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लेना - वेदनाको बाहर न आने देनेके लिए दिलको पकड़ लेना, दबा रखना। - धक-धक करना, धड़कनाभय, आशंकासे असह्य कष्टके सहनके लिए मनमें बलसंचय करना; चित्तका विचलित, विकल हो जाना; दिल दहलना । - धकसे हो जाना- एकाएक डर जाना; स्तब्ध हो जाना, विस्मित होना। -निकालकर घर या रख देना - अति प्रिय वस्तु अर्पण कर देना; जान दे देना; सारी शक्ति लगा देना । -पक जाना- किसी कष्टसे ऊब जाना; उसका असह्य हो जाना। - पकाना - नाक में दम करना, परेशान करना । - पत्थरका करना - असहा दुःख के सहनके लिए जी कड़ा करना; निष्ठुर, निर्मम बन जाना। - फट जाना - किसीके दुःखसे हृदयका विदीर्ण, द्रवित होना । - बल्लियों, बाँसों, उछलना- हर्ष, भय, आशंका आदिसे हृदयका जोरसे स्पंदित होना । - मुँहको आना- किसी कष्ट, व्यथासे व्याकुल, बेचैन होना, अति क्लेश होना । कलेजेका टुकड़ा - संतान, बेटा । - की कोर-संतान, बेटी पर छुरी चल जाना या फिरना - हृदयपर गहरा आघात होना, कलेजा कटने, चिरनेका-सा कष्ट होना । - पर साँप लोटना- किसी बातको याद कर, किसी चीजको देखकर यकायक बहुत दुःखी हो जाना; व्यथासे बहुत बेचैन हो जाना; ईर्ष्यासे जल उठना । - में आग लगना-द्वेप होना; प्यास लगना; शोक होना । - में डालना - प्यारसे पास रखना । - में तीर लगना-दिल में गहरी चोट लगना । - में पैठना-भेद लेने या मतलब निकालनेके लिए हेलमेल बढ़ाना। - से लगाना-छाती से चिपटा लेना, प्यार
करना ।
कलेजी - स्त्री० कलेजेका मांस ।
कलेवर - पु० [सं०] देह, चोला; डील, आकार । बदलना - नया शरीर धारण करना, चोला बदलना; जगन्नाथजीकी पुरानी मूर्तिकी जगह नयीकी स्थापना होना । कलेवा - पु० सबेरेका जलपान, नाश्ता; व्याहकी एक रस्म; मार्ग में खाने के लिए साथ लिया गया भोजन, पाथेय । मु० - करना - खा जाना ।
कलेस* पु० दे० 'क्लेश' |
कलैया - पु० कलाबाजी (खाना, मारना) कलोर - स्त्री० जवान गाय जो ब्यायी या गाभिन न हो । * पु० बछड़ा - 'मानो हरे तृन चारु चरै बगरे सुरधेनुके धौल कलोरे' - कविता |
कलोरी - स्त्री० जवान गाय, कलोर - 'नवें नारि तो दसें कलोरी ।'
कलोल - पु० क्रीड़ा, केलि ।
कलोलना* - अ० क्रि० कलोल करना ।
कलौंछ- स्त्री० दे० 'कलो स' ।
मु० -
कलौ स - स्त्री० कलंक; कालिमा; स्याही | कल्क - पु० [सं०] तेल आदिके नीचे जमनेवाला मैल, कीट; मैल; कानका मैल, खूँट; एक तरहका काढ़ा; दंभ; पाप । कल्कि - पु० [सं०] विष्णुका दसवाँ और अंतिम अवतार
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कलेजी-कल्याण
जो पुराणों के अनुसार कलियुग के अंत में संभल (मुरादाबाद)में होगा ।
