्वभाव-वि० [सं०] खोटे स्वभावका, दुष्ट, नीच, कुटिल। पु० एक ही देशमें दो राजाओंका शासन, दो अमली पु० बुरा स्वभाव ।
शासन; दोषपूर्ण शासन । -राजी*-वि० जिसमें दो दु-वि० दोका संक्षिप्त रूप जो समस्त पदोंमें पूर्वपदके रूपमें राजा राज्य करते हों, जिसपर दो राजाओंका शासन या प्रयुक्त होता है। -अनी-स्त्री० दो आनेका सिका। अधिकार हो । -रुखा-वि० दो रुखोंवाला, जिसके दोनों -आब,-आबा-पु० दो नदियोंके मध्यका भूखंड । ओर दो रंग हों। -रेफ-पु० दे० 'द्विरेफ' । -लड़ी-कूलिनी*-स्त्री०जिसके दो किनारे हों, नदी।-खंडा स्त्री० .दो लड़ोंकी माला | -लत्ती-स्त्री० घोड़े आदि -वि० दे० दो खंडोंवाला (मकान)। -गना-वि० दे० चौपायोंका पीछेके दोनों पैरोंसे मारना ।-शाला-पु०एक 'द्विगुण' । -गाड़ा-पु० दोनाली बंदूक । -गुण,-गुन*, तरहकी पशमीनेकी चादर जो दोहरी होती है और किनारे-गुना-वि० दे० 'द्विगुण' ।-घड़िया-वि० दो घड़ीका; पर बेल-बूटे होते हैं। -शाला-पोश-वि० जो दुशाला दो धड़ीके हिसाबसे निकाला हुआ। -घड़िया मुहूर्त- ओढ़े हो । -शाला-फरोश-पु० दुशाला बेचनेवाला । पु० दो-दो घड़ीके हिसाबसे निकाला हुआ मुहूर्त ।-घरी -साखा-पु० दो शाखाओंवाला समादान ।-सार*-स्त्री० दुधड़िया मुहूर्त । -चंद-वि० दुगना । -चित* पु०एक ओरसे दूसरी ओरतक जानेवाला छेद । साला--वि० जिसका मन किसी एक बातपर जमता न हो, । पु० दे० 'दुशाला'।-सूती-वि० जिसमें ताने और बाने अस्थिरचित्त; अनमना, चिंताग्रस्त । -चितई,-चिताई* दोनोंमें दोहरा सूत लगा रहे । स्त्री० इस प्रकारका मोटा
For Private and Personal Use Only