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चिथड़ा-पु० फटा पुराना कपड़ा, गूदड़, कपड़ेकी धज्जी । चिथाड़ना - सु० क्रि० फाड़ना, चिथड़ा कर देना; (किसी के
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चित्रा - स्त्री० [सं०] २७ नक्षत्रोंमेंसे एक; चितकबरी गाय; ककड़ी; खीरा; मजीठ; वायविडंग; मूषिकपर्णी; एक अप्सरा एक रागिनी; एक मूर्च्छना; एक सर्प ; सुभद्रा । चित्राधार - पु० [सं०] चित्रपट ( एलबम ) चित्र, फोटो आदि सुरक्षित रूपसे रखनेकी किताब या मोटे पन्नों की खोली । चित्रालय - पु० [सं०] चित्रसंग्रहालय, चित्रशाला । चित्रिणी - स्त्री० [सं०] कामशास्त्रमें माने हुए स्त्रियों के पद्मिनी आदि चार भेदोंमेंसे एक ( यह कलानिपुण और बनावसिंगारकी शौकीन होती है ) ।
चित्रित - वि० [सं०] जिसका चित्र खींचा गया हो, उरेहा हुआ; चित्रयुक्त; चितकबरा ।
चित्रोत्तर - पु० [सं०] एक शब्दालंकार जिसमें प्रश्न के शब्दों चिमटी - स्त्री० छोटा चिमटा; वह आला जिससे छोटी चीज में ही उसका उत्तर होता है ।
पकड़ने, उठाने आदिका काम लेते हैं; चुटकी; चिकोटी | चिमड़ा - वि० दे० 'चीमड़' । - पन- पु० ( टेनेसिटी ) ठोसके कणोंका परस्पर इस तरह चिपके रहना कि उन्हें पृथक् करनेके लिए बड़ी शक्तिकी आवश्यकता पड़े । चिमनी - स्त्री० [अ०] इंजन आदिका धुआँ या भाप निकलनेके लिए बनी हुई नली जैसी वस्तु; धुआँ निकालने के लिए घर की छत में छेद करके बनायी हुई लोहे, सीमेंट आदिकी नली; लंपके ऊपर लगी हुई शीशेकी नली जिससे लंपकी लौको हवा मिलती और उसका धुआँ बाहर निकलता है ।
पक्षका) हर पहलू से खंडन करना; लथेड़ना, जलील करना । चिदाकाश-पु० [सं०] शुद्ध ज्ञानस्वरूप ब्रह्म । चिदाभास - पु० [सं०] चित्स्वरूप परब्रह्मका अंतःकरण में प्रतिबिंबित आभास, जीव ।
चिद्रूप - वि० [सं०] शुद्ध चैतन्यरूप, चिन्मय, ज्ञानी । पु०
परब्रह्म ।
चिद्विलास - पु० [सं०] चित्स्वरूप परमेश्वरकी माया; आत्मा या ब्रह्मस्वरूपमें रमण ।
चिनक- स्त्री० जलन के साथ होनेवाली पीड़ा; सूजाक के रोग
में मूत्रनली में होनेवाली जलन और पीड़ा । चिनगटा* - पु० चिथड़ा |
चिनगारी - स्त्री० जलते हुए कोयले आदिका बहुत छोटा टुकड़ा, अग्निकण, स्फुल्लिंग | मु०-छोड़ना - झगड़ा लगानेवाली बात कहना ।
चिनगी * - स्त्री० दे० 'चिनगारी' |
चिनना * - स० क्रि० दीवार उठाना; चुनना । चिनाना * - स० क्रि० चुनवाना; दीवार उठवाना | चिनाब - स्त्री० पंजाबकी पाँच प्रधान नदियों में से एक, चंद्रभागा ।
चिनिया - वि० चीनी के रंगका, सफेद; चीनी जैसे स्वादका मीठा; चीन देशका | केला - पु० बंगाल में होनेवाला एक मीठा केला । - बादाम- पु० मूँगफली । चिन्मय - वि० [सं०] शुद्ध ज्ञानमय, ज्ञानस्वरूप | पु० परब्रह्म । चिन्मात्र - पु० [सं०] शुद्ध चैतन्य । वि० शुद्ध ज्ञानस्वरूप । चिन्ह - पु० दे० 'चिह्न' |
