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जहरी - जाइ
और कुछ दूसरे विषोंको भी सोख लेनेका गुण होता है । मु० - उगलना - लगनेवाली बात कहना, जली-कटी कहना । - कर देना - (खानेकी चीजको ) इतना कड़वा, तीता कर देना कि निगला न जा सके; ऐसी कटु, कठोर या दुःखद बात कह देना कि भोजनका स्वाद-सुख जाता रहे । - का घूँट - अति अप्रिय, असह्य बात । -का घूँट पीना, - का घूँट पीकर रह जाना-विवशता के कारण गुस्सेको अंदर ही दबा रखना, असह्यको सह लेना । -की पुड़िया- भारी उपद्रवी, फसादी । (किसी बातपर ) - खाना- किसी बातसे खिन्न, दुःखी होकर आत्महत्याका यत्न करना । - मारना- जहर का असर दूर करना । - में बुझाना - तीर-तलवार आदिको आगमें लाल करके विषमिश्रित जलमें बुझाना जिससे उनसे घायल होनेवालेके शरीरमें विष प्रवेश कर जाय; बातको मर्मभेदी, असह्य बना देना । - होना- किसी विशेष | खाद्य पदार्थ या भोजनका अखाद्य हो जाना, घोंटा निगला न जा सकना ।
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जहरी, जहरीला - वि० जिसमें जहर हो, विषयुक्त ।
जहल * - स्त्री० गरमी, ताप ।
जहल्लक्षणा - स्त्री० [सं०] दे० 'जहत्स्वार्था' ।
जहाँ - अ० जिस जगह, जिस स्थानपर । - तहाँ - अ० इधर-उधर; अनेक स्थानोंपर का तहाँ-जहाँ था
वहीं, अपनी जगहपर |
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जहाँ - पु० [फा०] दे० 'जहान' (केवल समास में व्यवहृत ।) -गर्द - वि० घुमक्कड़, विश्वपर्यटक । -गर्दी - स्त्री० विश्वभ्रमण । - गीर - वि० दुनियापर राज्य करनेवाला, विश्व विजयी | पु० भारतका चौथा मुगल सम्राट्, अकबरका पुत्र । - गीरी - वि० जहाँगीरका, जहाँगीरसे संबद्ध । स्त्री० विश्वविजय; भूमंडलका राजत्व; कलाईपर पहनने का एक जड़ाऊ गहना । —दीदा - वि० जो दुनिया देखे हो, अनुभवी । - पनाह - वि० दुनियाकी रक्षा करनेवाला, जगत्का आश्रयरूप | पु० बादशाह, सम्राट् ।
जहाज़-पु० [अ०] बड़ी और समुद्र में चलने या चल सकनेवाली नाव, जलयान; पोत । -घाट- पु० ( ह्वार्फ ) माल उतारने, चढ़ाने के लिए संमुद्रतटके पास बनाया गया लकड़ी, पत्थर आदिका घाट । -रानी - स्त्री० जहाज चलाना; जहाज चलानेका काम । जहाज़ी - वि० [अ०] जहाजका; जहाजसे होनेवाला (कारबार) | पु० जहाज से यात्रा करनेवाला; जहाजका खलासी । - डाकू - पु० जहाजों पर डाके डालनेवाला, जलदस्यु जहान - पु० [फा०] दुनिया, जगत्, लोक ! - आरा ( जहानारा ) - वि० दुनियाको सजानेवाला, सृष्टिकी शोभा, शृंगार । - आरा बेगम - स्त्री० शाहजहॉकी बड़ी बेटी जो उसकी मृत्यु तक उसके साथ कैदखाने में रही । जहालत - स्त्री० [अ०] अज्ञान, मूर्खता, जाहिलपन । जहिया * - अ० जब |
