________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
चौ-चौक
हैं; देहली। (मु० चौखटन झाँकना - (किसी के घर) कभी न आना 1) - खटा - पु० लकड़ीका ढाँचा जिसमें तसवीर या आईना जड़ा जाय; चौखट । - खना- वि० चार खंडोंवाला ( मकान ) । - खानि* - स्त्री० चार प्रकारकी सृष्टि, अंडज, पिंडज आदि चार प्रकार के जीव । - खूँट- अ० चारों ओर । - खूँटा - वि० चौकोना, चौकोर । - गड्डा - पु० वह स्थान जहाँ चार गाँवोंकी सीमाएँ या चार रास्ते मिलते हों । -गिर्द - अ० चारों ओर । - गुन* - वि० दे० 'चौगुना' । - गुना - वि० किसी वस्तुका चार गुना, चार बार उसके बराबर, चतुर्गुण । -गून* - वि० दे० 'चौगुना' । - गोड़ा - वि० चार पैरोंवाला । पु० पशु; खरहा। - गोड़िया - स्त्री० चार पायोंकी ऊँची डंडेदार तिपाई जिसपर चढ़कर ऊँचे स्थानोंकी सफाई, सफेदी आदि की जाती है। -गोशा- वि० चार कोनोंवाला, चतुष्कोण । - गोशिया - वि० चौगोशा । स्त्री० चार तिकोने टुकड़ोंकी बनी हुई टोपी । - घड़ा - पु० चार खानोंवाला डिब्बा जिसमें लौंग, इलायची आदि रखते हैं; मसाला रखनेका चार खानोंका बरतन; मिट्टीका बना खिलौना जिसमें एक दूसरी से जुड़ी चार कुल्हियाँ होती हैं; चार बीड़े पानकी खोंगी । - घड़िया - वि० चार घड़ियोंका । स्त्री० चार पायोंकी ऊँची चौकी, चौगोड़िया । -घड़िया मुहूर्त - पु०जल्दी के कामों के लिए शोधा जानेवाला दो-चार घड़ीका कामचलाऊ मुहूर्त । - घर* - वि० सरपट (चाल) । - घरा- पु० पीतलकी दीयट; दे० 'चौघड़ा' । - घोड़ी* -- स्त्री० चार घोड़ोंकी गाड़ी, चौकड़ी । -तनियाँ - स्त्री० दे० ' चौतनी'; अँगिया, चोली । -तनी-स्त्री० बच्चोंकी चौगोशी टोपी । -तरफा- अ० चारों ओर, चौगिर्द ।
- तरा* - पु० चार तारोंबाला एक बाजा; दे० 'चबूतरा' | - तहा - वि० चार तहोंवाला । - ताल - पु० मृगका एक ताल; होली में गाया जानेवाला एक गीत । - तुका - वि० चार तुकोंवाला । पु० वह छंद जिसके तुकांतमें समता हो । - दंता - वि० चार दाँतोंवाला; अल्हड़ । - दस - स्त्री० किसी पक्षकी चौदहवीं तिथि, चतुर्दशी । दह - वि० दस और चार | पु० चौदहकी संख्या, १४ । - दाँत * - पु० दो हाथियोंकी लड़ाई। - धारी* - स्त्री० चारखाना । - पई-स्त्री० एक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १५ मात्राएँ होती हैं । पट - वि० चारों ओरसे खुला हुआ; नष्ट, तबाह, सत्यानास । - पट चरण- वि० जिसके कहीं पहुँचते ही तबाही, बरबादी आ जाय, सत्यानासी । - पटहा+ - वि० दे० 'चौपटा' । - पटा - वि० चौपट करनेवाला, बिगाड़ | - पड़ - पु० चौसर । -पत-पु० वह पत्थर जिसमें लगी कीलपर कुम्हाका चाक टिका रहता है । - पतिया - स्त्री० एक साग; एक घास; चार पन्नोंकी पोथी; कशीदेकी चार पत्तियोंवाली बूटी ।-पथ-पु० चौराहा, चतुष्पथ; दे० 'चौपत'। - पद * - पु० चौपाया, चतुष्पद । पदा - पु० चार चर गोवाला एक विशेष छंद । - पल-पु० दे० 'चौपत' । - पहल - वि० चार पहलों या पहलुओंवाला । - पहला - वि० दे० 'चौपहल' । पु० एक तरहकी हलकी, खुली पालकी, चौपाल । - पहिया - वि० चार पहियोंवाला । स्त्री० चार पहियोंवाली गाड़ी । - पाई - स्त्री० १६-१६
