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ऋणात्मक-एक
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समापन-पु० (लिक्विडेशन ऑफ डेट) ऋण पूरा-पूरा संभोग । -नाथ,-पति-पु० वसंत । -फल-पु० ऋतुचुका देना, बेबाक कर देना ।-बंधनपत्र-पु० (प्रो-नोट)। विशेषमें होनेवाला फल । -राज-पु. वसंत ऋतु । वह पत्र या रुक्का जो ऋण लेनेवाला शोंके साथ रसीदके -विज्ञान-पु० वायुमंडल में होनेवाले परिवर्तनोंका विज्ञान तौरपर लिखता है, हैडनोट । -मक्त-वि० जिसने ऋण जिसके आधार पर वर्षा, तूफानका अनुमान किया जाता चुका दिया हो, उऋण । -मुक्ति-स्त्री०, -मोक्ष-पु० है (मीटियरालोजी)। -विपर्यय-पु० ऋतुके विपरीत (री.पशन) ऋणसे छुटकारा पाना, ऋणका चुकाया | बात होना। -स्नाता-स्त्री० ऋतुस्नान करके शुद्ध हुई जाना। -लेख्य-पु०ऋणपत्र । -विद्युत्-स्त्री० विकर्षण स्त्री। -स्नान-पु० रजोदर्शनके बाद चौथे दिन किया
करनेवाली बिजली । -विद्य दणु-पु. ( इलेक्ट्रान)| जानेवाला स्नान। ऋण-विद्युत् शक्तिकी अवि भाज्य इकाई स्वरूप वे कण ऋतुमती-वि० स्त्री० [सं०] रजस्वला । जो परमाणु (ऐटम )के धनविद्युत् शक्तिकणके चारों ऋविज-पु० [सं०] यश करानेवाला । तरफ, सूर्यमंडलके ग्रहोंकी तरह घूमते हैं।-शुद्धि ऋद्ध-वि० [सं०] खुशहाल, धन-धान्यसे संपन्न । -स्त्री० ऋणका अदा होना । -शोधन-पु० ऋण ऋद्धि-स्त्री० [सं०] संपन्नता; वृद्धि, बढ़ती, उत्कर्ष गौरव चकाना। -संपिंडन-पु० (कॉनसॉलिडेशन ऑफ डेट) सफलता; पार्वती, लक्ष्मी, पत्ली। -सिद्धि-स्त्री० धनबहुतसे ऋणोंको मिलाकर एक कर देना, ऋणकी छोटी- दौलत और सफलता । छोटी रकमोंको मिलाकर एक बड़े पिंड या राशिमें परिणत ऋनिया, ऋनी-वि० दे० 'ऋणी'। कर देना। -स्थगन-पु० (मॉरेटोरियम) बैंकों आदि | ऋषभ-पु० [सं०] बैल; संगीतके सात स्वरोंमेंसे दूसरा । द्वारा (उच्च न्यायालयके या सरकारके आदेशसे) लोगांका | वि० उत्तम श्रेष्ठ (समासांतमें-पुरुषर्षभ, भरतर्षभ पावना या ऋण चुकाना अस्थायी रूपसे बंद कर दिया जाना । मु०-उतारना-कर्ज अदा करना। -चढ़ना- ऋषभी-स्त्री० [सं०] गाय; वह स्त्री जिसे मछ, दाढी या कर्ज होना। -पटाना-धीरे-धीरे कर्ज अदा करना। और कोई पुरुष-चिह्न हो विधवा । ऋणात्मक-वि० [सं०] ऋणरूप (नेगेटिव ।
ऋषि-पु० [सं०] मंत्रद्रष्टा, वेदमंत्रोंका साक्षात्कार और ऋणापनोदन-पु० [सं०] कर्ज चुकाना ।
