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तिलंगा - पु० अंगरेजी फौजका हिंदुस्तानी सिपाही । तिलंगाना - पु० तैलंग देश |
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तिराना - स० क्रि० पानीपर तैराना या ठहराना; पार करना; उद्धार करना "।
तिरासी - वि० अस्सी और तीन । पु० तिरासीकी संख्या, ८३ । तिरिन* - पु० दे० 'तृण' । तिरिया * - स्त्री० स्त्री, औरत। - श्चरित्तर- ५० स्त्रीकी पुरुषको ठगने या बेवकूफ बनानेकी चतुराई ।
तिरीछा* - वि० दे० 'तिरछा' । तिरंदा -५० समुद्र में तैरता हुआ पीपा जो खतरे की सूचनाके लिए लगाया जाता है; बंसीकी डोरीमें लगी हुई छोटी लकड़ी जो उतराती रहती है; उतरानेवाला काठ या इस तरहकी कोई चीज जिसके सहारे नदी आदि पार की जाय । तिरोधान, तिरोभाव- पु० [सं०] तिरोहित या दृष्टिसे ओझल होने या करनेकी क्रिया, अंतर्धान, लोप । तिरोहित-वि० [सं०] अंतर्हित, लुप्त, ओझल, गुप्त, आच्छादित, ढका हुआ । तिरौंछा* - वि० तिरछा ।
तिरौंदा - पु० दे० 'तिरे दा' ।
तिर्यकू (च्) - वि० [सं०] तिरछा; आड़ा; वक्र । अ० तापूर्वक तिरछे; आड़े । पु० पशु पक्षी । तिर्यग्गामी (मिनू ) - पु० [सं०] केवड़ा तिर्यग्योनि - स्त्री० [सं०] पशु-पक्षी; उनकी योनि । तिर्यग रेखा - स्त्री० [सं०] (ट्रांसवर्सल) वह रेखा जो दो या तिलवा- पु० तिलका लड्डू | अधिक दी हुई रेखाओंको काटती है ।
तिराना- तिष्ठना
चंदन, केसर या रोली आदिसे ललाटपर बनाया हुआ विशेष प्रकारका चिह्न, टीका; सिंहासनारूढ़ होते समय युवराजके मस्तकपर लगाया जानेवाला टीका; वसंत में फूलनेवाला एक वृक्ष; तिलका पौधा; किसी कुल या समुदायका सर्वश्रेष्ठ पुरुष (समासांत में ); विवाह संबंधी एक रस्म जिसमें कन्यापक्षके लोग वरके मस्तकपर टीका लगाते और कुछ द्रव्य आदि चढ़ाते हैं; स्त्रियोंका एक शिरोभूषण; एक रोग; शरीरपरका तिल; ध्रुवकका एक भेद जिसमें प्रत्येक चरण में पचीस अक्षर होते हैं; सूथनके ऊपर पहनने का बिना आस्तीनका ढीला जनाना कुरता । - हार - पु० [हिं०] तिलक चढ़ानेके लिए भेजा जानेवाला व्यक्ति । तिलकना - अ० क्रि० गीली मिट्टी या जमीनका सूखकर फटना; फिसलना ।
तिलछना - अ० क्रि० व्याकुल होना, छटपटाना 1 तिलदानी - स्त्री० सूई, अंगुरताना आदि रखनेकी दर्जियोंकी छोटी थैली ।
तिलमिल - स्त्री० तिलमिलाहट, चकाचौंध | तिलमिलाना - अ० क्रि० बेचैन होना; चौंधियाना । तिलमिलाहट - स्त्री० तिलमिलाने की क्रिया या भाव, बेचैनी । तिलमिली - स्त्री० तिलमिलाहट । तिलचट - पु० तिलपट्टी |
तिलस्म - पु० दे० 'तिलिस्म' |