कल्प - पु० [सं०] धार्मिक कर्तव्योंका विधि-विधान; विहित विकल्प; वेदके ९ अंगों में से वह जिसमें यज्ञों, संस्कारों आदिकी विधियाँ बतायी गयी हैं; ब्रह्माका एक दिन (एक हजार महायुग - ४ अरब ३२ करोड़ मानववर्ष ); प्रलय; चिकित्सा; शरीरको पुनः नया एवं नीरोग करनेका उपाय; आयुर्वेदका विष चिकित्सा अंग विभाग (पुस्तकादिका); स्वर्गका एक वृक्ष । वि० लगभग बराबर, जरासा कम ( केवल समासांत में - देवकल्प, मृतकल्प इत्यादि ); उचित, योग्यः सशक्तः संभव; व्यवहार में लाने योग्य । -कारपु० कल्पसूत्रों का रचयिता (आश्वलायन, आपस्तंव, बोधायन, कात्यायन ); नाई; शराब । वि० सजाने-सँवारनेवाला । तरु, द्रुम, पादप-पु० दे० 'कल्पविटप' । - पाल - पु० शराब बेचनेवाला । - लता - स्त्री० कल्पवृक्ष; कल्पवृक्ष की शाखा । -वास-पु० माघके महीनेभर गंगातटपर ब्रह्मचर्यपूर्वक रहकर धर्मकृत्य करना । - विटप, - वृक्ष - शाखी (खिन् ) - पु० नंदनकाननका एक वृक्ष जो समुद्रमंथन से निकले हुए १४ रत्नों में और जो कुछ भी माँगिये उसे देनेवाला माना जाता है । कल्पक - वि० [सं०] कल्पना करनेवाला; रचनेवाला; काटनेवाला | पु० नाई; कचूर; एक संस्कार । कल्पन - पु० [सं०] रचना; बनाना; सजाना, सँवारना; एक वस्तु में दूसरीका आरोप करना; कल्पना करना; छाँटना, कतरना ।
राज्य |
कल्पनीय - वि० [सं०] जिसकी कल्पना की जा सके । कल्पांत - पु० [सं०] प्रलय, सृष्टिका अंत । - स्थायी (यिन) - वि० सृष्टिके अंततक बना रहनेवाला ।
कल्पित - वि० [सं०] सोचा, माना हुआ; मनसे गढ़ा हुआ, फर्जी; सजाया, सँवारा हुआ ।
कल्मष - पु० [सं०] मल; मैल; पाप; एक नरक ।
कल्माष - वि० [सं०] चितकबरा । पु० चितकबरा रंग; काला रंग; राक्षस; अग्निका एक रूप; एक खुशबूदार चावल दाग, धब्बा ।
कलौंजी - स्त्री० मसाला भरकर घी तेल में तली हुई समूची | कल्य- पु० [सं०] भोर, तड़का; मद्य मंगलकामनः भिंडी, बैगन आदि; मँगरैला ।
- पाल, - पालक - पु० कलवार, मद्यव्यवसायी । कल्या - स्त्री० [सं०] शराब; कल्याणवचन; हरीतकी; कलोर गाय (?) । - पाल, - पालक - पु० कलवार । कल्याण- पु० [सं०] मंगल; सुख-सौभाग्य; भलाई; अभ्युदय; एक राग | -कर,-कारी (रिन् ) - वि० कल्याण,
कल्पना - स्त्री० [सं०] रचना; कोई नयी बात सोचना, उद्भावना; इसकी शक्ति; इस तरह सोची हुई बात, उपज; मनकी वह शक्ति जो परोक्ष विषयोंका रूप, चित्र उसके सामने ला देती है; सोचना; मान लेना; एक वस्तुमें दूसरीका आरोप; सँवारना; सवारीके लिए हाथीको सजाना | - चित्र - पु० कल्पनासे खींचा हुआ चित्र, नकशा । - प्रसूत - वि० कल्पनासे उपजाया हुआ, मनगढंत । - शक्ति - स्त्री० कोई नयी बात सोचनेकी शक्ति, उद्भावनाशक्ति । सृष्टि स्त्री० कल्पनाकी रचना, मनो
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