प्रकाशन करनेवाला; बहुत बड़ा तपस्वी, मुनि; प्रकाशऋणी(णिन्)-वि० [सं०] कर्जदार, अधमर्ण; उपकृत ।। किरण; ७की संख्या। -ऋण-पु० मनुष्यका ऋषियोंके ऋतु-स्त्री० [सं०] वर्षके वर्षा, शरद् आदि छ: विभाग, प्रति कर्तव्य । (वेद पढ़ने-पढ़ानेसे इससे मुक्ति मिलती है)। मौसमः किसी चीजके होनेका नियत काल; रजःस्राव -कल्प-वि० ऋषितुल्य । -कुल-पु० ऋषिका वंश; ६की संख्या । -काल-पु० रजोदर्शनके बादकी १६ रातें ऋषिका आश्रम; वह विद्यालय जहाँ ब्रह्मचारियोंको विद्या जिनमें स्त्रीके गर्भधारणकी अधिक सम्भावना रहती है। पढ़ायी जाय। -पंचमी-स्त्री० भादों सुदी पंचमी । -चर्या-स्त्री० ऋतुविशेषके अनुकूल आहार-बिहार। ऋष्यशृंग-पु० [सं०] एक ऋषि जिन्हें दशरथ-कन्या शांता -दान-पु० ऋतुलाता पत्नीके साथ संतान-कामनासे | ब्याही थी।
ए-देवनागरी वर्णमालाका ८ वाँ (स्वर) वर्ण ।
एक, बारी-बारीसे। -कलम-अ० [हिं०] एकबारगी; एँच-पँच-पु० उलझन, पेच-पाच; चक्कर; चाल-घात । पूरे तौरसे। -कालिक,-कालीन-वि० एक ही बार एंडा-बड़ा-वि० उलटा-सीधा ।
होनेवाला; एक बारका; समकालीन । -गाछी-स्त्री० एँ.डुआ-पु० गेंडुरी, कुंडली।
[हिं०] एक ही पेड़के तनेसे बनायी गयी नाव । ए-पु० [सं०] विष्णु । * सर्व० यह ।
-चश्म-वि० [हिं०] काना। पु० वह तसवीर एकंगा-वि० एकतरफा, एक ओरका ।
जिसमें चेहरेका एक ही रुख और एक आँख दिखाई दे । एकड़िया-वि० जिसमें एक ही अंड वा गांठ हो । पु० एक, -चश्मी-षि० [हिं०] एकरखी। -चारिणी-वि० स्त्री०
अंठीवाली लहसुनकी गाँठ; एक अंडकोषवाला बैल । पतिव्रता स्त्री। -चित्त-वि० एक ही विषयको सोचनेएकत*-वि० दे० 'एकांत'।
वाला, एकाग्र, तल्लीन; एक मन, विचारके। -चाबाएक-वि० [सं०] पहले अंक या इकाईसे सूचित, दोका वि० [हिं०] एक चोब या खंभेपर खड़ा किया जानेवाला
आधा; अकेला; जैसा दूसरा न हो, बेजोड़; वही; अपरि- (खेमा) । -च्छत्र-वि० जिसमें दूसरेका अधिकार, वर्तित; स्थिर; प्रधान; सत्य; ईषत् ; कोई एक भी; कोई प्रभुत्व न हो, असपत्न, एकतंत्र ( राज्य)। -ज-पु० या कुछ भी (एक न चलना, न सुनना); जो मिलकर सगा भाई। वि० अकेले पैदा होने या बढ़नेवाला; * एक चीज, एकरूप हो गया हो, भेदरहित । पु० पहला एकमात्र । -जात-वि० एक माता-पितासे उत्पन्न अंक या इकाई, १; विष्णुः परमात्मा * ऐक्य, साम्य ।। सहोदर। -जातीय-वि० ( होमोजीनियस) एक ही -अंक,-आँक-अ० [हिं०] पक्की बात, निश्चय; निश्चय ही। जाति, वर्ग या किस्मका; जिसके सब अंग या अंश -आध-वि० [हिं०] एक या आधा, एक-दो, दो-एक । एक सदृश हों। -जान-वि० [हिं०] जो घुल-मिल-एक-वि० [हिं०] हर एक, प्रत्येक । अ० एकके बाद । कर एक हो गया हो, एकरूप, एकदिल, अभिन्न-हृदय ।
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