तिलहन - पु० फसलके रूपमें बोये जानेवाले तेलके पौधे । तिलांजलि - स्त्री० [सं०] और्ध्वदेहिक कृत्यका एक अंग जिसमें हिंदू मृतक के नाम तिलमिश्रित जलकी अंजलि देते हैं । तिलांबु-पु० [सं०] दे० 'तिलांजलि' । तिला पु० नपुंसकता नष्ट करनेवाला एक तेल | तिलान- पु० दे० 'तलाक' । तिलान्न- पु० [सं०] तिलकी खिचड़ी । तिलिस्म - पु० [अ०] जादू; इंद्रजाल; ऐंद्रजालिक रचना; गाड़े हुए धन आदिपर बनायी हुई सर्प आदिकी भयावनी आकृति; जादूकी रेखा या चिह्न । मु० - तोड़ना - जादू या करामातका भेद खोल देना ।
तिलिस्मी - वि० जिसमें तिलिस्मके चमत्कारका वर्णन हो; तिलिस्म-संबंधी ।
तिलोत्तमा - स्त्री० [सं०] एक अप्सरा जिसे पाने के लिए सुंद और उपसुंद आपस में लड़ गरे थे । तिलोदक-पु० [सं०] दे० 'तिलांजलि' । तिलोरी* - स्त्री० एक प्रकारकी मैना; तिलौरी । तिलौंछना-स० क्रि० तेल लगाकर चिकना करना । तिलौंछा - वि० तेलकेसे स्वादवाला; चिकना । तिलौरी - स्त्री० तिल मिलाकर बनायी हुई उर्द या मूँगकी बरी । तिल्ला - पु० कलाबत्तू आदिका काम; दुपट्टा, पगड़ी आदिका वह भाग जिसपर कलाबत्तू आदिका काम हो । तिल्ली - स्त्री० प्लीहा; तिल । तिवा (डी) री - पु० ब्राह्मणोंका एक भेद, त्रिपाठी । तिशना- पु० ताना । * स्त्री० तृष्णा । तिष्ट* -- वि० बनाया हुआ, रचित ।
तिलंगी - स्त्री० गुड्डी, पतंग । पु० तिलंगानाका निवासी । तिल - पु० [सं०] काले या सफेद रंगका एक छोटे दानेका तेलहन, इसका पौधा; तिलके आकारका काला दाग जो शरीरपर होता है; तिलके बराबर एक गोदना; किसी पदार्थका बहुत छोटा टुकड़ा या का। -किट्ट पु० तिलकी खली । -कुट-पु० [हिं०] तिल और चीनी या गुड़के मेल से बननेवाली एक मिठाई । -घटा - पु० [हिं०] एक प्रकारका झींगुर । चाँवरी* - स्त्री० तिल और चावल की खिचड़ी। - तंडुल- पु० तिल और चावल; ऐसा संयोग जिसमें मिलनेवालोंका अस्तित्व स्पष्टतः दिखाई | दे । - धेनु - स्त्री० तिलकी बनी गाय जो दानरूपमें दी जाय । - पट्टी, - पपड़ी - स्त्री० [हिं०] खाँड़ या गुड़की चाशनी में पगे तिलकी बनी रोटी जैसी वस्तु । - पीड- पु० तिल पेरनेवाला, तेली । - पुष्पक-पु० तिलका फूल; बहेड़ेका पेड़ नासिका -भर- अ० थोड़ासा भी, रंच मात्र | मु० का ताड़ करना छोटीसी बातको बड़ा रूप देना । की ओट पहाड़-छोटी बातके अंदर बहुत बड़ी बात होना । -तिल करके थोड़ा-थोड़ा करके । - धरनेकी जगह न होना - थोड़ासा भी स्थान रिक्त न होना, ठसाठस भरा होना। (तिलों) में तेल न होनाशील-संकोच न होना, मुरौवत न होना । तिल - पु० पुतली के बीचका बिंदु; * क्षण - 'सेही पिरीत अनुराग वखानइत तिले तिले नूतन होई' - विद्यापति । -भर- अ० थोड़ी देर ।
तिलक - पु० [सं०] धार्मिकता या शोभाकी दृष्टिसे घिसे हुए | तिष्ठना* - अ० क्रि० टिकना, ठहरना ।
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