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२५६
मात्राओं के चार चरणोंका एक प्रसिद्ध छंद । - पाड़-पु० दे० 'चौपाल' । - पाया-पु० चार पैरोंवाला पशु, जानवर, ढोर, गाय-भैंस आदि । - पार* - पु० दे० 'चौपाल' ।
- पाल - पु० खुली या छायी हुई मंडपाकार बैठक जहाँ गाँव के लोग बैठकर पंचायत आदि करते हों; एक तरहकी पालकी । - पुरा - पु० वह कुआँ जिसपर चार पुर एक साथ चल सकें । - पैया - पु० एक मात्रिक छंद । - फला - वि० चार फलोंवाला (चाकू) । फेर - अ० चारों ओर । - बंदी - स्त्री० चुस्त, कम लंबा अँगरखा जिसके नीचे-ऊपरके दोनों पल्लों में चार-चार बंद होते हैं । - बगला - पु० कुरते, अँगरखे आदिकी बगलके नीचे और कली के ऊपरका भाग । अ० चौतरफा । - बगली - स्त्री० चौबंदी । - बारा - पु० बालाखानेका कमरा जिसमें चारों ओर खिड़कियाँ या दरवाजे हों; चौपाल । -बीस - वि० बीस और चार | पु० चौबीसकी संख्या, २४ । -बोला- पु० एक मात्रिक छंद । - मंजिला - वि० चार मंजिलों या खंडवाला ( मकान ) । -मसिया - वि० चौमासेमें होनेवाला | पु० चौमासेभर काम करनेके लिए रखा गया हलवाहा । - महला - वि० चौमंजिला । -मार्ग * - पु० चौराहा । - मास - पु० दे० 'चौमासा' । - मासा - पु० बरसात के चार महीने, असाढ़से कुआरतकका काल; वह खेत जो चौमासेमें केवल जीतकर छोड़ दिया जाय, बोया न जाय; वर्षाऋतु-संबंधी कविता । -मासी - स्त्री० चौमा सेमें गाया जानेवाला एक गाना । मुख - अ० चारों ओर। मुखा - वि० चार मुँहोंवाला जिसके मुँह चारों ओर हो । - मुखादि (दी) या - ५० वह दिया जिसमें चारों ओर चार बत्तियाँ लगायी जायें । मुहानी - स्त्री० चौराहा, चतुष्पथ । - मँड़ा - पु० वह जगह जहाँ चार डाँड़े या सरहदें मिलती हों । -रंग-वि०तलवारके आघा तसे कई टुकड़ों में कटा हुआ । पु० तलवारका एक हाथ । - रंगा - वि० चार रंगोंवाला । - रँगिया - पु० मालखंभकी एक कसरत । -रस- वि० समतल, चौपहल | - रस्ता - पु० चौराहा । - राहा - ५० वह जगह जहाँ चार रास्ते मिलें या दो सड़कें एक दूसरीको काटें, चौमु हानी । - लड़ा - वि० चार लड़ियोंवाला (हार इ० ) । -सर- पु० गोटों और पासोंके सहारे बिसातपर खेला जानेवाला एक खेल, चौपड़, इस खेलकी बिसात; * चार लड़ियोंका हार । * वि० चार लड़ियोंवाला, चौलड़ा। -सिंहा- पु० वह जगह जहाँ चार गाँवोंकी सीमाएँ मिलती हों । - हट (दृ) *, - हट्टा - पु० चौक; चौमुहानी । - हद्दा - पु० वह स्थान जहाँ चार गाँवोंकी सीमाएँ मिलती हो । हड्डी - स्त्री० किसी स्थान या मकान आदिकी चारों सीमाएँ; पिप्पलादि चार दवाओंका योग । चौआ-पु० चार अंगुलकी माप; चार उँगलियोंका समूह;
ताशका चार बूटियोंवाला पत्ता, चौका; चौपाया । चौआना -* अ० क्रि० चकित होना । + स० क्रि० तागे' को हाथकी चार उँगलियोंपर लपेटना (जनेऊ चौआना)। चौक- पु० चौखूँटा सहन, आँगन, चौमुहानी; नगरका मुख्य बाजार, चौखूँटा चबूतरा; पूजन आदिमें आटे आदिकी रेखाओं से बनाया जानेवाला क्षेत्र; चारका समूह;
For Private and Personal Use Only