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तालीम-तितिक्षा फरतलध्वनि । मु०-पीटना-उपहास करना।
का एक आधार । -पाड़*-वि० तीन पाटोंका। -बारा तालीम-स्त्री० [अ०] शिक्षा ।
-वि० तीसरी बार । पु० तीन बार उतारी हुई शराब तालीशपत्र-पु० [सं०] एक पहाड़ी वृक्ष भुइँआँवला । तीन द्वारोंवाला कमरा । -माशी-स्त्री० तीन माशेकी तालु-पु०[सं०] ऊपरके दाँतों और कौवेके बीचका गड्ढा । एक तौल। -महानी-स्त्री० तीन नदियों, सड़कों या तालू-पु० दे० 'तालु'; दिमाग । मु०-चटकना-प्याससे गलियोंके एकमें मिलनेकी जगह । -रंगा-वि० तीन रंगोंमुँह सूखना; तेलकी कमीसे बच्चे के तालुका धंस-सा वाला। -राहा-पु० तीन रास्तोंके मिलनेकी जगह । जाना । -से जीभ न लगना-चुप न रहना, बोलते -लड़ा-वि० तीन लड़ोंका। -लड़ी-स्त्री० गले में जाना।
पहननेकी तीन लड़ियोंकी एक माला। -लोक-पु० ताल्लुक-पु० दे० 'तअल्लुक'।
दे० 'त्रिलोक'। -लोकपति-पु० विष्णु। -लोचनाताव-पु. किसी वस्तुको तपाने या पकानेके लिए पहुँचायी जानेवाली गरमी, ताप, आँच, आँच द्वारा पहुँचायी हुई | -वासा, वासी-वि० तीन दिनोंका। गरमीका मान; अहंकारयुक्त रोषका आवेश; अहंकारकी | तिआ*-स्त्री० तिया, स्त्री। झोंक; कागजका बड़ा, चौकोर, बिना कटा-फटा टुकड़ा। तिआहा-वि० जिसका तीसरा विवाह होनेको हो । पु० मु०-आना-यथेच्छ गरमी पहुँचना। -दिखाना-ऐंठ मृत्युके ४५ वें दिन होनेवाला एक श्राद्ध । या क्रोध प्रकट करना । -देना-तपाना। -पर-मौके | तिउहा-पु० दे० 'त्योहार'। पर । -बिगड़ना-कम या अधिक गरम होना। तिकड़म-पु० चतुराई, युक्ति । तावत्-अ० [सं०] तब उस अवधि या मात्रातक, तबतक । तिकड़मी-वि० तिकड़म करनेवाला । तावना -स० कि० तपाना, जलाना; संतप्त करना । तिकी-स्त्री० तीन बूटियोंवाला ताश या गंजीफेका पत्ता । तावर*-स्त्री० दे० 'तावरी' ।
तिक्ख-वि० तीक्ष्ण, तीखा; तेज, चालाक । तावरा-धु० ताप, गरमी; धाम ।
तिक्त-वि० [सं०] तीता, जो स्वादमें नीम या गुड़चके तावरी-स्त्री० ताप; ज्वर; धूप; मूर्छा, सिर चकराना। | समान हो; सुगंधयुक्त। तावान-पु० [फा०] हरजाना; जुरमाना, दंड । तिक्ष*-वि० तीक्ष्ण, तेज, तीखा। तावीज़-पु० [अ०] कागज या भोजपत्रपर अंकित मंत्र या तिक्षता*-स्त्री० तेजी । चक्र आदि जिसे सोने-चाँदी आदिके संपुट में बंद कर गले, | तिखाई-स्त्री० तीक्ष्णता, तेजी। बाँह, कमर आदिमें धारण करते हैं; सोने-चांदी आदिका तिच्छ-वि० तीक्ष्ण । विशेष आकारका एक आभूषण ।
तिच्छन-वि. तीक्ष्ण । ताश-पु० खेलनेके कामका मोटे कागजका चौकोर टुकड़ा तिजरा-पु० एक दिन नागा देकर आनेवाला ज्वर । जिसपर पान, ईट आदि रंगोंके छापे हों; ताशका खेल; तिजहरिया, तिजहरी-स्त्री० अपराल, दिनका तीसरा दफ्तीका टुकड़ा जिसपर तागा लपेटा हो।
पहर । ताशा-पु० चमड़ेसे मढ़ा चौड़े मुँहका एक बाजा जो गले में तिजारत-स्त्री० [अ०] व्यापार, वाणिज्य, व्यवसाय । लटकाकर लकड़ीसे बजाया जाता है।
तिजारी-स्त्री० दे० 'तिजरा'। तास*-पु० एक तरहका कपड़ा।
तिजिल-पु० [सं०] चंद्रमा राक्षस । तासन, तासों*-सर्व० उससे ।
तिजोरी-स्त्री० लोहेकी आलमारी जिसमें रुपये,गहने आदि तासीर-स्त्री० [अ०] असर करना; प्रभाव, गुण, असर। | रखे जाते हैं। तासु*-सर्व उसका।
तिडी-स्त्री० दे० 'तिक्की'। -बिड़ी-वि० अस्त-व्यस्त, तास्कर्य-पु० [सं०] चोरी।
छितराया हुआ। मु०-करना-गायब करना। ताहम-अ० [फा०] तथापि ।
तित-अ० वहाँ, तहाँ; उधर । ताहि, ताही*-सर्व० उसे, उसको ।
तितना*-वि० उतना। तितिडिका, तितिडी-स्त्री० [सं०] इमली।
तितर-बितर-वि० इधर-उधर फैला हुआ, बिखरा हुआ, तितिलि(ली)का, तितिली-स्त्री० [सं०] इमली। विकीर्ण; विघटित । तिंदुक, तिंदुल-पु० [सं०] तेंदूका पेड़।
तितली-स्त्री० सुंदर पंखोंवाला एक प्रसिद्ध फतिंगा; एक ति-स्त्री० तिया। सर्व० वे, वह । वि० तीन (समासमें | घासः (ला०) बहुत तड़क-भड़कसे रहनेवाली स्त्री। व्यवहृत)।-कोना-वि० तिकोना । कोना-वि० जिसमें तितलौआ-पु० कड़ए स्वादका कडू । तीन कोने हों, त्रिभुजाकार । पु० समोसा । -कोनिया- | तितलौकी-स्त्री० दे० 'तितलौआ । वि० दे० 'तिकोना' । -खटी*-स्त्री० तिपाई; तीन पैरों- | तितिंबा-म० ढोंग, ढकोसला; परिशिष्ट । वाला काठका आसन। -खटा-वि० जिसमें तीन खंट तितिक्ष-वि० [सं०] जो गरमी-सरदी आदि द्वंद्वोंकी सहे, हों, तिकोना। -गुना-वि० तीन गुना, जो आकार या| सहिष्णु, सहनशील । पु० एक ऋषि ।। परिमाणमें दो बार और अधिक हो। -तारा-पु० तीन तितिक्षा-स्त्री० [सं०] सरदी-गरमी आदि द्वंद्वोंको सहनेकी तारोंवाला एक बाजा । -दरी-स्त्री० तीन दरवाजोंवाला क्रिया या शक्ति; बिना प्रतीकार या विकलताके सभी कमरा । -पाई-स्त्री० चौकी जैसा लकड़ीका तीन पायों- दुःखोंको सहना, सहनशीलता; क्षमा।
२१-क
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