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पालक-घुटकी घालक*-वि० मारनेवाला; नाश करनेवाला ।
घिरी-स्त्री० (पुली) (लकड़ी या) लोहेका बना हुआ पहिया घालकता*-स्त्री० विनाशका काम ।
जिसका घेरा नालीदार होता है और जो सुगमतापूर्वक घालना*-म० क्रि० नाश करना; बिगाड़ना; फेंकना; प्रहार स्वतंत्रतासे घूम सकता है, घिरनी।
करना, मारना; (हथियार) डालना, रखना करना। घिवा-पु० घी। घाल मेल-वि० गड-मड, खस्त-मस्त (करना, होना)। धिसघिस-स्त्री० देर, ढिलाई; अनिश्चय । घालिका, घालिनी*-स्त्री० नाश करनेवाली, धातिनी। घिसना-स० क्रि० किसी चीजको किसी कड़ी चीजपर इस घाव-पु० चोट, आघात; व्रण, क्षत । मु०-पर नमक तरह रगड़ना कि उसका कुछ अंश कटता जाय (पत्थर, छिड़कना-दुःखकी हालतमें कष्ट देना।
चंदन घिसना) । अ० कि० रगड़से कटना, छीजना । घावरिया -पु० जर्राह, घावका इलाज करनेवाला । घिसपिसा-स्त्री०धिसघिस; सट्टा-बट्टा । घास-स्त्री० [सं०] खाद्य पदार्थ; मैदान में उगनेवाला दूबकी घिसवाना-सक्रि० 'घिसना'का प्रेरणार्थक । जातिका चौपायोंका एक चारा, तृण । -स्थान-पु० चरा- घिसाई-स्त्री० घिसनेकी क्रिया या भाव; घिसनेकी उजरत; गाह । -पात,-फूस-पु० [हिं०] खर-पतवारकूड़ा- घिसनेसे नष्ट हुआ अंश । करकट । मु०-काटना-खोदना, छीलना-तुच्छ, घिसाना-स० क्रि० "घिसना'का प्रेरणार्थक । निरर्थक काम करना। -खाना-पशुतुल्य होना; घोर घिसाव-पु०, घिसावट-स्त्री० घिसनेका भाव, रगड़, छीज। मूर्खताका परिचय देना।
घिस्सा-पु० रगड़ एक पतंगकी डोरसे दूसरे पतंगकी डोरघासलेट-पु० मिट्टीका तेल; तुच्छ वस्तु ।
की रगड़ धक्का; कुश्तीमें प्रतिस्पद्धीकी गरदनपर कुहनी घासलेटी-वि० निकृष्ट; निकम्मा; गंदा ।
और कलाईके बीचकी हड़ीकी रगड़, रंदा। घासी*-स्त्री० घास।
घींच*-स्त्री० गरदन । घाह*-पु० दे० 'घाई'।
घी-पु० दुधकी चिकनाई जो उससे अलग कर ली गयी हो। धिक्ष, घिउ -पु० घी।
गलाया हुआ मक्खन । मु०-के दिये (चिराग़)जलनाघिग्घी-स्त्री० अधिक भयके कारण मुँहसे बोल न निकलना; मुराद पूरी होना, बहुत आनंद होना।-के दिये(चिराग) रोते-रोते साँस रुकने लगना, हिचकी (बँधना)।
जलाना-मनोकामना पूरी होनेपर खुशी मनाना, उत्सव घिधियाना-अ० क्रि० रोते हुए बिनती करना,गिड़गिड़ाना। मनाना। घिचपिच-स्त्री० थोड़ी जगह में अधिक चीजों, आदमियोका घीकुआ(वा)र-पु० ग्वारपाठा, घृतकुमारी।
जमा हो जाना, भीड़; जगहकी कमी; आगा-पीछा। वि० घीया-पु० दे० 'घिया। -पत्थर-पु० गोरापत्थर । मिला-जुला; अस्पष्ट, गिचपिच (लिखावट)।
घीसा--पु० रगड़। घिचपिचाना-अ० क्रि० आगा-पीछा करना; सिटपिटाना। घुइँयाँ-स्त्री० अरुई नामक कन्द । घिन-स्त्री० घृणा, नफरत ।
घुघची-स्त्री० एक बेल; उसका लाल या सफेद बीज,गुंजा। घिनाना-अ० क्रि० घृणा करना।
घुघनी-स्त्री०उबाला या भिगोकर तला हुआ चना आदि । घिनौना-वि० घिन उपजानेवाला, घृणित ।
धुंघरारा*-वि० दे० 'धुंघराला'। घिनी-स्त्री० दे० 'गिन्नी'; दे० 'घिरनी'।
घुघराला-वि० बल खाया हुआ, छल्लेदार (केश), कुंचित । घिया-पु० घी।
धुंघरू-पु० चाँदी, पीतल आदिका गोल, पोला दाना घियाँड़ा-पु० घी रखनेका मिट्टीका बरतन, घृतपात्र । जिसके भीतर प्रायः कंकड़ी भरी होती है और हिलनेसे धिया-पु० कद्दू, लौकी; नेनुआँ ।-कश-पु० कद्कश । | बजता है, मंजीर; ऐसे दानोंका बना हुआ पाँवोंमें पहनने
-तरोई,-तुरई,-तोरई,-तोरी-स्त्री० एक बेल जिसके का गहना, धटका । -दार-वि० जिसमें घु घरू लगे हों। फल तरकारीके काम आते हैं; नेनुआँ; सतपुतिया । | घुघ(घ)वारा-वि० दे० 'धुंघराला'। घिरत, घिरित*-पु० दे० 'घृत' ।।
धुंडी-स्त्री० कपड़ेकी गोली जिससे बटनका काम लेते है। घिरना-अ० क्रि० घेरे में आना,घेरा जाना; छाना,फैलना। कड़े, जोशन आदिकी गुहनमें छोरपर बनी हुई गोल,नोकघिरनी-स्त्री० कुएँ से पानी खींचनेकी चरखी रस्सी बटनेकी | दार गाँठ; एक घास । -दार-वि० जिसमें धुंडी बनी हो।
चरखी; एक जलपक्षी; लोटन कबूतर । -दार विमान-घुआ-पु० दे० 'धूआ'। पु० (जाइरोप्लेन ) ऊपरकी ओर लगी हुई घिरनियोंकी घुइयाँ-स्त्री० एक शाक, अरुई । सहायतासे आकाशमें उठनेवाला विमान ।
घुग्धी-स्त्री० धोघी; पंडुक । घिरवाना-स० क्रि० घेरनेका काम कराना; एकत्र कराना। घुग्ध-पु० उल्लू । घिराई-स्त्री० घेरनेकी क्रिया; पशुओंको चरानेका काम या घुघरी, घुघुरी-स्त्री० धुधनी। उसकी मजदूरी।
घुघुआ-पु० दे० 'धुग्धू'। घिराव-पु० घेरनेकी क्रिया या भाव; घेरा।
घुघुआना-अ०क्रि० उल्लूका बोलना उल्लूकी तरह बोलना; घिरावना*-स० क्रि० दे० 'घिरवाना।
बिल्लीकी तरह गुर्राना। घिरिनपरेवा-पु० गिरहबाज कबूतर ।
घुटकना -स० क्रि० घुट-घूट करके पीना निगल जाना। घिरिया-स्त्री० शिकार घेरनेके लिए बनाया हुआ आदमियों- घुटकी-स्त्री० गलेकी वह नली जिससे होकर आहार पेट में का घेरा।
। पहुँचता है। मु०-लगना-प्राणका कंठगत होना ।
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