चिन्हवाना, चिन्हाना स० क्रि० पहचान कराना । चिन्हानी - स्त्री० चिह्न, पहचान; यादगार । चिन्हारि, चिन्हारी* - स्त्री० जान-पहचान । चिपकना - अ० क्रि० किसी लसदार चीजके योगसे एक
चीका दूसरी से जुड़ना; लिपटना; किसी काममें लगना । चिपकाना - स० क्रि० किसी लसदार चीजके योगसे एक
चीजको दूसरी से जोड़ना, साटना; लिपटाना । चिपचिपा - वि० लसदार, चिपकनेवाला । चिपचिपाना - अ० क्रि० लसदार होना; लगना । चिपचिपाहट - स्त्री० चिपचिपा होना, लस ।
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चित्रा - चिर
चिपटना-अ० क्रि० दे० 'चिमटना' ।
चिपटा - वि० जो उभरा हुआ न हो, बैठा या धँसा हुआ । चिपड़ा - वि० जिसकी आँख में कीचड़ भरा हो । चिपड़ी, चिपरी - स्त्री० उपली । चिप्पड़-पु० लकड़ीको छाल आदिका टुकड़ा । चिप्पी - स्त्री०लकड़ी आदिका छोटा चिपटा टुकड़ा; उपली; कागजका छोटा टुकड़ा जो कहीं चिपका दिया जाय । : चिबु, चिबुक - स्त्री० [सं०] ठुड्डी | चिमटना - अ० क्रि० चिपकना; लिपटना; पिंड़ न छोड़ना । चिमटा - पु० जलता कोयला आदि पकड़नेका आला । चिमटाना - स० क्रि० चिपकाना; लिपटाना |
चिरंजीव - अ० [सं०] चिरजीवी हो, बहुत दिन जियो (आशीर्वाद); [हिं०] बेटा, पुत्र । वि० दे० 'चिरजीवी' । चिरंजीवी (विन्) - वि० [सं०] चिरजीवी | चिरंतन - वि० [सं०] बहुत दिनोंका, पुरातन । चिर- वि० [सं०] जो बहुत दिनोंसे हो, दीर्घकालीन, पुरान जो बहुत दिन बना रहे, दीर्घकालस्थायी । अ० बहुत दिन बहुत दिनोंतक, सदा । -कांक्षित - वि० जिसकी चाह, कामना बहुत दिनोंसे रही हो । -कालिक, - कालीन - वि० बहुत दिनका, पुराना; जीर्ण (रोग) | 1.-जीवी (विन्) - वि० बहुत दिन जीनेवाला, जिसकी
आयु लंबी हो; अमर । पु० विष्णु, कौवा, हनूमान् मार्कडेय आदि । - निद्रा - स्त्री० महानिद्रा, मृत्यु | - नूतन - वि० जो सदा नया बना रहे, चिरनवीन । - परिचित - वि० जिसे बहुत दिनोंसे जानते - पहचानते ह्रीं । - पाकी ( किन् ) - वि० देर में पकनेवाला । - पोषित - वि० जिसका बहुत दिनोंतक धारण, पोषण किया गया हो, चिरकांक्षित । प्रचलित - वि० जो बहुत दिनोंसे चला आ रहा हो, पुराना प्रसिद्ध - वि० जो बहुत दिनोंसे प्रसिद्ध हो । मान्य, - सम्मानित - वि० ( टाइम आनई) बहुत दिनोंसे जिसकी मान्यता रही हो, जिसका सम्मान होता आया हो। - रोगी (गिन् )वि० जो बहुत दिनोंसे बीमार हो; जो सदा रोगी रहे । - विस्मृत - वि० जो बहुत दिनोंसे भूल गया हो या भुला दिया गया हो। शत्रु - वि० पुराना दुश्मन, जिसके साथ बहुत दिनोंका वैर हो । -शांति - स्त्री० दीर्घकालव्यापी शांति; स्थायी शांति, मुक्ति । - संगी (गिन् ) - 'वि० सदाका साथी, जन्मसंगी । - स्थायी (यिन् ) - वि० बहुत दिनों तक बना रहनेवाला, टिकाऊ । -स्मरणीय
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