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जहीं * - अ० ज्योंही; जिसी स्थानपर, जहाँ ही । जहूर - पु० दे० 'जुहूर' । 'जहेज-पु० [अ०] वह धन जो कन्या (या वर ) को विवाह - के समय उसके माँ-बाप से मिले, दहेज |
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जह्न - पु० [सं०] विष्णु; एक राजर्षि जिन्होंने, पौराणिक कथा के अनुसार, भगीरथके गंगा लाते समय उसे पी लिया और उनकी विनतीपर फिर कानकी राह निकाल दिया था। - कन्या, - तनया - स्त्री० गंगा । जाँ - स्त्री० [फा०] दे० 'जान' (समास भी) । जाँउनि* - स्त्री० जामुन ।
जाँगर - पु० मटर, उरद आदिका वह डंठल जिससे दाना निकाल लिया गया हो; श्रमशक्ति, श्रमशीलता; पौरुष । - चोर - वि०, पु० जोंगर चोरानेवाला । मु० - थकनाशरीरका थकना, शिथिल होना; पौरुषका जवाब देना । जाँगरा- पु० भाट, बंदी ।
जांगल - वि० [सं०] जंगलका, जंगली | पु० वह प्रदेश जहाँ पानी कम बरसे, धूप-गरमी अधिक कड़ी हो । जाँगलू - वि० दे० 'जंगली' |
जाँघ - स्त्री० पाँवका कमर और घुटनेके बीचका भाग, ऊरु | जाँघिया - पु० एक तरहका लँगोट; घुटनों तक का पाजामा | जाँच - स्त्री० जाँचनेकी क्रिया, परख, परीक्षा, छान-बीन, तहकीकात | -पड़ताल - स्त्री० छानवीन, तहकीकात । जाँचक* - पु० दे० 'याचक' । जाँचकता* - स्त्री० माँगनेका काम ।
जाँचना-स० क्रि० किसी बात के सही-गलत, खरी-खोटी होने का पता लगाना, परख करना; * दे० 'जाचना' | जाँजरा * - वि० जीर्ण, जर्जर |
जाँझ, जाँझा - पु० जोरकी हवा के साथ होनेवाली वर्षा, तूफानी वर्षा ।
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जाँत, जाँता - पु० आटा पीसने की चक्की | जांतव- वि० [सं०] जंतु-संबंधी, जंतुओं से प्राप्त, उत्पन्न । जाँपना* - स० क्रि० दबाना, चाँपना | जांब*-५० जामुनका फल | जांबवंत - ५० दे० 'जांबवान्' ।
जांबवती - स्त्री० [सं०] जांबवान्की कन्या जिसका विवाह कृष्ण से हुआ था; नागदमनी लता । जांबवान् (वत्) - पु० [सं०] सुग्रीवका मंत्री जिससे लंकाविजय में रामचंद्र को बहुत सहायता मिली । जांबील - पु० [सं०] घुटने के जोड़परकी गोल चिपटी हड्डी; जँवीरी नीबू |
जांबुक - वि० [सं०] शृगाल-संबंधी । जांबुमाली (लिन् ) - पु० [सं०] लंकाका एक राक्षस जो अशोकवाटिका उजाड़ते समय हनूमान् के हाथों मारा गया । जांबुवान् (वत्) - पु० [सं०] दे० 'जांबवान्' । जांबू* - पु० दे० 'जंबू' । जाँवर * - पु० गमन, जाना ।
जा - * सर्व० जिस । स्त्री० [सं०] जाति; देवरानी; माता; [फा० ] जगह, स्थान; मौका । वि० उचित, मुनासिब । - नमाज़ - स्त्री० वह कपड़ा जिसे बिछाकर नमाज पढ़ते हैं, मुसल्ला । -नशीन - पु० किसीके स्थान, पदका अधिकारी; उत्तराधिकारी । - बेजा - वि० उचित-अनुचित, बुरा भला । अ० मौके बेमौके, ठिकाने बेठिकाने । (-मार बैठना, हाथ छोड़ देना ।) जाइ* - वि० वृथा, बेकार ।
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